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    Chhath Puja : कैसे मनाया जाता है छठ पूजा महोत्‍सव, इष्ट उपासना के साथ-साथ प्रकृति से जुड़ने का संदेश

  • November 16, 2023

    नई दिल्‍ली (New Delhi)। Chhath Puja 2023-छठ लोक आस्था का महान पर्व होने के साथ ही साथ प्रकृति की उपासना और संतुलन का महापर्व भी है। यह चार दिनों का आयोजन होता है। जिसकी शुरुआत आज से यानी नहाय-खाय के साथ हो गई है। इसके बाद खरना होता है। उसके षष्ठी को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य (offering prayers to the sun) दिया जाता है। उसके अगले दिन सुबह में उदयगामी सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है।

    इसमें प्रसाद के रूप में उन्हीं चीजों को शामिल किया जाता है जो प्रकृति से जुड़ा होता है। प्रसाद स्वरूप चढ़ने वाली हर एक चीज मौसमी फसल से जुड़ी है। फल, खाद्य वस्तुएं हों या फिर अर्घ्य देने के लिए सूप और डलिया। सब प्रकृति का अहम हिस्सा हैं। छठ का मुख्य प्रसाद ठेकुआ (खजूर) पकाने के लिए मिट्टी के चूल्हे का उपयोग किया जाता है।



    नहाय-खाय से खुद को करती हैं तैयार
    छठ के पौराणिक महत्व की चर्चा हम यहां नहीं करेंगे। केवल इसके विधान की बात करते हैं। जैसा हमलोग ऊपर में चर्चा कर चुके हैं कि आज पहला दिन है यानी नहाय-खाय का दिन। शुक्रवार को व्रती नदी घाटों, पोखर तालाब और अन्य जलाशयों में स्नान करेंगी। इसके बाद अरबा चावल का भात, चना दाल और कद्दू की सब्जी खाने का प्रचलन है। बाद में इसको परिवार के अन्य सदस्य भी ग्रहण करते हैं। इसका अपना एक खास महत्व होता है। इसके बारे में कहा गया है कि इसके माध्यम से व्रती खुद को निर्जला व्रत के लिए तैयार करती हैं।

    पूरे दिन निर्जला रहती हैं व्रती
    इसके अगले दिन खरना होता है। यह कार्तिक शुक्ल पंचमी को होता है। इस बार यह शनिवार को है। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला रहती हैं। शाम को गन्ने के रस से तैयार गुड़ से खरना में रसियाव या खीर बनाती हैं। इसे व्रती पूजा करने के बाद ग्रहण करती हैं। इसमें घी लगी रोटी भी प्रसाद के रूप में अर्पित किया जाता है। व्रती के बाद इसे परिवार के अन्य सदस्य भी लेते हैं। इस तरह पर्व का दूसरा दिन पूरा हो जाता है।

    आरोग्य की कामना
    चार दिवसीय अनुष्ठान के तीसरे दिन यानी कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सांध्यकालीन अर्घ्य दिया जाता है। इसके लिए विशेष रूप से ठेकुआ तैयार किया जाता है। प्रसाद तैयार हो जाने के बाद इसे बांस के सूप व टोकरी में फल के साथ सजाया जाता है। इसकी पूजा होती है। इसके बाद पास के जलाशय में जाकर स्नान कर अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को अर्घ्य दिया जाता है। जिसमें व्यक्तिगत कल्याण के साथ ही साथ संसार के उत्थान की कामना की जाती है। रोचक यह है कि पूजा होने के बाद भी उस दिन के प्रसाद को नहीं खाया जाता है।

    अंतिम दिन सूर्योदय का इंतजार
    इसके बाद इस अनुष्ठान के अंतिम दिन यानी सप्तमी की सुबह उदयागामी सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है। स्नान की प्रक्रिया पूरी करने के बाद पानी में खड़ा होकर भगवान भास्कर को ध्यान करते हुए आरोग्य की कामना की जाती है। इस दिन सुबह में छठ घाटों का दृश्य मनोहारी होता है। सभी को सूर्य के उगने का इंतजार होता है। सूर्य उगने के बाद उनकी पूजा-अर्चना के साथ ही यह अनुष्ठान संपन्न हो जाता है। भक्तों में प्रसाद बांटे जाते हैं। प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रती भी सामान्य भोजन करती हैं।

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