नई दिल्ली। केंद्र सरकार (central government) ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)में हलफनामा दायर कर यह बताया है कि यह राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की ड्यूटी है कि वे सूचना प्रौद्योगिकी यानी आईटी कानून (IT Act) की रद्द की जा चुकी धारा 66ए (Section 66A) के तहत केस दर्ज करना बंद कर दें। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)ने इस धारा को साल 2015 में ही निरस्त कर दिया था लेकिन अभी तक इसके तहत मामले दर्ज हो रहे हैं, जिसको लेकर बीते महीने सुप्रीम कोर्ट((Supreme Court)) ने हैरानी जताई थी और केंद्र सरकार केंद्र सरकार (central government) से जवाब मांगा था।
हलफनामे में केंद्र सरकार(central government) ने कहा है कि 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने आईटी मंत्रालय को भेजी अपनी चिट्ठी में 2015 के आदेश का पालन करने को लेकर सूचना दी है लेकिन राज्य सरकारों के अधीन आने वाली कानून प्रवर्तन एजेंसियों की यह जिम्मेदारी है कि वे आईटी एक्ट की धारा 66ए के तहत कोई नया केस दर्ज न करें।
केंद्र सरकार (central government) ने हलफनामे में यह भी कहा है कि पुलिस और पब्लिक ऑर्डर भारत के संविधान के मुताबिक राज्यों के मामले हैं और किसी मामले की जांच, सजा देना प्राथमिक तौर पर राज्यों के अधीन आता है। हर राज्य की कानून प्रवर्तन एजेंसियां ही साइबर क्राइम करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करती हैं। इसलिए यह उनकी भी जिम्मेदारी है कि वे सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करे। बीते महीने पांच जुलाई को न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति के एम जोसेफ और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ (पीयूसीएल) की ओर से दायर आवेदन पर केंद्र को नोटिस जारी किया था। पीठ ने पीयूसीएल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारीख से कहा था, ‘क्या आपको नहीं लगता कि यह आश्चर्यजनक और चौंकाने वाला है? श्रेया सिंघल फैसला 2015 का है। यह वाकई चौंकाने वाला है। जो हो रहा है, वह भयानक है।’ एनजीओ की ओर से दायर आवेदन में यह पता लगा कि सुप्रीम कोर्ट ने आईटी एक्ट की जिस धारा को साल 2015 में निरस्त कर दिया था उसके तहत अब भी 11 राज्यों में 229 केस लंबित हैं। कानून की उस धारा के तहत अपमानजक संदेश पोस्ट करने पर तीन साल तक की कैद और जुर्माना का प्रावधान था।