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परीक्षा व्यवस्था की प्रामाणिकता की चुनौती

July 13, 2024

– गिरीश्वर मिश्र 

प्रतिष्ठित ‘नीट’ की परीक्षा पेपर लीक की घटना से अधर में लटकी है और उसकी प्रामाणिकता ख़तरे में है। ऐसे ही यूजीसी की शोधवृत्ति और अध्यापकी की पात्रता दिलाने वाली ‘नेट’ की ताजा परीक्षा रद्द कर दी गई है कारण कि परीक्षा का प्रश्नपत्र छात्रों तक परीक्षा शुरू होने के पहले ही पहुँच गया था। जानकारी के हिसाब से कुछ ख़ास स्थानों पर ही इस शैक्षिक हादसे के किरदार सक्रिय थे। यह सांस्कृतिक परिवर्तन को भी बता रहा है। ताजा घटनाओं से परीक्षा की प्रक्रिया में बाधा आई। अपने परिश्रम का प्रतिसाद न पाने के कारण परीक्षार्थियों में घोर निराशा पैदा हुई है । इन संवेदनशील मामलों को लेकर अब तक की हुई तहक़ीक़ात से खबर यही आ रही है कि हादसा स्थानीय था और उसका प्रभाव सीमित था। इन परीक्षाओं के षड्यंत्र में परीक्षार्थी, उद्यमी और नेता आदि अनेक क़िस्म के लोगों की मिलीभगत का धीरे-धीरे पर्दाफ़ाश हो रहा है। लापरवाही, बेईमानी और भ्रष्टाचार की तमाम कहानियाँ सामने आ रही हैं। गिरफ़्तारी हो रही है, जाँच जारी है और अदालती कारवाई भी चल रही है। यह सब पूरा क़ानूनी है, यानी पर्याप्त समयसाध्य है और आगे भी अनंत काल तक चलता रहेगा । इतिहास बताता है कि इस तरह के मामलों का परिणाम अनिश्चित रहता है। पर यह कथा किसी भी तरह नयी नहीं है। पहले भी ऐसी घटनाएँ ज्ञात और अज्ञात रूप से होती रही हैं परंतु ज़रूरी सुधार नहीं हो सके हैं। इन सबका सम्मिलित परिणाम युवा वर्ग में कुंठा को बढ़ाने वाला है और उनके कैरियर बनाने में बाधक है।


दरअसल परीक्षा और उसके परिणाम भारतीय जीवन के ऐसे प्रमुख स्तम्भ के रूप में स्वीकृत हो चुके हैं जो पूरे आदमी पर जन्म भर अपना प्रभाव बनाए रखते हैं। वे अपरिवर्तनीय ब्रह्म रेख जैसे होते हैं जिनको ढोते ही रहना होता है। परिणाम देने वाले होने के कारण आकर्षण और प्रलोभन के अनिवार्य केंद्र बन कर परीक्षा का भूत विद्यार्थियों और अभिभावकों के मन-मस्तिष्क पर बुरी तरह से छाया रहता है। चूँकि परीक्षा के ताले में ही भविष्य क़ैद हो छिपा रहता है और सभी उसकी कुंजी की तलाश में रहते हैं। यह हमारी शिक्षा व्यवस्था का कष्टदायी पक्ष है जिधर अभी तक कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया जा सका है। सत्य यही है कि आज जीवन में परीक्षा का प्रभुत्व इतना बढ़ चुका है कि येन केन प्रकारेण परीक्षा की कुंजी हासिल कर लेना सबके लिए जीवन मरण का प्रश्न बन चुका है। इस पार या उस पार जैसी स्थिति के होने कारण साधारण विद्यार्थी अपने अध्ययन-अध्यवसाय का आधार लेते हैं और परिश्रम करते हैं। दूसरी तरफ़ धन और शक्तिसम्पन्न ऐसे लोगों की संख्या बढ़ रही है जो बिना पढ़े-लिखे परीक्षा पास करने की ग़ैर क़ानूनी और अनैतिक जुगत लगाने की फ़िराक़ में रहते हैं और सबकुछ ठीक-ठाक रहा तो सफल भी हो जाते हैं।

परीक्षा के निर्णायक महत्व को देख कर परीक्षा में सफलता को सुरक्षित कराने की ललक सबके मन में होती है। ऐसी स्थिति में नक़ल करा कर बिना पढ़े परीक्षार्थी को परीक्षा में सही उत्तर लिखने-लिखाने तथा अंकों में हेराफेरी करने आदि द्वारा परीक्षा परिणाम को अपने पक्ष में करने का धंधा देश में बड़े पैमाने पर फैल रहा है। लाइन तोड़ कर आगे बढ़ने-बढ़ाने का चलन तेज़ी से बढ़ रहा है। यह सब एक बड़ा व्यापार बन चुका है जिसमें मनमाना पैसा वसूल किया जाता है। इसके अनेक रूप हैं जिसमें संचार की प्रौद्योगिकी की भी बड़ी भूमिका है। साथ ही कोचिंग जैसी वैकल्पिक शिक्षा की व्यवस्थाएँ भी इसमें जुट गई हैं। पकड़ में न आने पर इसका लाभ लेकर लोग परीक्षा में अनायास सफल हो कर नौकरी-चाकरी पाने में भी कामयाब हो जाते हैं। यदि इस शार्टकट से योग्यताविहीन सफल होते लोग नौकरी और व्यवसाय में यदि कार्य की गुणवत्ता को सुनिश्चित न कर सकें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

आज शिक्षा, परीक्षा और नौकरी का दुश्चक्र तेज़ी से फैल रहा है। रोज़गार के अवसर अपर्याप्त हैं। भारत जनसंख्या की दृष्टि विश्व में प्रथम के पद पर पहुँच चुका है पर जीने के संसाधन बेहद सीमित हैं। देश एक बड़ा बाज़ार हो चुका है पर उत्पादक न हो कर ख़रीददार है। साथ ही हमारी व्यवस्था न पर्याप्त है न चुस्त फलतः सभी प्रतीक्षारत हैं। विश्व में युवा देश के रूप में भारत से आशा बंधती है परंतु इस युवा शक्ति को नियोजित करना अत्यंत आवश्यक है। समाज और सरकार दोनों को इस युवा शक्ति को उपेक्षा कर अशक्त न बनाएँ। युवा वर्ग को सुशिक्षित और समर्थ बनाने की ज़रूरत है।

(लेखक, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व कुलपति हैं।)

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