नई दिल्ली (New Delhi) । इन दिनों इंटरनेट (Internet) की दुनिया में चैट जेनेरेटिव प्री-ट्रेंड ट्रांसफॉर्मर (Chat Generative Pre-trend Transformer) यानी चैटजीपीटी को लेकर खूब चर्चाएं हो रही हैं। ओपन-एआई कंपनी (Open-AI Company) द्वारा तैयार किए गए इस चैटबॉट (chatbot) से आप जो भी सवाल करते हैं। उसका यह लगभग सटीक उत्तर देता है। हालांकि, अकादमिक और शिक्षा जगत के विशेषज्ञों ने इस बात पर चिंता जताई है। कनाडा के ब्रोक विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर ब्लायन हगार्ट के अनुसार, ‘हमें केवल इतनी चिंता नहीं कि चैटजीपीटी का उपयोग कर रहे धोखेबाजों को कैसे पकड़ेंगे? बल्कि सबसे बड़ी चिंता है कि कोई चैटजीपीटी से ली जानकारियों को सच कैसे मान सकता है?’
प्रो. ब्लायन के अनुसार, अपना स्रोत बताए बिना इनसे मिले लेख हमारे समाज की नींव कहे जाने वाले अकादमिक जगत, शिक्षण संस्थानों और प्रेस व मीडिया तक में भी उपयोग हो सकते हैं। यह पूरे सूचना तंत्र के लिए खतरा होगा। यही कारण है कि दुनिया के प्रमुख विश्वविद्यालयों, शैक्षिक संस्थाओं ने तो इसे प्रतिबंधित करना शुरू कर दिया है। इनमें फ्रांस का प्रख्यात साइंसेस पो प्रमुख है। कई ऑस्ट्रेलियाई विश्वविद्यालय भी यह कदम उठा चुके हैं।
हमने विश्वसनीयता मापने के वैज्ञानिक तरीके बनाए थे
प्रो. ब्लायन के अनुसार, हमें कोई बात बताई जाती है तो हम पहले देखते हैं कि उसका स्रोत क्या है? ताकि उसकी विश्वसनीयता माप सकें। वैज्ञानिक तरीके से हासिल ज्ञान को ही सामान्य ज्ञान माना जाता है। विज्ञान केवल प्रयोगशाला में सीमित नहीं है। हम अपने दिमाग व अनुभवों से जैसा सोचना सीखते हैं, साक्ष्यों का कैसे मूल्यांकन व उपयोग करते हैं, यह भी विज्ञान का हिस्सा है। हमने कई सदियों में इसी प्रकार ज्ञान को परखने का उत्कृष्ट मानक बनाया है।
हर क्षेत्र के अपने मानक
अकादमिक जगत : यहां किसी विषय पर लेख संबंधित विशेषज्ञ ही लिखते हैं। वे ज्ञान के स्रोत को समझते हैं, क्षेत्र की जानकारियों की वैधता परख चुके होते हैं, वे भी उद्धरण देते हैं। तभी हम उनकी कही बातों पर विश्वास करते हैं। उद्धरणों की वजह से यूजर्स खुद भी उनकी बातों की पुष्टि कर पाते हैं।
पत्रकारिता : कोई पत्रकार सूचना देने से पहले उसकी पड़ताल करता है, खबर में स्रोतों का उल्लेख करता है, साक्ष्य देता है। बेशक कभी-कभी वे गलती या चूक कर जाते हैं, फिर भी इस मामले में पत्रकारिता पेशे की विश्वसनीयता है।
सच बनाम ‘केवल आउटपुट’
प्रो. ब्लायन के अनुसार, चैटजीपीटी इंसानों की नकल कर वाक्य व गद्यांश रचता है। यह वैज्ञानिक ढंग से लिखा गया लेख नहीं, केवल आउटपुट है, जिस पर अकादमिक क्षेत्र से जुड़े लेखकों के लेख या प्रेस रिपोर्टरों की सूचनाओं जैसा विश्वास नहीं किया जा सकता। लेख किस प्रकार तैयार हुए, यह बुनियादी फर्क है। चैटजीपीटी मशीन लर्निंग आधारित जटिल भाषायी मॉडल जैसा है, जो गूगल के ‘ऑटो-कंप्लीट’ फीचर की तरह काम करता है। चैटजीपीटी अपने लेख खुद भी नहीं समझता, यह केवल आउटपुट है, सच नहीं।
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