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    सीजीआई ने दुष्‍कर्म पीड़िता के माता-पिता से बात कर सुप्रीम कोर्ट का आदेश पलटा, दिया ये फैसला

  • April 30, 2024

    नई दिल्‍ली (New Delhi) । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार 14 साल की नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता के गर्भ में पल रहे 31 सप्ताह के भ्रूण को समाप्त करने की अनुमति देने के अपने आदेश (Order) को वापस ले लिया। शीर्ष अदालत ने नाबालिग बच्ची के माता-पिता से बातचीत करने के बाद अपना आदेश वापस लिया है। बच्ची के माता-पिता ने वीडियो कांफ्रेंस के जरिए मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ (Chief Justice D.Y. Chandrachur) से बातचीत की और उन्होंने अपनी बेटी के स्वास्थ्य को लेकर चिंता जताते हुए, बच्चे को जन्म देने की इच्छा जाहिर की थी।

    मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमू्र्ति जे.बी. पारदीवाला की पीठ ने 22 अप्रैल को मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट देखने के बाद 14 साल की नाबालिग को गर्भपात कराने की अनुमति दे दी थी। पीठ ने संविधान के अनुच्छेद-142 के तहत पूर्ण न्याय करने की अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए यह फैसला दिया था। इसके साथ ही, पीठ ने अपने आदेश में कहा था कि ‘मेडिकल बोर्ड ने नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता के स्वास्थ्य की जांच की है और रिपोर्ट से साफ है कि गर्भावस्था जारी रहने से पीड़िता को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ेगा।’


    पीठ ने कहा था कि मेडिकल रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए पीड़ित नाबालिग लड़की को गर्भपात की अनुमति दी जा रही है। इसके साथ ही, मुंबई के सायन अस्पताल के डीन को नाबालिग का गर्भपात कराने के लिए डॉक्टरों के दल का तत्काल गठन करने का आदेश दिया था।

    बच्ची की माता-पिता से बातचीत करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बच्चे का हित सर्वोपरि है। पीठ ने कहा कि नाबालिग पीड़िता के माता-पिता ने बेटी को घर ले जाने और बच्चे को जन्म देने की इच्छा जाहिर की है। इसके मद्देनजर, 22 अप्रैल को पारित आदेश को वापस लिया जाता है, जिसके तहत गर्भपात कराने की अनुमति दी गई थी।

    शीर्ष अदालत ने बंबई हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए नाबालिग को गर्भपात की अनुमति दी थी। हाईकोर्ट ने नाबालिग को गर्भपात कराने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। इस मामले में पीठ ने 19 अप्रैल को पीड़िता के स्वास्थ्य की जांच के लिए मेडिकल बोर्ड गठित करने का आदेश दिया था। मेडिकल बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा गया कि यदि पीड़िता गर्भावस्था को जारी रखने से उसकी शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ेगा। कानून के मुताबिक 24 सप्ताह से अधिक के गर्भ को अदालत की अनुमति के बगैर खत्म नहीं किया जा सकता है।

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