538 साइबर तहसील के मामले पेंडिंग
1 जनवरी से पूरे प्रदेश में लागू होने जा रही व्यवस्था
इंदौर। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव (CM Mohan Yadav) किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए तेजी से साइबर तहसील के माध्यम से नामांतरण करवाने की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन विभागीय अधिकारियों और पटवारियों की मिलीभगत के चलते आवेदकों को सिर्फ धक्के ही नसीब हो रहे हैं। महीनों बीत जाने के बाद नामांतरण के प्रकरण नहीं निपटाए जा सके हैं।
6 हजार से अधिक प्रकरण निपटाकर जिला प्रशासन साइबर तहसील के माध्यम से नामांतरण कर अपनी पीठ थपथपा रहा है, लेकिन कई ऐसे मामले हैं, जिन पर अब तक कोई संज्ञान नहीं लिया गया है। महीनों भटकने के बाद भी आवेदकों के मामले निराकृत नहीं किए जा रहे हैं। दस दिनों से ऊपर अब तक 538 मामले पेंडिंग पड़े हैं। वहीं कुछ ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जिनमें तहसीलदार और पटवारी की सांठगांठ भी सामने आ रही है। अधिकारियों और कर्मचारियों की मनमानी के चलते शासन के आदेश के बाद भी आवेदक परेशान हैं। प्रमाणित प्रति पाने के लिए न केवल आवेदकों को गुमराह किया जा रहा है, बल्कि उनके आवेदन धड़ल्ले से निरस्त किए जा रहे हैं। वहीं नामांतरण और बंटवारा आदेश अपलोड करने के बजाय नोटशीट की प्रति को चढ़ाया जा रहा है, जिसके कारण ऑनलाइन भी प्रति निकालने को मजबूर हैं। देवेंद्र पिता दौलतराम सेठी ने सदर भूमि का नामांतरण राजस्व रिकार्ड में दर्ज कराने के लिए कई बार आवेदन किए, लेकिन उन्हें प्रमाणित प्रति नहीं उपलब्ध कराई गई। देवेंद्र ने बताया कि राजस्व रिकार्ड में भू-राजस्व धारा के अनुसार खसरा व नक्शे की प्रमाणित प्रतिलिपि पक्षकार को देने का नियम है और यदि आवेदक उपस्थित नहीं है तो डाक के माध्यम से घर पहुंचाए जाने के आदेश हैं, लेकिन नियमों को ताक पर रखकर काम किया जा रहा है। कई महीनों से आवेदक जिला प्रशासन कार्यालय के चक्कर काटने को मजबूर हैं। ज्ञात हो कि पायलट प्रोजेक्ट के तहत इंदौर में शुुरू की गई साइबर तहसील को अब प्रदेश स्तर पर लागू करने की घोषणा मुख्यमंत्री द्वारा की गई है, लेकिन पटवारियों पर लगाम नहीं होने के कारण योजना कितना दम भर पाएगी इस पर भी सवालिया निशान लग रहे हैं। आवेदकों से मिली जानकारी के अनुसार सरकार तो किसानों को राहत देने के लिए अच्छी सुविधा दे रही है, लेकिन पटवारी और अधिकारी कमी बताकर मामले निरस्त कर रहे हैं। इसके कारण 100 रुपए साइबर तहसील में भुगतान करने के बाद भी तहसील कार्यालय में फिर से दोबारा आवेदन करना पड़ रहा है। 100 रुपए का नामांतरण शुल्क हजार रुपए तक पहुंच रहा है। वहीं पटवारियों की मांग पूरी नहीं किए जाने पर कई महीनों तक का इंतजार भी सामने आ रहा है।
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