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    बचपन का प्यार… लिव-इन रिलेशन पर कोर्ट का फैसला, व्यस्क ही बस हिफाजत के हकदार

  • September 11, 2024

    डेस्क: कम उम्र के प्यार (Love) और साथ रहने के फैसला लेने वाले नाबालिगों (Minors) की सुरक्षा को लेकर कोर्ट (Court) ने बड़ा सुनाया है. पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab and Haryana High Court) ने साफ किया है कि लिव-इन रिलेशनशिप (Live-in relationship) में रहने वाले नाबालिग अदालत से कानूनी सुरक्षा नहीं मांग सकते. जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस सुदीप्ति शर्मा की बेंच ने कहा कि ऐसे संबंध, चाहे दो नाबालिगों के बीच हों या नाबालिग और वयस्क के बीच, कानूनी सुरक्षा के दायरे से बाहर हैं.

    नाबालिगों के फैसले लेने की क्षमता पर वैधानिक सीमाओं का हवाला देते हुए बेंच ने जोर देकर कहा, ‘किसी वयस्क के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाला नाबालिग या जहां लिव-इन रिलेशनशिप में केवल नाबालिग ही भागीदार हैं, तो वह व्यक्ति अदालतों से सुरक्षा नहीं मांग सकता. इस निष्कर्ष पर पहुंचने का कारण इस तथ्य में दृढ़ता से निहित है कि किसी भी धार्मिक संप्रदाय से जुड़ा नाबालिग कॉन्ट्रैक्ट करने में अक्षम है. अगर ऐसा है, तो उसके पास चुनाव करने या अपनी स्वतंत्रता व्यक्त करने की भी क्षमता नहीं है.’

    हाईकोर्ट ने अपने विस्तृत आदेश में कहा कि कानूनी ढांचे नाबालिगों को चुनाव करने से रोकते हैं, जिसमें लिव-इन रिलेशनशिप में प्रवेश करने का गलत निर्णय भी शामिल है, चाहे वह किसी दूसरे नाबालिग के साथ हो या किसी वयस्क के साथ ऐसे रिश्तों में नाबालिगों को सुरक्षा प्रदान करना वैधानिक प्रतिबंधों का खंडन करेगा जो नाबालिग के विवेक को सीमित करते हैं.


    अदालत ने कहा कि ऐसे लिव-इन रिश्तों में नाबालिग भागीदारों को सुरक्षा प्रदान करना, जहां या तो एक या दोनों नाबालिग हों, नाबालिग के निर्णय लेने की क्षमताओं पर कानूनी प्रतिबंधों के साथ टकराव होगा. कोर्ट ने इसके साथ ही साफ किया कि अदालतें, खुद की रक्षा करने में असमर्थ नागरिकों के ‘पैरेंस-पैट्रिया’ या कानूनी रक्षक के रूप में कार्य करती हैं, नाबालिगों के कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए बाध्य हैं, जिसमें यह सुनिश्चित करना शामिल है कि उनकी हिरासत माता-पिता या प्राकृतिक अभिभावकों को वापस कर दी जाए.

    हाईकोर्ट बेंच ने इसके साथ ही, लिव-इन रिलेशन में वयस्कों के अधिकारों को यह कहते हुए बरकरार रखा कि वे कानूनी सुरक्षा के हकदार हैं, भले ही भागीदारों में से एक विवाहित ही क्यों न हो. कोर्ट ने जोर देकर कहा कि सामाजिक या नैतिक आपत्तियों की परवाह किए बिना, लिव-इन रिलेशन में प्रवेश करने के अधिकार सहित व्यक्तियों की स्वायत्तता का सम्मान किया जाना आवश्यक है. अदालत ने साफ तौर से कहा कि ऐसे व्यक्तियों के लिए किसी भी वास्तविक खतरे को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है और उनकी कानूनी सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए.

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