नई दिल्ली (New Dehli)। आगामी लोकसभा चुनाव (upcoming lok sabha elections)के दौरान महाराष्ट्र पर सबसे ज्यादा लोगों की निगाहें (people’s eyes)होंगी। इसकी प्रमुख वजह राज्य (main reason state)के राजनीतिक घटनाक्रम (political developments)हैं। महाराष्ट्र एकमात्र राज्य है जिसने 2019 के आम चुनावों के बाद गठबंधन की राजनीति में बड़ा बदलाव देखा है। शिवसेना और एनसीपी के बंटवारे से लेकर इन पार्टियों के ‘मालिकाना हक’ तक, महाराष्ट्र में पिछले दिनों खूब बवाल हुआ। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या महाराष्ट्र का बदला राजनीतिक माहौल संसदीय चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को मदद करेगा या इसका उलटा असर होगा? आइए समझते हैं।
अभी बंपर फायदे में INDIA
अगर जनवरी में चुनाव हुए होते तो भाजपा और सहयोगियों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता था। सर्वे के मुताबिक, भाजपा और उसके सहयोगियों को महाराष्ट्र की कुल 48 लोकसभा सीटों में से 22 सीटें मिलती। यह 2019 में एनडीए को मिली सीटों से 19 सीटें कम हैं। सर्वे के मुताबिक, अगर 2024 के लोकसभा चुनाव जनवरी में होते हैं, तो कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन को महाराष्ट्र में 26 सीटें मिलतीं। इससे 2019 के मुकाबले कांग्रेस और उसके गठबंधन को सीधे 21 सीटों का लाभ होता। सर्वे के मुताबिक, एनडीए का वोट शेयर 40 फीसदी रहता। वहीं कांग्रेस को 12 सीटें मिलतीं। इसके अलावा, शरद पवार के नेतृत्व वाले एनसीपी गुट और उद्धव ठाकरे सेना को 14 सीटें मिल सकती थीं। विपक्षी गठबंधन का वोट शेयर 45 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया।
2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से महाराष्ट्र में राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से बदला। पार्टियों के भीतर और बाहर काफी कुछ हुआ। शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस (NCP) में दो फाड़ हुए और अब ‘असली पार्टियां’ भाजपा के साथ हैं। लगभग इसी तरह की उथल-पुथल देखने वाला एक और राज्य बिहार है। लेकिन महाराष्ट्र के समीकरण भाजपा और उसके सहयोगियों के लिए ठीक बैठते नहीं दिख रहे हैं।
2019 में किसने कितनी सीटें जीतीं?
2019 के लोकसभा चुनाव की बात की जाए तो भाजपा ने एकजुट शिवसेना के साथ चुनाव लड़ा था। तब उसका उद्धव ठाकरे ने किया था। बीजेपी ने 25 सीटों पर चुनाव लड़ा, जबकि शिवसेना 23 सीटों के साथ मैदान में थी। भाजपा ने 25 सेटों में से 23 में जीत हासिल की और शिवसेना ने 23 में से 18 में जीत हासिल की। महाराष्ट्र में एनडीए की संख्या 41 रही।
कांग्रेस ने 2019 का लोकसभा चुनाव राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के साथ गठबंधन में लड़ा। एनसीपी भी तक एकजुट थी और शरद पवार इसके नेता था। सीट बंटवारे पर बातचीत के बाद कांग्रेस को चुनाव लड़ने के लिए 25 सीटें और एनसीपी को 19 सीटें मिलीं। इनमें से कांग्रेस को सिर्फ एक सीट और एनसीपी को चार सीटों पर जीत मिली थी। महाराष्ट्र में यूपीए की सीटें पांच रहीं।
तब से महाराष्ट्र की राजनीतिक में काफी कुछ बदला
तब से महाराष्ट्र की राजनीतिक में काफी कुछ बदला। भाजपा की सहयोगी शिवसेना और 2019 में कांग्रेस की सहयोगी एनसीपी दोनों अलग हो गए हैं। शिवसेना का एकनाथ शिंदे गुट अब आधिकारिक पार्टी है और ‘धनुष और तीर’ चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ेगा। शरद पवार के नेतृत्व वाली इकाई से अलग हुए अजित पवार गुट को भी चुनाव आयोग द्वारा आधिकारिक दर्जा और ‘घड़ी’ चुनाव चिन्ह दिया गया है। आधिकारिक तौर पर शिवसेना और एनसीपी दोनों महाराष्ट्र सरकार में भाजपा के गठबंधन सहयोगी हैं और लोकसभा चुनाव एक साथ लड़ेंगे। उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाला शिव सेना (यूबीटी) का गुट और शरद पवार की इकाई – एनसीपी (शरदचंद्र पवार) – इंडिया गठबंधन का हिस्सा हैं और कांग्रेस के साथ पार्टनरशिप में चुनाव लड़ेंगे।
क्यों फायदा नहीं?
भाजपा ने एकनाथ शिंदे और अजित पवार के नेतृत्व वाले शिवसेना और राकांपा से अलग हुए गुटों का अपने पाले में स्वागत किया है। लेकिन सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि शिवसेना और एनसीपी में विभाजन के बाद बीजेपी को कोई फायदा नहीं हुआ है। क्योंकि सहानुभूति वोट से उद्धव ठाकरे और शरद पवार दोनों को फायदा होता दिख रहा है। ज्ञात हो कि बीजेपी ने शरद पवार पर नहीं बल्कि अजित पवार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर एनसीपी पर निशाना साधा था। ऐसे में सर्वे में शामिल महाराष्ट्र के मतदाताओं को यह पसंद नहीं आया होगा कि उन्हीं अजित पवार का एनडीए में स्वागत किया गया है।
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