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Caste Census: बिहार में पिछड़ों-अति पिछड़ों की 113 जातियां, फिर भी विस में सिर्फ 7% प्रतिनिधित्व

October 04, 2023

नई दिल्ली (New Delhi)। बिहार (Bihar) जाति गणना (Caste census) को अगड़ा बनाम पिछड़ा के बीच एक और सियासी जंग (Political war) शुरू होने के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि, यह सियासी जंग पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों (Backward and extremely backward castes) के बीच भी छिड़ सकती है। जाति गणना के आंकड़े बताते हैं कि पिछड़ी जातियों, सवर्णों (Upper castes) और मुसलमानों (Muslims) में रसूख वाली जातियों की आबादी भले ही बेहद कम है, मगर इनके राजनीतिक प्रतिनिधित्व के आगे बड़ी आबादी के बावजूद दूसरी जातियां कहीं खड़ी नहीं दिखाई दे रहीं।


मसलन, बिहार में अति पिछड़ी में 113 जातियां हैं, लेकिन विधानसभा में प्रतिनिधित्व महज सात फीसदी है, जबकि इनकी आबादी में हिस्सेदारी सबसे अधिक 36 फीसदी है। इसके उलट रसूख वाली यादव, कुर्मी, कुशवाहा जैसी चुनिंदा ओबीसी जातियों का प्रतिनिधित्व 42 फीसदी से ज्यादा है, जबकि इनकी आबादी अति पिछड़ी जाति के मुकाबले करीब 10 फीसदी कम है। यही हाल मुसलमानों का है। मुसलमानों की आबादी करीब 17 फीसदी है। इसमें 80 फीसदी पसमांदा है। हालांकि राजनीति में अभिजात्य मुसलमानों का प्रतिनिधित्व 80 फीसदी से ज्यादा है।

दलितों में भी यही स्थिति
राज्य में दलितों की आबादी 19 फीसदी है। इनमें कई दर्जन जातियां शामिल हैं, मगर पासवान जाति सब पर भारी है। पांच फीसदी से अधिक रविदास, तीन फीसदी मुसहर जैसी जातियों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व लगभग नगण्य है।

राजनीति में ही नहीं, आरक्षण में भी गंभीर असमानता
रोहिणी आयोग की रिपोर्ट से पता चला था कि महज राजनीतिक नेतृत्व के मामले में ही नहीं सरकारी नौकरियों के मामले में भी ओबीसी जातियों में गंभीर असमानता है। रिपोर्ट के मुताबिक ओबीसी में शामिल 2637 जातियों में 1500 जातियों को एक बार भी आरक्षण का लाभ नहीं मिला है। इसके अतिरिक्त करीब 1000 जातियां ऐसी हैं जिन्हें तीस सालों में महज एक बार आरक्षण का लाभ मिला है। मुख्य रूप से दस जातियों ने 27 फीसदी आरक्षण का 25 फीसदी लाभ उठाया है। महज 48 जातियों ने 50 फीसदी तो 554 जातियों ने कुल आरक्षण का 72 फीसदी लाभ उठाया है।

सवर्णों में ब्राह्मण के मुकाबले राजपूत-भूमिहार भारी
अगड़ी जातियों में सबसे बड़ी आबादी ब्राह्मणों की है, मगर राजनीतिक प्रतिनिधित्व के सवाल पर कम आबादी वाले राजपूत और भूमिहार उस पर भारी हैं। वर्तमान में ब्राह्मण बिरादरी के 12 विधायक हैं, जबकि कम आबादी वाले भूमिहार विधायकों की संख्या 21 और राजपूत विधायकों की संख्या 28 है। हालांकि विधानसभा में अभी भी अगड़ी जातियों के एक चौथाई विधायक हैं।

अति पिछड़े हो सकते हैं गोलबंद
अगर अति पिछड़ी जातियां गोलबंद हुईं तो रसूख वाली ओबीसी जातियों की मुश्किलें बढ़ेंगी। बीते एक दशक में राज्य स्तर पर रसूख वाली ओबीसी जाति के खिलाफ गोलबंदी दिखी है। यूपी में यादव, हरियाणा में जाट, महाराष्ट्र में मराठा, कर्नाटक में वोक्कालिंगा के खिलाफ ओबीसी की दूसरी जातियां गोलबंद हो चुकी हैं।

न्यायिक सेवा, लॉ कॉलेज में आर्थिक पिछड़ों को 10 फीसदी आरक्षण की घोषणा
राज्य कैबिनेट ने न्यायिक सेवाओं, सरकारी लॉ कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में आर्थिक रूप से पिछड़ों (ईडब्ल्यूएस) को 10 फीसदी आरक्षण देने की घोषणा की। कैबिनेट बैठक में राज्य न्यायिक सेवा-1951 की गाइडलाइंस में संशोधन को मंजूरी दे दी गई।

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