नवरात्रि के नौ दिनों में माता के विभिन्न रूपों का स्मरण किया जाता है। उसी क्रम में नवरात्रि के तीसरे दिन माँ चंद्रघण्टा के स्मरण का विधान है। वैसे तो माँ का प्रत्येक स्वरूप अनूठी शक्ति का वरदान है, परंतु यह स्वरूप राक्षसों का संहार करने के लिए प्रसिद्ध है। माँ के 10 हस्त है जिनमें धनुष, त्रिशूल, तलवार, गदा इत्यादि सुशोभित होते है। माँ की दश भुजाएँ पाँच कर्मइंद्रिय और पाँच ज्ञानइंद्रिय की ओर संकेत करती है। यदि मनुष्य इंद्रियों के अधीन रहेगा तो मनोवांछित फल प्राप्त नहीं कर पाएगा, इसीलिए माँ अपने उपासकों को जितेंद्रिय होने की भी प्रेरणा देती है।
माँ सिंह पर सवारी करती है। माँ के प्रत्येक स्वरूप की छवि अनुपम, न्यारी, भव्य और शक्ति स्वरूपा है। माँ के मस्तक पर अर्धचंद्र भी दिखाई देता है, इसलिए इन्हें चंद्रघण्टा कहा जाता है। माँ चंद्रघण्टा का स्वरूप मन की चेतना को भी नियंत्रित करने में सहयोगी रहता है। घण्टे की विशेषता होती है कि उसमें ध्वनि कंपन उत्पन्न होता है जोकि सकारात्मक ऊर्जा का जनक है। माँ चंद्रघण्टा का आह्वान भक्त के मन की नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित कर भक्तों को मन की प्रबलता देता है। यहाँ पर चन्द्र हमारे अस्थिर मनोभावों एवं विचारों को प्रदर्शित करता है। यदि मानव विचारों के मायाजाल में फँसा रहेगा तो जीवन में स्थिरता प्राप्त करना मुश्किल होगा।
माँ चंद्रघण्टा हमें विचारों के बोझ से मुक्ति दिलाकर देवीय चेतना की अनुभूति कराती है। माँ चंद्रघण्टा की कृपा अपने भक्तों को एकाग्रता प्रदान कर उनके कष्टों को त्वरित न्यून कर देती है। जिस प्रकार माँ के स्वरूप में अदम्य साहस और ऊर्जा संचारित होती है वैसे ही साधक भी साहसी और निर्भय हो जाता है। शरीर और वाणी में अजीब सी कान्ति और सौम्यता दिखाई देती है। नवरात्रि प्रथम दिवस हमनें दृढ़ता, द्वितीय दिवस सद्चरित्रता और तृतीय दिवस हमें मन की एकाग्रता प्रदान करता है। ईश्वर सिर्फ और सिर्फ विश्वास एवं प्रेम से मिलते है, इसलिए पूर्व विश्वास से माँ के प्रत्येक स्वरूप की सच्चे हृदय से आराधना कर जीवन में सुख, शांति, खुशहाली एवं शक्ति प्राप्त करें।
डॉ. रीना रवि मालपानी
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