इंदौर। 2015 में स्कूल द्वारा बनाए गए जाति प्रमाण पत्र में किसी भी छात्र का नाम के साथ सरनेम नहीं लिखा गया, जिसके कारण स्कूलों में तो कोई दिक्कत नहीं आई, लेकिन हायर एजुकेशन के लिए धक्के खाने पड़ रहे हैं । कलेक्टर ने मात्र आधे घंटे में मुझे जाति प्रमाण पत्र दिला दिया, वरना मैं डाक्टर नहीं बन पाती। उन्होंने जैसे मेरी मदद की वैसे ही मैं भी अब डाक्टर बनने के बाद जरूरतमंदों की मदद करूंगी
यह कहना था कलेक्टर कार्यालय पहुंची कनक मालवीय निवासी मूसाखेड़ी का। भोपाल एम्स में एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए सिलेक्ट होने के बावजूद भी कनक को एक जाति प्रमाण पत्र में छोटी सी गलती के चलते रीजेक्शन झेलना पड़ा था। 28 अक्टूबर को ही आखिरी डेट होने के कारण सुबह से ही मामा जितेन्द्र के साथ कलेक्ट्रेट कार्यालय पहुंच गई थी, लेकिन छुट्टी का माहौल देखते हुए किसी ने समझाइश दी कि कलेक्टर के घर ही चली जाओ। कलेक्टर मनीष सिंह अपने दरवाजे पर खड़े मामा-भानजी को देखा और खड़े रहने का कारण पूछा ।
बच्ची की परेशानी सुन उन्होंने अपर कलेक्टर राजेश राठौर को तुरंत निराकरण करने के निर्देश दिए। अधिकारियों ने भी मामले की संवेदनशीलता समझते हुए आधे घंटे के अंदर ही कनक का जाति प्रमाण पत्र बना दिया। अपर कलेक्टर राठौर ने नया जाति प्रमाण पत्र बच्ची को हाथों-हाथ सौंपा। बच्ची ने अग्निबाण से चर्चा करते हुए बताया कि मैं उम्मीद छोड़ चुकी थी, लेकिन कलेक्टर ने जैसे मेरी मदद की है, अब मैं भी जरूरतमंदों की मदद करूंगी एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी होने के बाद डॉक्टरी डिग्री मिलते ही सेवा भाव के साथ काम करूंगी।
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