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केंद्र सरकार ने जस्टिस यशवंत वर्मा के ट्रांसफर को दी मंजूरी

  • March 28, 2025

    नई दिल्ली: केंद्र सरकार (Central government) ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) कोलेजियम की सिफारिश पर न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा (Justice Yashwant Verma) के ट्रांसफर को मंजूरी दे दी है. अब वे दिल्ली हाईकोर्ट से इलाहाबाद हाईकोर्ट जाएंगे, जो उनका मूल कार्यक्षेत्र है. यह फैसला एक विवाद के बीच लिया गया, जिसमें उनके सरकारी आवास में आग लगने के बाद बड़ी मात्रा में कैश मिलने की खबर आई थी.

    अब वे इलाहाबाद हाईकोर्ट में जज के रूप में कार्यभार संभालेंगे. इसी के साथ, दिल्ली हाईकोर्ट के एक अन्य जज, जस्टिस चंद्रधारी सिंह का ट्रांसफर भी इलाहाबाद हाईकोर्ट में कर दिया गया है.

    बता दें कि कैश मिलने के मामले की जांच के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना ने 22 मार्च को जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ तीन सदस्यीय आंतरिक जांच शुरू की थी. आरोप है कि न्यायमूर्ति वर्मा के आधिकारिक आवासीय परिसर से करेंसी नोटों की गड्डियां पाई गई थीं, जहां 14 मार्च को आग लग गई थी. नोटों की ये गड्डियां आग बुझाने वाली फायर ब्रिगेड की टीम ने स्टोर रूम में देखी थीं. आग की चपेट में आने से बहुत सारे नोट जल गए थे.


    सुप्रीम कोर्ट द्वारा जस्टिस यशवंत वर्मा से जुड़े कैश कांड मामले में आंतरिक जांच के लिए गठित तीन सदस्यीय पैनल में- पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति शील नागू, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी एस संधावालिया और कर्नाटक उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति अनु शिवरामन शामिल हैं. यह जांच संविधान के तहत महाभियोग की प्रक्रिया से अलग है.

    56 वर्षीय जस्टिस यशवंत वर्मा ने 1992 में अधिवक्ता के रूप में रजिस्ट्रेशन कराया था. उन्हें 13 अक्टूबर 2014 को इलाहाबाद हाईकोर्ट का एडिशनल जज नियुक्त किया गया था और 1 फरवरी 2016 को स्थायी जज के रूप में शपथ दिलाई गई थी. उनका जन्म 6 जनवरी 1969 को इलाहाबाद में हुआ था. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से बी.कॉम (ऑनर्स) किया और फिर मध्य प्रदेश के रीवा विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री प्राप्त की.

    उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में संवैधानिक, श्रम एवं औद्योगिक कानूनों के साथ-साथ कॉर्पोरेट कानून, कराधान और संबंधित कानूनों पर अभ्यास किया. वह 2006 से हाईकोर्ट के विशेष वकील और 2012 से 2013 तक उत्तर प्रदेश सरकार के प्रमुख स्थायी अधिवक्ता भी रहे. 2013 में उन्हें वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया था.

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