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स्‍मार्टफोन के ज्‍यादा उपयोग करने से बच्‍चों पर पढ़ सकतें हैं ये दूष्‍प्रभा‍व

January 18, 2021

दुनिया भर में बच्चे अपनी अलग-अलग जरूरतों लिए स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं। कुछ बच्चे अपने दोस्तों से लंबे समय तक बात करते हैं जबकि कुछ लंबे समय तक गेम खेलते हैं या वीडियो देखते हैं। इंटरनेट बच्चों के लिए एक ज्ञान का खजाना है। वैसे तो हम स्मार्टफोन की उपयोगिता पर बहस नहीं की जा सकती है, पर लगातार उपयोग और स्क्रीन के एक्सपोजर के कारण बच्चे पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है।

मस्तिष्क की गतिविधि की समस्‍या
मोबाइल फोन मुख्य रूप से संचार के सभी रूपों, यहाँ तक कि इंटरनल संचार के लिए भी, विद्युत चुम्बकीय तरंगों पर कार्य करते हैं। मस्तिष्क का अपना इलेक्ट्रिक आवेग होता है और संचार तंत्रिका नेटवर्क में होता है। बच्चों में, फोन से तरंगें मस्तिष्क के आंतरिक भागों में आसानी से प्रवेश कर सकती हैं, क्योंकि उनके पास एक मजबूत ढाल नहीं होती है।

रिसर्च से पता चला है कि केवल 2 मिनट तक फोन पर बात करने से, बच्चे के दिमाग के अंदर की इलेक्ट्रिक एक्टिविटी को बदला जा सकता है। यह अनिश्चित गतिविधि मूड पैटर्न और व्यवहार की प्रवृत्ति में परिवर्तन का कारण बन सकती है, और बच्चों को नई चीजें सीखने में या ठीक से ध्यान केंद्रित करने में परेशानी हो सकती है।

शैक्षिक कार्यक्षमता में समस्‍या हो सकती है
कई बच्चे अपने साथ अपने स्कूलों में भी फोन ले जाते हैं। स्कूल ब्रेक के टाइम या क्लास में भी दोस्तों के साथ चैटिंग या गेम खेलना दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। यह बच्चों को क्लास में ध्यान देने में मुश्किल, जरूरी पाठों को याद करने में मुश्किल का कारण बनता है और परिणामस्वरूप बच्चे पढ़ाई और एक्साम्स के बारे में सही जानकार नहीं हो पाते हैं।


शैक्षणिक कदाचार
स्मार्टफोन न केवल बच्चों को पढ़ाई से विचलित करते हैं, बल्कि परीक्षाओं में अच्छा स्कोर करने के लिए गलत तरीकों में भी काम आ सकते हैं। परीक्षा में इनबिल्ट कैलकुलेटर का उपयोग करना जहाँ इसकी अनुमति नहीं है, परीक्षा में चीट करने के लिए तस्वीरें या संदर्भ जानकारी संग्रहीत करना, या परीक्षा के दौरान चैट पर अन्य छात्रों के साथ उत्तर का आदान-प्रदान करना, विभिन्न स्कूलों में बहुत ज्यादा देखा गया है। इस तरह का व्यवहार न केवल शिक्षा को प्रभावित करता है, बल्कि यह व्यक्तित्व पर भी असर डालता है।

नींद न आने की समस्‍या
बच्चे दोस्तों से बात करने, गेम खेलने या सोशल मीडिया के माध्यम से ब्राऊज करने में देर तक जागे रह सकते हैं, जो समय के साथ थकान और बेचैनी का कारण बनता है। नींद पढ़ाई में भी रूकावट डालती है, क्योंकि बच्चों को स्कूल में पढ़ाई जाने वाली चीजों पर ध्यान केंद्रित करते समय बहुत नींद आती है। इसका दूरगामी प्रभाव पड़ता है जो उनके जीवन के आगे के चरणों में फैल जाता है ।

चिकित्सा सम्बन्धी समस्याएं
जो बच्चे अपने खाली समय में मोबाइल फोन से चिपके रहते हैं, वे न कोई शारीरिक गतिविधि करते हैं और न ही ताजी हवा ले पाते हैं। इससे उन्हें मोटापा और अन्य बीमारियों का खतरा होता है, जो बाद में डायबिटीज और हाइपरटेंशन जैसी हानिकारक बीमारियों में विकसित हो सकता है।

मानसिक स्वास्थ्य
सोशल मीडिया पर बच्चे साइबर बुली के संपर्क में आ सकते हैं जो उन्हें इंटरनेट पर परेशान करते हैं और धमकाते हैं। साइबर बुली का शिकार होने वाले बच्चे जिंदगी में बहुत बाद में इसे स्वीकारते हैं, जब मानसिक क्षति पहले ही हो चुकी होती है। सोशल मीडिया डिप्रेशन और चिंता का कारण भी हो सकता है, जब बच्चों को वो ध्यान नहीं दिया जाता जिसकी वे उम्मीद करते हैं।

नोट – उपरोक्‍त दी गई जानकारी व सुझाव सामान्‍य जानकारी के लिए हैं इन्‍हें किसी प्रोफेशनल डॉक्‍टर की सलाह के रूप में न समझें । कोई भी बीमारी या परेंशानी होने की स्थिति हो तो डॉक्‍टर की सलाह जरूर लें ।

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