वॉशिंगटन। अफगानिस्तान (Afghanistan) के आधे से ज्यादा प्रांतों की राजधानियों को अपने कब्जे में ले चुका तालिबान(Taliban) अब तेजी से काबुल(Kabul) की तरफ बढ़ रहा है। इसे देखते हुए अमेरिका(America) के बाद अब ब्रिटेन भी दूतावास कर्मचारियों और अधिकारियों को बड़े पैमाने पर वापस बाहर निकालेगा। वहीं, कनाडा(Canada) ने भी दूतावास की मदद करने वाले अफगान नागरिकों (Afghan citizens) को बाहर निकालने के लिए विशेष कार्यक्रम चलाने का ऐलान किया है।
ब्रिटेन के पीएम बोरिस जॉनसन (UK PM Boris Johnson) ने कहा कि अगले कुछ दिनों में अफगानिस्तान से ब्रिटेन के दूतावास के कर्मचारियों, अधिकारियों को बड़े पैमाने पर निकाला जाएगा। साथ ही कहा कि उन अफगान नागरिकों को वापस लाने के प्रयास तेज करेंगे जिन्होंने पिछले 20 वर्षों में ब्रिटेन और अंतरराष्ट्रीय बलों की मदद की है। इसके लिए जल्द ही टीम भेजी जाएगी।
ब्रिटिश जिहादी भी पहुंचे तालिबान के पास
एक मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ब्रिटिश जिहादियों ने भी अफगानिस्तान में तालिबान के साथ हाथ मिला लिए हैं। द सन ने बृहस्पतिवार को रिपोर्ट में कहा कि ब्रिटिश लहजे में अंग्रेजी बोलने वाले विद्रोही लड़ाकों की फोन कॉल ब्रिटिश सुरक्षा एजेंसियों ने इंटरसेप्ट की हैं। ये जिहादी अमेरिका और ब्रिटेन के अफगानिस्तान से हटने की घोषणा के बाद पाकिस्तान के जरिये अफगानिस्तान पहुंचे हैं।
भारत के करीबी दोस्त मोहम्मद इस्माइल खान ने तालिबान के सामने आत्मसमर्पण किया
उधर, हेरात प्रांत के पूर्व गवर्नर और भारत के करीबी दोस्त मोहम्मद इस्माइल खान ने भी शुक्रवार को तालिबान के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। प्रांतीय परिषद के एक सदस्य गुलाम हबीब हाशमी ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि खान ने विद्रोहियों और सुरक्षा बलों के बीच हुए समझौते के तहत हथियार तालिबान को सौंपे हैं। तालिबान ने आत्म सर्मपण करने वाले सरकारी अधिकारियों को नुकसान नहीं पहुंचाने का समझौता किया है।
लॉयन ऑफ हेरात के नाम से मशहूर इस्माइल खान अफगानिस्तान के प्रमुख कबीलाई सरदारों में से एक हैं और उन्होंने ही साल 2001 में तालिबान को सत्ता से हटाने में अमेरिका की अहम मदद की थी। खान अभी तक विद्रोही लड़ाकों के खिलाफ लड़ाई का नेतृत्व कर रहे थे। उनके आत्मसमर्पण को तालिबान की बड़ी सफलता माना जा रहा है। इस्माइल खान की मदद से हेरात प्रांत में भारत की तरफ से बनाए गए सलमा बांध (फ्रेंडशिप बांध) पर भी तालिबान का कब्जा हो गया है।
तालिबान ने काबुल से 80 किलोमीटर दूर स्थित लोगार प्रांत की राजधानी पुली-ए अलीम पर भी कब्जे के लिए घेरा बना लिया है। लोगार प्रांतीय परिषद के मुखिया हसीबुल्लाह स्तानिकजाई ने कहा कि सरकारी सेना अभी डटी हुई है। हालांकि तालिबान ने पुलिस मुख्यालय व जेल पर अपना कब्जा हो जाने का दावा किया है। लेकिन हसीबुल्लाह ने इसे खारिज कर दिया है।
अफगान नागरिकों के लिए विशेष अभियान चलाएगा कनाडा
कनाडा के आव्रजन, शरणार्थी और नागरिकता मामलों के मंत्री मार्को मेंडिसिनो ने कहा कि कनाडा 20 हजार अफगानियों के लिए विशेष आव्रजन कार्यक्रम चलाएगा इनमें खास तौर पर महिला नेता शामिल रहेंगी। उन्होंने कहा कि कनाडा ऐसे नागरिकों की मदद करेगा जिन्होंने बेहद मुश्किल दौर में अफगानिस्तान में हमारी मदद की। अफगानिस्तान में हजारों लोगों के जीवन पर संकट आ गया है और कई लोग यहां से भाग चुके हैं।
अमेरिका अपने दूतावास के कर्मचारियों को निकालेगा
वहीं, अमेरिका भी अपने कर्मचारियों को दूतावास से निकालेगा। पेंटागन के प्रेस सचिव जॉन किर्बी ने बताया कि अमेरिकी रक्षा विभाग काबुल से दूतावास के कर्मचारियों को निकालने के लिए अफगानिस्तान में सेना भेजेगा। साथ ही कहा कि अगले 24-48 घंटों में काबुल हवाई अड्डे पर तीन पैदल सेना की बटालियनों को उतारा जाएगा। इनमें सैनिकों की संख्या 3,000 है। साथ ही कहा कि कतर में 3500 सैनिक स्टैंडबाई पर रहेंगे ताकि अफगानिस्तान से अमेरीकियों की वापसी को लेकर कोई भी दिक्कत होने पर एक्शन में आ जाएंगे।
तालिबान को मान्यता देने की तैयारी में है चीन
अमेरिकी रिपोर्ट के मुताबिक, यदि आतंकी समूह काबुल में लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकार पर हावी होता है तो तालिबान को चीन अफगानिस्तान में कानूनी शासन के बतौर मान्यता देने के लिए तैयार है। लांग वॉर जर्नल की रिपोर्ट में कहा गया है कि तालिबान आतंकी अफगानिस्तान के बड़े हिस्से पर काबिज हो चुके हैं और चीन से मिलकर रणनीति बना चुके हैं। रिपोर्ट के अनुसार, पहले से तालिबान की 73 जिलों पर मजबूत पकड़ थी। अब उसने 160 से अधिक जिलों को अपने कब्जे में ले लिया है।
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