कोलकाता । कोलकाता के आरजी कर हॉस्पिटल में ड्यूटी पर तैनात लेडी डॉक्टर से बलात्कार के बाद हत्या की जांच जारी है। शुक्रवार को सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने पूछा कि क्या अपराध में क्या सामूहिक दुष्कर्म का संकेत मिला है? क्या सीबीआई ने अतिरिक्त संदिग्धों की पहचान की है? सीबीआई की ओर से पेश हुए उप सॉलिसिटर जनरल राजदीप मजूमदार ने कहा कि यह मामला भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 70 (सामूहिक बलात्कार) के अंतर्गत नहीं आता है। उन्होंने अदालत को बताया कि अपराध स्थल से उपलब्ध सभी DNA सैंपल्स की फोरेंसिक जांच कर ली गई है। देशभर के अस्पतालों के डॉक्टर्स का 14 सदस्यीय मेडिकल बोर्ड गठित किया गया है। मजूमदार ने कहा कि किसी फोरेंसिक साक्ष्य से गैंगरेप का मामला स्थापित नहीं हुआ है। डीएनए प्रोफाइलिंग केवल दोषी ठहराए गए आरोपी संजय रॉय पर ही की गई थी।
हाई कोर्ट ने CBI को निर्देश दिया कि मामले में कोलकाता पुलिस की ओर से शुरू में तैयार की गई ‘केस डायरी’ प्रस्तुत करे। जस्टिस तीर्थंकर घोष की एकल पीठ ने सीबीआई को 23 अप्रैल को होने वाली अगली सुनवाई में उन लोगों की सूची सौंपने का भी निर्देश दिया जिनसे मामले में पूछताछ की गई थी। CBI ने मामले की जारी जांच को लेकर सीलबंद स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत की। महिला चिकित्सक का शव 9 अगस्त, 2024 को अस्पताल के सेमिनार हॉल में मिला था। अदालत ने 13 अगस्त, 2024 को मामले की जांच कोलकाता पुलिस से लेकर सीबीआई को सौंप दी थी। सीबीआई का पक्ष रखने के लिए अदालत के समक्ष पेश वकील ने कहा कि वह पिछली सुनवाई के दौरान पीठ द्वारा दिए गए निर्देशानुसार ‘केस डायरी’ भी लेकर आए हैं।
चोट के निशान को लेकर हुआ सवाल
इन रिपोर्ट्स के अलावा, सीबीआई ने मामले के हर पहलू की जांच की और कई डॉक्टरों, नर्स, कर्मचारियों और अन्य लोगों से पूछताछ की। अदालत ने इस पर कहा कि जांच और पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बीच विसंगतियां पाई गई हैं। न्यायमूर्ति घोष ने जोर दिया कि जांच रिपोर्ट में 2 चोट के निशान का उल्लेख किया गया है, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उक्त जानकारी नहीं थी। अदालत ने सवाल किया कि सीबीआई मौजूदा समय में किस पहलु को केंद्र में रखकर जांच कर रही है। इसके जवाब में मजूमदार ने कहा कि एजेंसी इस बात की जांच कर रही है कि क्या अपराध के पीछे कोई बड़ी साजिश थी और क्या सबूत नष्ट करने का कोई प्रयास किया गया था। इस मामले में सियालदह की सत्र अदालत ने संजय रॉय नामक व्यक्ति को दोषी करार देते हुए मृत्यु तक कारावास में रखने की सजा सुनाई थी।
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