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सार्वजनिक करना चाहिए जाति गणना का डेटा, बिहार सरकार को सुप्रीम कोर्ट की टिप्‍पणी

January 03, 2024

नई दिल्‍ली (New Dehli) । जाति आधारित सर्वे (caste based survey)के बाद बिहार सरकार (Bihar Government)ने ओबीसी के लिए आरक्षण बढ़ाने (increase reservation)जैसे नीतिगत निर्णय लेना शुरू कर दिया है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)ने मंगलवार को इस मामले पर सुनवाई और कहा कि राज्य को डेटा सार्वजनिक करना चाहिए ताकि लोगों को चुनौती देने की अनुमति मिल सके। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा कि मुख्य चिंता इस बात को लेकर है कि सरकार द्वारा एकत्र किए गए आंकड़ों को किस हद तक सार्वजनिक डोमेन में डाला जा सकता है ताकि इससे नागरिकों की निजता के अधिकार का उल्लंघन न हो।

सर्वेक्षण की वैधता को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील राजू रामचंद्रन ने अंतरिम आदेश की मांग करते हुए जोर दिया कि राज्य सर्वेक्षण के निष्कर्षों के आधार पर निर्णय लेने के लिए तेजी से आगे बढ़ रहा है। रामचंद्रन ने कहा, “हम जनगणना रिपोर्ट को रिकॉर्ड पर रखने के बाद अंतरिम राहत के लिए बहस करना चाहते हैं। रिपोर्ट को लागू किया जा रहा है और आरक्षण बढ़ाया गया है। चूंकि चीजें तेजी से आगे बढ़ रही हैं हम अंतरिम राहत के लिए बहस करना चाहेंगे।”


सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बिहार सरकार से सवाल किया कि ‘वह राज्य में कराए गए जातीय सर्वेक्षण के आंकड़े को किस हद तक रोक सकती है।’ शीर्ष अदालत ने बिहार में कराए गए जाति आधारित सर्वेक्षण की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर तत्काल सुनवाई करने से इनकार करते हुए यह टिप्पणी की है। जस्टिस संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा कि अगले सप्ताह मामले की सुनवाई संभव नहीं है।

पीठ ने कहा कि हमारी भी कुछ सीमाएं हैं, हम आपकी मांग पर विचार करेंगे, लेकिन यह अगले सप्ताह संभव नहीं है। पीठ ने इस मामले में अंतरिम आदेश पारित करने के लिए अगले सप्ताह विस्तार से सुनवाई की मांग को ठुकराते हुए यह टिप्पणी की। पीठ ने मामले की सुनवाई के लिए 29 जनवरी की तिथि तय की है। हालांकि शीर्ष अदालत ने सभी पक्षों के वकील से कहा कि मामले में कानूनी मुद्दे यानी उच्च न्यायालय के फैसले की सत्यता की जांच करनी होगी। साथ ही प्रकाशित की गई सर्वेक्षण रिपोर्ट पेश करने को कहा है।

इससे पहले, याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन ने पीठ ने पीठ से कहा कि इस मामले में तत्काल सुनवाई करने की आवश्यकता है। उन्होंने पीठ से कहा कि बिहार सरकार ने सर्वेक्षण की रिपोर्ट को प्रकाशित कर दिया है और इसे लागू करने के लिए राज्य में आरक्षण की सीमा भी बढ़ा दी है। उन्होंने कहा कि प्रकाशित की गई सर्वेक्षण रिपोर्ट पेश किए जाने के बाद वह मामले में अंतरिम राहत पाने के लिए विस्तृत बहस करने के लिए तैयार हैं। यह दलील देते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट से मामले की सुनवाई अगले सप्ताह करने की मांग की ताकि अंतरिम आदेश पारित किया जा सके।

सर्वेक्षण के निष्कर्षों की सार्वजनिक पहुंच के बारे में चिंतित

इसके साथ ही, जस्टिस खन्ना ने कहा कि ‘वह सर्वेक्षण के निष्कर्षों की सार्वजनिक पहुंच के बारे में चिंतित थे। उन्होंने कहा कि सर्वेक्षण की रिपोर्ट से अधिक मुझे इस बात की चिंता थी कि आंकड़े का ब्यौरा आम तौर पर जनता के लिए उपलब्ध नहीं कराया जाता है, जिससे बहुत सारी समस्याएं होती हैं। ऐसे में सवाल यह है कि सरकार किस हद तक सर्वेक्षण के आंकड़े को रोक सकती है?’

जातीय सर्वेक्षण की रिपोर्ट सार्वजनिक होने का दावा

इसके जवाब में बिहार सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने पीठ से कहा कि राज्य में हुए जातीय सर्वेक्षण की रिपोर्ट सार्वजनिक है। इस पर जस्टिस खन्ना ने कहा कि ‘ यदि रिपोर्ट पूरी तरह से सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है, तो यह एक अलग मामला है। लोगों को किसी विशेष निष्कर्ष को चुनौती देने की अनुमति देने के लिए आंकड़े का विवरण आम तौर पर उपलब्ध कराया जाना चाहिए।’

पटना उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी गई

सुप्रीम कोर्ट में पटना उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती दी गई है, जिसमें 2 अगस्त को बिहार सरकार द्वारा राज्य में जाति आधारित सर्वेक्षण को सही ठहराते हुए, इसे जारी रखने की अनुमति दे दी थी। उच्च न्यायालय के इस फैसले के खिलाफ गैर सरकारी संगठन ‘यूथ फॉर इक्वेलिटी’ और ‘एक सोच, एक प्रयास’ व अन्य ने शीर्ष अदालत में अपील दाखिल की है। हालांकि शीर्ष अदालत ने कई बार याचिकाकर्ताओं की ओर से उच्च न्यायालय के फैसले और बिहार सरकार को सर्वेक्षण रिपोर्ट प्रकाशित करने पर रोक लगाने की मांग को ठुकरा चुकी है।

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