नई दिल्ली (New Delhi)। छठ पूजा (Chhath Puja) का पर्व पूरे देश में काफी धूमधाम से मनाया जाता है। मुख्य रूप से उत्तर भारत के राज्य बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में छठ बहुत उत्साह से मनाया जाता है। 17 नवंबर से शुरू हो रहा है जिसका समापन 20 नवंबर को होगा।
प्रकृति की आराधना-उपासना का महापर्व छठ बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और झारखंड में मनाया जाने वाला लोकआस्था का त्योहार है। इस पर्व को मनाने के पीछे जो दर्शन है, वह विश्वव्यापी है। शायद यही कारण है कि आज इस पर्व के प्रति न सिर्फ देश बल्कि विदेशों में भी लोगों में आस्था देखी जा रही है। छठ पर्यावरण संरक्षण, रोग-निवारण व अनुशासन का पर्व है। इसका उल्लेख आदिग्रंथ ऋग्वेद में भी मिलता है।
छठ पूजा में सूर्य की उपासना की जाती है। साथ ही, कठिन व्रत व नियमों का पालन किया जाता है। इस तरह यह प्रकृति पूजा के साथ-साथ शारीरिक, मानसिक और लोकाचार में अनुशासन का भी पर्व है। दीपावली पर लोग अपने घरों की सफाई करते हैं, तो छठ पर नदी-तालाब, पोखरा आदि जलाशयों की सफाई करते हैं। दीपावली के अगले दिन से ही लोग इस कार्य में जुट जाते हैं, क्योंकि बरसात के बाद जलाशयों और उसके आसपास कीड़े-मकोड़े अपना डेरा जमा लेते हैं, जिसके कारण बीमारियां फैलती हैं।
देश के कई शहरों में होती है छठ पूजा
दिल्ली के अलावा, मुंबई, सूरत, अहमदाबाद समेत देश के विभिन्न महानगरों में पूर्वांचली प्रवासी धूमधाम से छठ मनाते हैं। यही नहीं, मॉरीशस, फिजी व अमेरिका समेत कई देशों में भी भारतीय प्रवासी छठ मनाने लगे हैं, जिसे देखकर विदेशी लोगों में इस पर्व के प्रति आकर्षण बढ़ा है। छठ को पर्यावरण संरक्षण से जोड़ते हुए अगर केंद्र व राज्य सरकारें श्रद्धालुओं की मदद से देश के विकास में इस पर्व का योगदान सुनिश्चित करें तो यह एक सकारात्मक पहल होगी।
प्रकृति पूजा हिंदू धर्म की संस्कृति है। इसीलिए हमारे यहां नदी, तालाब, कुआं, वृक्ष आदि की पूजा की परंपरा है। ऋग्वेद में भी सूर्य, नदी और पृथ्वी को देवी-देवताओं की श्रेणी में रखा गया है। छठ जीवन-पद्धति की सीख देने वाला त्योहार भी है। इसलिए इस महापर्व को स्वच्छता का राष्ट्रीय त्योहार घोषित किया जाना चाहिए। साथ ही, ऊर्जा संरक्षण, जल संरक्षण, रोग-निवारण व अनुशासन के इस पर्व को पूरे भारत में मनाया जाना चाहिए। छठ को राष्ट्रीय पर्व घोषित किए जाने से देश के कोने-कोने में फैले जलाशयों की सफाई के प्रति लोगों में जागरूकता आएगी और इससे जल-संरक्षण अभियान को भी गति मिलेगी।
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