नई दिल्ली (New Delhi) । भारत (India) के महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-3 (Chandrayaan 3 ) ने बृहस्पतिवार को तब एक बड़ी उपलब्धि हासिल की जब इसका लैंडर मॉड्यूल (lander module) सफलतापूर्वक प्रणोदन मॉड्यूल (propulsion module) से अलग हो गया और अब पूरे देश को 23 अगस्त को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर इसकी निर्धारित ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ की प्रतीक्षा है। लैंडर मॉड्यूल में लैंडर ‘विक्रम’ और रोवर ‘प्रज्ञान’ शामिल हैं जो अब एक ऐसी कक्षा में उतरने के लिए तैयार है जिससे यह चंद्रमा (moon) की सतह के और करीब आ जाएगा। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ अगले बुधवार को शाम 5.47 बजे निर्धारित है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, ”लैंडर मॉड्यूल ने कहा, यात्रा के लिए धन्यवाद, दोस्त। लैंडर मॉड्यूल, प्रणोदन मॉड्यूल से सफलतापूर्वक अलग हो गया है। कल (शुक्रवार) लैंडर मॉड्यूल के भारतीय समयानुसार शाम करीब चार बजे डीबूस्टिंग (गति कम करने की प्रक्रिया) से गुजरते हुए चंद्रमा की कक्षा में थोड़ा और नीचे आने की उम्मीद है।” अनुमानित तौर पर 600 करोड़ रुपये की लागत वाले चंद्रयान-3 को 14 जुलाई को चांद के दक्षिणी ध्रुव तक की 41 दिन की जटिल यात्रा पर रवाना किया गया था।
इसरो के एक अधिकारी ने कहा कि बृहस्पतिवार को प्रणोदन मॉड्यूल से अलग हुए लैंडर को एक ऐसी कक्षा में लाने के लिए ‘डीबूस्ट’ (गति कम करने की प्रक्रिया) से गुजारा जाएगा, जहां पेरिल्यून (चंद्रमा से कक्षा का निकटतम बिंदु) 30 किलोमीटर और अपोल्यून (चंद्रमा से सबसे दूर का बिंदु) 100 किमी की दूरी पर होगा, जहां से चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ का प्रयास किया जाएगा। राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी ने यह भी कहा कि प्रणोदन मॉड्यूल वर्तमान कक्षा में अपनी यात्रा महीनों/वर्षों तक जारी रखेगा। चंद्रयान-1 के परियोजना निदेशक एम अन्नादुरई ने पीटीआई-भाषा से कहा, “मैच वास्तव में अब शुरू होता है। ये अंतिम ओवर हैं जिनके बारे में हम बात कर रहे हैं।” चंद्रयान-3 से पहले भेजा गया चंद्रयान-2 सात सितंबर 2019 को ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने में असफल रहा था।
चंद्रयान-3 का उद्देश्य भी चंद्र सतह पर सुरक्षित ‘साफ्ट लैंडिंग’ करने, चांद पर रोवर के घूमने और वैज्ञानिक प्रयोग करने का है। चंद्रयान-1 मिशन 2008 में भेजा गया था। अगर चंद्रयान-3 ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने में सफल रहता है तो अमेरिका, चीन और पूर्व सोवियत संघ के बाद भारत इस तकनीक में महारत हासिल करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। इसके साथ ही चंद्रमा के अज्ञात दक्षिणी ध्रुव की दौड़ भी तेज हो गई है और रूस का लूना-25 भी अगले सप्ताह चंद्रमा पर उतरने की तैयारी कर रहा है। दोनों यानों के चंद्रमा पर उतरने की संभावित तारीखों से संबंधित टकराव ने भी दुनिया भर के वैज्ञानिक समुदाय में उत्साह बढ़ा दिया है।
लूना-25 के चंद्र सतह पर उतरने की तारीख जहां 21-23 अगस्त है, वहीं चंद्रयान-3 के उतरने की तारीख 23-24 अगस्त है। चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्र पर्यावरण और वहां से संबंधित कठिनाइयों के लिहाज से बहुत अलग भूभाग हैं और इसलिए ये अज्ञात बने हुए हैं। चंद्रमा पर पहुंचने वाले पिछले सभी अंतरिक्ष यान भूमध्यरेखीय क्षेत्र में, चंद्र भूमध्य रेखा के उत्तर या दक्षिण में कुछ डिग्री अक्षांश पर उतरे थे। चांद के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र का अन्वेषण इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके आसपास स्थायी छाया वाले क्षेत्रों में पानी की मौजूदगी की संभावना हो सकती है। अन्नादुरई ने कहा, “यह एक महान क्षण है और इससे पता चलेगा कि लैंडर कैसा प्रदर्शन कर रहा है तथा इसे चंद्रमा के और करीब लाया जाएगा.. फिर इसे आवश्यक कमान दी जाएगी जिससे कि संकेत प्राप्त करते हुए यह 23 अगस्त को लक्षित स्थान तक पहुंचे और सुरक्षित लैंडिंग करे।”
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