भोपाल। मध्य प्रदेश में 28 विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव को लेकर हार और जीत के गणित को लेकर कोई भी कुछ भी साफ कहने को तैयार नहीं है। 28 सीटों के महामुकाबले में हर सीट पर कांटे का मुकाबला है। उपचुनाव में यह पहला मौका है कि जब उम्मीदवारों को एक-एक वोट की चिंता सता रही है। इस बार उम्मीदवारों को सबसे ज्यादा चिंता उनके हिस्से के वोट ले जाने वाले नोटा को लेकर है। दरअसल 2018 के विधानसभा चुनाव में आधा दर्जन सीटें ऐसी थीं जहां पर उम्मीदवारों की हार और जीत के पीछे नोटा का बड़ा रोल रहा था। और यही कारण है कि इस बार सीट को जीतने के लिए एक-एक वोट को लेकर नेता फिक्रमंद दिख रहे हैं। नोटा यानी कि कोई उम्मीदवार पसंद नहीं होने पर मतदाता नोटा का बटन दबाकर अपना वोट देते हैं। ऐसे में यही यही कारण है के नोटा के खौफ से भाजपा और कांग्रेस लोगों को वोट डालने के लिए प्रेरित करने के साथ ही अपने पक्ष में वोट देने की अपील कर रही है। प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा है इस बार नोटा का कोई बड़ा रोल नहीं होगा और भाजपाई जिस तरीके से घर- घर पर दस्तक दे रहे हैं, उसका फायदा हमें होगा। उन्होंने कहा कि वोटर अपना वोट कमल पर ही देगा। दरअसल, प्रदेश की 28 सीटों पर हो रहे उपचुनाव से पहले 2018 के नतीजों पर नजर डालें तो काफी संख्या में लोगों ने नोटा का बटन दबाया था। इन वजहों से कुछ सीटों पर जीत अंदर काफी कम हो गया था।
ये रहे आंकड़ें
सुवासरा से हरदीप सिंह डंग 350 वोटों से जीते थे, जबकि यहां पर नोटा को 2976 वोट मिले थे। इसी तरह नेपानगर में सुमित्रा कासडेकर 1264 वोटों से जीती थींं। यहां 2551 मत नोटा में डाले गए थे। ब्यावरा से गोवर्धन दांगी ने 1481 वोट जीत हासिल की थी। इस सीट पर 1481 वोट ही नोटा को मिले थे। वहीं, सांवेर में तुलसीराम सिलावट 2945 वोटों से जीते थे, जबकि यहां पर नोटा को 2591 वोट मिले। इसकी वजह से यहां पर जीत का अंतर महज 354 वोट का ही रहा था। वहीं, आगर में भाजपा के मनोहर ऊंटवाल को 2490 वोटों से जीत मिली थी।
इस बार नोटा वाले वोट उनके खाते में जाए
वहीं, कांग्रेस की भी कोशिश है कि इस बार नोटा वाले वोट उनके खाते में जाए। इसके लिए कांग्रेस बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं की मदद लेने का काम कर रही है। बहरहाल, 2020 के उपचुनाव में जीत के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे नेताओं को चिंता इस बात को लेकर भी है कि चुनाव में उनका खेल बिगाडऩे वाला नोटा इस बार भी कहीं भारी न साबित हो जाए। यही कारण है कि दोनों ही दल लोगों को जागरूक कर नोट की बजाए उनके पक्ष में मतदान की अपील करते हुए सुनाई दे रहे हैं। लेकिन तमाम मुद्दों के बीच सियासी दलों से टूट चुका आम मतदाता की पसंद पर इस बार नोटा कितना खरा उतरता है यह देखना भी दिलचस्प होगा।
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