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    विदाई समारोह में भावुक हुए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, माफी मांगते हुए कही ये बड़ी बात

  • November 08, 2024

    नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (Chief Justice of India DY Chandrachud) के आखिरी कार्य दिवस पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में विदाई समारोह आयोजित किया गया. इस दौरा CJI ने अपने परिवार, माता-पिता, निजी जिंदगी के साथ ही करियर से जुड़ी कई महत्वपूर्ण बातें शेयर कीं और अपने अनुभव भी सुनाए. डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि, ‘हम जज के रूप में जटिल विषयों पर निर्णय देते हैं, लेकिन हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे फैसलों का आम नागरिकों की जिंदगी पर क्या असर होता है.’

    अपने कार्यकाल के इस आखिरी दिन, उन्होंने अपनी न्यायिक यात्रा के लिए कृतज्ञता और विनम्रता के साथ भावनात्मक संबोधन दिया. अपने सहकर्मियों और कानूनी समुदाय से घिरे चंद्रचूड़ ने अपनी व्यक्तिगत अनुभवों और प्रशंसा को साझा किया. उन्होंने उन लोगों से माफी भी मांगी, जिन्हें अनजाने में उनकी किसी बात से ठेस पहुंची हो.

    उन्होंने कहा, “कल शाम, जब मेरे रजिस्ट्रार न्यायिक ने मुझसे पूछा कि समारोह का समय कब रखा जाए, तो मुझे बताया गया कि इसे दोपहर 2 बजे रखा जा सकता है ताकि कई मामलों का निपटारा किया जा सके. मैंने सोचा, क्या इस अदालत में शुक्रवार दोपहर 2 बजे कोई होगा,” उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा. “या फिर मैं खुद को स्क्रीन पर देखूंगा?”

    न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने भारतीय न्यायपालिका की परंपराओं के प्रति अपनी प्रशंसा व्यक्त करते हुए कहा कि एक युवा वकील के रूप में उन्होंने तर्कों की कला देखी और अदालत में काम करने के महत्वपूर्ण गुर सीखे. उन्होंने कहा, “हम यहां तीर्थयात्री की तरह काम करने के लिए हैं, और हमारा कार्य किसी भी मामले की दिशा तय कर सकता है. इस अदालत को महान न्यायाधीशों ने सजाया है और अपनी विरासत यहां छोड़ी है.”


    उन्होंने अपने उत्तराधिकारी जस्टिस संजीव खन्ना के बारे में भी कहा, “मेरे जाने के बाद भी इस अदालत में कोई फर्क नहीं आएगा क्योंकि जस्टिस खन्ना जैसा स्थिर और गरिमामय व्यक्ति इस पद को संभालेगा.” अपने कार्यकाल के दौरान प्रेरणा के स्रोत पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, “जब आप मुझसे पूछते हैं कि मुझे क्या प्रेरित करता है, तो यही है. यह न्यायाधीश के रूप में एक यात्रा है. मैं आप सभी का धन्यवाद करता हूं, आप सभी ने मुझे कानून और जीवन के बारे में बहुत कुछ सिखाया. आज भी 45 मामलों को निपटाते हुए मैंने जीवन के बारे में बहुत कुछ सीखा.”

    एक मार्मिक क्षण में, चंद्रचूड़ ने सभी से माफी मांगी, “अगर कभी किसी को मेरी किसी बात से ठेस पहुंची हो, तो मैं माफी चाहता हूं, यह कभी मेरा इरादा नहीं था. कृपया मुझे माफ कर दें.” उनके अंतिम कार्यदिवस पर, वरिष्ठ अधिवक्ताओं और न्यायपालिका के सदस्यों ने भारत के न्यायिक क्षेत्र में उनके गहरे प्रभाव के लिए उन्हें श्रद्धांजलि दी. उनके साथ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा ने भी समारोहिक पीठ में स्थान लिया. डी. वाई. चंद्रचूड़ को उनके कानूनी ज्ञान के साथ-साथ न्याय के प्रति उनके मानवीय दृष्टिकोण के लिए भी सराहा गया.

    मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने विदाई समारोह के दौरान मिले सम्मान के लिए सभी का धन्यवाद किया. मुख्य न्यायाधीश ने अपने विदाई समारोह में अपने पिता और अपने न्यायिक अनुभवों को लेकर भावुक बातें साझा कीं. उन्होंने बताया कि उनके पिता बेहद अनुशासित थे लेकिन उन्होंने कभी अपने बच्चों पर अनुशासन नहीं थोपा. सीजेआई ने बताया, “मेरे पिता ने पुणे में एक छोटा सा फ्लैट खरीदा था. मैंने उनसे पूछा क्यों, तो उन्होंने कहा कि उन्हें पता था कि वह उसमें नहीं रहेंगे. उन्होंने मुझसे कहा था कि इस फ्लैट को तब तक रखो जब तक तुम एक जज के तौर पर सेवानिवृत्त नहीं हो जाते ताकि तुम्हें पता हो कि अगर तुम्हारी नैतिकता पर कोई आंच आए, तो तुम्हारे पास सिर छुपाने की जगह होगी.”

    सीजेआई ने अपने न्यायिक कार्य की प्रेरणा के बारे में बात करते हुए कहा, “हम जज के रूप में जटिल विषयों पर निर्णय देते हैं, लेकिन हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे फैसलों का आम नागरिकों की जिंदगी पर क्या असर होता है. हाल ही में, हमने राजस्थान न्यायिक परीक्षा में दो दृष्टिहीन उम्मीदवारों को साक्षात्कार में बैठने की अनुमति दी. बाद में हमें बताया गया कि उन्होंने परीक्षा उत्तीर्ण कर ली और चयनित सूची में शामिल हैं. यही हमें प्रेरित करता है.”

    उन्होंने कुछ अन्य उदाहरण भी दिए, “कुछ समय पहले, एक डॉक्टर जिसने मस्कुलर डिस्ट्रॉफी जैसी बीमारी से जूझते हुए नीट में बेहतरीन स्कोर किया था, उसे एमबीबीएस में प्रवेश देने से मना कर दिया गया था. हमने उसकी मेडिकल जांच करवाई और फिर उसे प्रवेश दिलाने का निर्देश दिया. इसी तरह, एक दिहाड़ी मजदूर के बेटे को आईआईटी में प्रवेश इसलिए नहीं मिल पाया क्योंकि वह समय पर फीस जमा नहीं कर सका, क्योंकि वह क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल नहीं कर पा रहा था. हमने हस्तक्षेप कर उसे दाखिला दिलवाया.” मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा, “इलाहाबाद में बिताया गया मेरा समय मेरे न्यायिक दृष्टिकोण को हमेशा के लिए बदल कर रख दिया.”

    उन्होंने अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए बताया कि जब वे इलाहाबाद हाई कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश बने थे, तो हर समारोह में उन्हें 15-25 गेंदे के फूलों की मालाएं पहनाई जाती थीं. उन्होंने कहा, “मेरी पत्नी कहती थीं कि गेंदे के फूलों से शर्ट पर दाग लग जाते हैं, इसलिए मैंने उनसे कहा कि इतना कष्ट न करें, फूलों की जरूरत नहीं है. लेकिन मुझे बाद में एहसास हुआ कि ये फूल उनके लिए थे, ताकि तस्वीरें ली जा सकें. आज जो फूल मिले, दिल से लगा कि वे मेरे लिए थे.” चंद्रचूड़ ने अपनी मां की याद में एक श्लोक भी साझा किया, “औषधम जाह्नवी तोयम वैद्यो नारायणो हरिः,” जिसका अर्थ है कि औषध गंगा के समान पवित्र है और वैद्य भगवान नारायण के समान हैं. उन्होंने कहा, “बचपन में मुझे इस श्लोक का मतलब नहीं पता था, बस इतना जानता था कि इसके बाद कड़वी दवा मिलती थी.” उन्होंने कहा, “औषध (दवाई) को गंगा जल के समान पवित्र मानना चाहिए, और डॉक्टर (वैद्य) को भगवान नारायण के समान समझना चाहिए.”

    उन्होंने अपने बचपन की यादें साझा करते हुए बताया, “मैं एक बीमार बच्चा था और अक्सर बीमार पड़ जाता था. मेरी मां रात-रात भर मेरे ठीक होने की देखभाल करती थीं. वह इस श्लोक का जाप करती थीं, जिसका अर्थ था कि औषध गंगा के समान है और वैद्य नारायण के स्थान पर हैं. उस समय मुझे इसका मतलब नहीं पता था, बस इतना जानता था कि इसके बाद कड़वी दवा मिलती थी.” सीजेआई चंद्रचूड़ ने आगे कहा, “मेरे घर में मेरी मां का ही बोलबाला था और आज भी ओडिशा की महिलाएं घर में नेतृत्व करती हैं. हालांकि, मेरी मां ने कभी मेरे निर्णयों में हस्तक्षेप नहीं किया.”

    इस दौरान सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) के अध्यक्ष कपिल सिब्बल ने भी विदाई भाषण दिया और इस दौरान कई प्रमुख फैसलों का जिक्र भी किया. सिब्बल ने कहा, “हम किसी भी न्यायाधीश की आलोचना कर सकते हैं क्योंकि जीवन में पूर्णता जैसी कोई चीज़ नहीं होती. सत्य भी सापेक्ष होता है. हमें किसी न्यायाधीश का मूल्यांकन उस समय के संदर्भ में करना चाहिए जिसमें वह जी रहे हैं. जस्टिस चंद्रचूड़ के बारे में लिखते समय हम उनके निर्णयों, उनकी सादगी, धैर्य और शांत स्वभाव पर चर्चा करेंगे. ये सभी गुण उन्हें इस देश के महानतम न्यायाधीशों में से एक बनाते हैं.”

    सिब्बल ने आगे कहा, “आपका धन्यवाद कि आपने हमेशा हमारी बात सुनी, भले हम सहमत न हों, लेकिन आपके सुनने के जज़्बे को सलाम है. आप एक ट्रेलब्लेजर हैं, चाहे वह विकलांग अधिकारों की रक्षा हो, व्यक्ति की गरिमा को मजबूत करना हो, या जातिगत मुद्दों और लैंगिक रूढ़ियों को तोड़ने की दिशा में आपके प्रयास. आपने उन मुद्दों पर ध्यान दिया जिन्हें कई लोगों ने अनदेखा किया. आपके धैर्य और कानून के प्रति आपका जुनून अद्वितीय है.” सिब्बल ने अपनी बात समाप्त करते हुए एक कविता पढ़ी, “I wish to stay right at the start, you’re a class apart…”

    वहीं, इस मौके पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि, ‘न्यायपालिका में महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोग भी मानव होते हैं और उन्हें बड़ी जिम्मेदारियों का निर्वहन करना होता है. उन्होंने सीजेआई चंद्रचूड़ के मानवीय पहलू की सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने महिला कर्मचारियों के लिए घर से काम करने की अनुमति दी और अदालत में क्रेच सुविधाएं उपलब्ध कराई. ऐसी कई छोटी-छोटी संवेदनशीलता से भरी घटनाएं उनकी अदालत की डायरी का हिस्सा बनेंगी.

    इस दौरान नवनियुक्त सीजेआई संजीव खन्ना ने कहा कि, “जब न्याय का एक विशाल वृक्ष पीछे हटता है, तो हवाएं अलग तरह से चलती हैं, अन्य वृक्ष उस शून्य को भरने की कोशिश करते हैं, लेकिन वन कभी वैसा नहीं रह जाता.” उन्होंने कहा, “चंद्रचूड़ साहब एक विद्वान हैं, उतने ही गहरे जुरिस्ट भी. उनके धैर्य और कार्य नीति का मैं प्रशंसक हूं. उनके नेतृत्व में अदालत में नई इमारतों का निर्माण और एक विशेष वार रूम की स्थापना हुई. उनके नेतृत्व ने न्यायालय को समावेशिता का एक केंद्र बनाने का लक्ष्य रखा.”

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