नियमों को ताक पर रखकर चलाया जा रहा था नर्सिंग होम
डंडा चला लेकिन सहलाते हुए, डाक्टर बचा रहे जिम्मेदारों को
इंदौर। नियमों को ताक पर रखकर चल रहे निजी नर्सिंग होम पर स्वास्थ्य विभाग का डंडा तो चला, लेकिन सहलाते हुए। बच्चे की मौत के बाद हास्पिटल को एक महीने बंद रखने की सजा के रूप में सामने आया। स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी आदेश जिम्मेदारों को बचा रहा है।
शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित हो रहे नर्सिंग होम व निजी क्लिनिकों में इलाज के नाम पर अराजकता फैल रही है और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी अपनी जेब गर्म करने से लेकर सीट बचाने तक का खेल खेल रहे हैं। कई शिकायतों के बावजूद लापरवाहियों पर जो कार्रवाई की जा रही है, वह नाकाफी है। राऊ स्थित एएनएस अस्पताल को बच्चे के गले में नाल लपट जाने और कोई शिशु चिकित्सक उपलब्ध न होने की सूरत में सिर्फ एक महीने बंद करने की सजा दी गई है। स्वास्थ्य विभाग ने हाल ही में नोटिस देते हुए उक्त नर्सिंग होम की कमियां तो गिनाईं, लेकिन कोई कड़ी कार्रवाई नहीं हुई।
कमियां दूर नहीं की तो पंजीयन निरस्त
स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारी डा. बीएस सैत्या ने हाल ही में एएनएस अस्पताल संचालक को नोटिस जारी करते हुए एक माह तक बंद रखने के निर्देश देते हुए स्पष्ट किया है कि हास्पिटल में व्याप्त कमियों को दूर नहीं किया गया तो पंजीयन निरस्ती की कार्रवाई की जाएगी। एक महीने बाद टीम फिर से अस्पताल का दौरा करेगी और उसके बाद ही बहाली की जा सकेगी। मध्यप्रदेश उपचारगृह व रोगी उपचार अधिनियम के तहत ऑनलाइन पंजीयन निरस्ती की कार्रवाई की जाएगी।
एमबीबीएस नहीं, आयुष संभालते हैं मरीज
जांच टीम के अधिकारियों के अनुसार उक्त अस्पताल में निरीक्षण के दौरान एमबीबीएस डाक्टरों के बजाय आयुष डाक्टर मरीजों की जांच करते हुए पाए गए थे। आपरेशन थिएटर की कल्चर रिपोर्ट उपलब्ध नहीं थी। वहीं डाक्टर ड्यूटी रोस्टर बनाया ही नहीं गया। 10 मार्च को प्रसव के दौरान गर्भवती महिला की डिलेवरी अमानक स्तर पर कराई गई। वहीं शिशु रोग विशेषज्ञ, एनआईसीयू उपलब्ध नहीं होने के बावजूद डिलेवरी की व्यवस्था की गई, जिसके चलते गंभीर हालत में बच्चे की मौत हो गई। वहीं डिलेवरी रूम में पुरुष कर्मचारियों के मौजूद होने के कारण महिला ने निजता के हनन का भी आरोप लगाया था।
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