– ऋतुपर्ण दवे
जिस बात का अंदेशा था, वह सामने है। लाख चेतावनियों के बाद भी जरा-सी लापरवाही पर दुनिया की इस सदी की महामारी फिर भारी पड़ती दिख रही है। दुनिया के कई देशों में पहले ही कोरोना की दूसरी और कहीं-कहीं इसके बाद की भी लहरें दिखने लगी हैं। भारत में भी विशेषज्ञ लगातार चेता रहे थे लेकिन हम हैं कि मान नहीं रहे थे। अब महाराष्ट्र और दक्षिण के रास्ते तेजी से फैल रहे नए रूप के कोरोना वायरस ने चिन्ताएँ बढ़ा दी हैं। कम से कम महाराष्ट्र में तो हालात इस कदर बेकाबू से दिख रहे हैं कि कई शहरों को फिर से लॉकडाउन के साए में करने की मजबूरी हो गई है। यही स्थिति कमोबेश दक्षिण के कई राज्यों में है जहाँ एन440 के रूप का कोरोना बहुत ही तेजी से फैल रहा है। सबसे बड़ी चिन्ता की बात यह है कि कोरोना के नए रूप को ज्यादा खतरनाक और तेजी से फैलने वाला बताया जा रहा है। दुनिया भर में कई जगह यह दिख भी रहा है। मतलब साफ है कि अभी महामारी नहीं हारी है और हम हैं कि मान बैठे थे कोरोना का रोना खत्म हुआ! सवाल फिर वही कि हम क्यों नहीं तैयार थे महामारी के नए रूप और आक्रमण को समझने और संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए? इसके जवाब के लिए सरकारों को दोष देने से पहले शायद हमें सबसे पहले खुद से ही पूछना पड़ेगा कि आखिर हम खुद चाहते क्या हैं? माना कि सरकार, शासन-प्रशासन ने थोड़ी-सी छूट दी और कबतक नहीं देती लेकिन इसका बेजा फायदा भी तो हमने ही उठाया।
हालांकि कोरोना के नए रूपों को लेकर भारतीय वैज्ञानिक भी काफी सजग हैं और लगातार शोध जारी है। हाँ इसका फैलाव अभी सबसे ज्यादा केरल और महाराष्ट्र में है जहाँ देश के 74 प्रतिशत से अधिक ऐक्टिव मामले हैं। लेकिन जिस तरह से छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, पंजाब और जम्मू-कश्मीर में भी हर दिन नए कोरोना मरीज सामने आ रहे हैं, वह बड़ी खतरे की घण्टी है। कोरोना की नई रफ्तार ग्रामीण इलाकों को भी गिरफ्त में ले रही है जो बड़ी चिन्ता का कारण है। कई महानगरों में पूरे के पूरे अपार्टमेण्ट्स ही बुरी तरह से चपेट में आ रहे हैं तो कहीं पूरा स्कूल संक्रमित मिल रहा है। कुल मिलाकर संकेत अच्छे नहीं हैं। इसी हफ्ते की शुरुआत में अमेरिका में मौतों का आंकड़ा 5 लाख के पार जा पहुँचा। वहाँ के राष्ट्रपति का दुख इसी बात से समझ में आता है जिसमें उन्होंने कहा कि एक देश के रूप में ऐसे क्रूर भाग्य को स्वीकार नहीं कर सकते। लेकिन दुख की भावना को भी सुन्न नहीं होने देना है। मोमबत्तियां जलाकर कोरोना से काल के गाल में समाए लोगों को राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति ने श्रध्दांजलि दी।
इस हफ्ते की शुरुआत में दुनिया भर में कोरोना से संक्रमित लोगों की कुल संख्या 11 करोड़ 22 लाख 63 हजार के पार जा पहुँची। इस वायरस से अबतक 24 लाख 85 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं ठीक होने वालों की संख्या भी 8 करोड़ 79 लाख के पार पहुँच चुकी है। अमेरिका, भारत और ब्राजील में कोरोना वायरस के संक्रमण के सबसे ज्यादा मामले सामने आए। अमेरिका में संक्रमण के कुल मामले करीब 2.87 करोड़ तक पहुंच चुके हैं। जबकि अबतक वहां 511,133 लोगों की जान जा चुकी है। दुनिया में इस वक्त कोरोना के एक्टिव केस की संख्या 2 करोड़ 21 लाख 58 हजार के करीब है। विश्व के नक्शे पर अगर देशों के हिसाब से देखें तो इस हफ्ते की शुरुआत तक सबसे ज्यादा कुल मामले अमेरिका में दर्ज हुए जो 28,765,423 रहे जबकि मौतों का आँकड़ा 5,11,133 पहुँच गया। इसके बाद भारत का नंबर आता है जहाँ कुल दर्ज मामले 11,005,850 रहे जबकि 1,56,418 लोगों की मौत हुई। इसके बाद तीसरे नंबर पर ब्राजील है जहाँ कुल दर्ज मामले 10,168,174 रहे जबकि मौतों का आंकड़ा 2,46,560 रहा। ब्रिटेन जहाँ ब्रिटेन दर्ज मामले 41,05,675 जबकि मौतों का आंकड़ा 1,20,365 है। जबकि रूस में दर्ज मामले 4,164,726 हैं और मरने वालों की संख्या 83,293 रही। इसी तरह फ्रांस में दर्ज मामले 35,83,135 और मृतकों की संख्या 84,147 रही।
वैक्सीन के आने के बाद महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में कोरोना के नए रूप फिर से बढ़ने को बड़ी चेतावनी ही समझनी चाहिए। वैक्सीन की सफलता में संदेह नहीं है। देश के बड़े-बड़े चिकित्सकों ने इसे सबसे पहले लगवाकर भ्रम को दूर करने की कोशिश की है। बावजूद इस सबके वैक्सीनेशन की रफ्तार में तेजी नहीं दिखना कहीं न कहीं निराश करती है। यह भी बड़ी विडंबना है कि पूरे देश से बीते कई हफ्तों से जो तस्वीरें सामने आ रही थीं वह सबकी मिली-जुली लापरवाही का नतीजा है। इतिहास गवाह है कि पहले भी जितनी महामारियाँ आईं हैं उनपर काबू पाने में काफी वक्त लगा है। लेकिन कोरोना को लेकर बहुत बड़ी सुकून की बात रही कि दुनिया भर में तमाम कारगर टीके बहुत जल्द ईजाद हुए और इस मामले में भारत बहुत खुशनसीब है। भारत में टीकों को लेकर जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है। टीके के सकारात्मक नतीजों के आँकड़ों पर नजर डालना होगा। शायद इस बारे में केन्द्र और राज्य सरकारों को जनजागरूकता बढ़ानी होगी। पूरे देश में हर चिकित्सालयों व सामाजिक संस्थाओं को आगे आकर जहाँ टीके पर बेवजह के भ्रम को ईमानदार प्रयासों व जनसंवाद के जरिए दूर करने की कोशिश करनी होगी वहीं अब सभी आम और खास को भी यह समझना ही होगा कि साल 2021 में भी किसी भी सार्वजनिक स्थान या कहें कि घर की चौखट के बाहर मास्क के बिना दुखदायी होगा। हाँ राज्य सरकारों को भी चाहिए कि कोरोना के जरा से खतरे की दस्तक होते ही स्कूलों पर प्रतिबंध जरूरी करें। इस बारे में दक्षिण सहित छत्तीसगढ़ के कई ताजा उदाहरण सामने हैं।
क्यों नहीं इस साल इस नए नारे के साथ महामारी को चुनौती दी जाए “2021 में कोरोना को दें मात, बस एक मास्क के साथ।” कोरोना के खतरों और अपने गाँव, शहर, परिचितों की कोरोना से अकाल मृत्यु से भला कौन नहीं आहत होगा? किसको कोरोना के दंश का पता नहीं है। यह भी तो सब जानते हैं कि लंबे समय से कोरोना हमारी फितरत का आदी हो गया है। सीधे शब्दों में हमारे शरीर से आसानी से घुल मिल गया है और पहुँचते ही दगा देता है। जाहिर है दवा के साथ सबसे जरूरी है कि इसको पहले ही रोक दिया जाए। यह सिर्फ संभव है घर के बाहर हर पल मास्क के साथ निकलें, दो गज की दूरी बनाएँ रखें और बार-बार हाथ साबुन से धोते रहें।
जब पता है कि दवा जितना असरदार 10-20 रुपए का कपड़े का मास्क इस भीषण महामारी को चुनौती दे सकता है और न केवल कोरोना बल्कि प्रदूषण और एलर्जी-अस्थमा से भी बचा रहा है तो फिर इससे परहेज कैसा? हाँ, इस बारे में देशभर में इतना जरूर हो कि जो पिछले साल की सीख को लेकर एकबार फिर बजाए संपूर्ण लॉकडाउन के एहतियात के तौर पर नाइट कर्फ्यू जरूर लगा दिया जाए और दिन में बिना मास्क वालों पर सख्ती की जाए।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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