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महिलाओं के लिए जानलेवा हो सकता है सैनिटरी पैड? नई स्टडी में चौंकाने वाला खुलासा

November 22, 2022

नई दिल्ली। भारत (India) में किशोरावस्था (Adolescence) में प्रवेश कर चुकीं हर चार में तीन लड़कियां सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं. मासिक धर्म के दौरान सैनिटरी पैड (sanitary pad) का इस्तेमाल जननांगों में होने वाली कई गंभीर बीमारियों से बचने के लिए किया जाता है. लेकिन सैनिटरी पैड को लेकर एक नई स्टडी में कुछ ऐसा खुलासा हुआ है, जो वाकई डराने वाला है. नई स्टडी के अनुसार, नैपकिन के इस्तेमाल से कैंसर होने का खतरा (hazard) बढ़ सकता है. साथ ही बांझपन की समस्या (infertility problems) भी हो सकती है.

एनजीओ टॉक्सिक्स लिंक में प्रोग्राम कोर्डिनेटर और इस स्टडी में शामिल डॉक्टर अमित ने इस बारे में बताया कि यह वाकई चौंकाने वाला है. उन्होंने बताया कि हर जगह आराम से मिल जाने वाली सैनिटरी नैपकिन (sanitary napkin) में कई ऐसे कैमिकल मिले हैं, जो स्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक हैं. डॉक्टर अमित ने बताया कि सैनिटरी प्रॉडक्ट्स में कई गंभीर कैमिकल जैसे कारसिनोजन, रिप्रोडक्टिव टॉक्सिन, एंडोक्राइन डिसरप्टर्स और एलरजींस (endocrine disruptors and allergens) मिले हैं.

एनजीओ टॉक्सिक्स लिंक की ओर से की गई यह स्टडी इंटरनेशनल पोल्यूटेंट एलिमिनेशन नेटवर्क के टेस्ट का एक हिस्सा है, जिसमें भारत में सैनिटरी नैपकिन बेचने वाले 10 ब्रांड्स के प्रॉडक्ट्स को शामिल किया गया. स्टडी के दौरान शोधकर्ताओं को सभी सैंपलों में थैलेट (phthalates) और वोलेटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड (VOCs) के तत्व मिले. चिंता की बात है कि यह दोनों दूषित पदार्थ कैंसर की सेल्स बनाने में सक्षम होते हैं.


इस वजह से बढ़ सकता है ज्यादा खतरा
एनजीओ की एक अन्य प्रोग्रोम कोर्डिनेटर और स्टडी में शामिल अकांकशा मेहरोत्रा ने बताया कि सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि सैनिटरी पैड के इस्तेमाल की वजह से बीमारी बढ़ने का खतरा ज्यादा है. दरअसल, महिला की त्वचा के मुकाबले वजाइना पर इन गंभीर कैमिकलों का ज्यादा असर होता है. ऐसे में इस वजह से यह खतरा और ज्यादा बढ़ जाता है.

एनजीओ Toxics Link की चीफ प्रोग्राम कोर्डिनेटर प्रीति बंथिया महेश ने इंडिया टुडे से बात करते हुए कहा कि यूरोपीय क्षेत्र में इस सबके लिए नियम हैं, जबकि भारत में ऐसे कुछ खास नियम नहीं है, जिससे नजर रखी जाती हो. हालांकि, यह बीआईएस मानकों के अंतगर्त जरूर आता है, लेकिन उसमें खासतौर पर केमिकल्स को लेकर कोई नियम नहीं है.

64 फीसदी लड़कियां कर रहीं सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के ताजा आंकड़ों के अनुसार, 15 से 24 साल के बीच करीब 64 फीसदी ऐसी भारतीय लड़कियां हैं जो सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं. पिछले कुछ समय में जागरूकता बढ़ने की वजह से इसके इस्तेमाल करने में भी बढ़ोतरी देखी गई है.

आईएमएआरसी ग्रुप के अनुसार, सैनिटरी प्रॉडक्ट्स का भारत एक बड़ा बाजार है. साल 2021 में ही सैनिटरी नैपिकन का कारोबार 618 मिलियन डॉलर रहा. साथ ही यह अनुमान है कि साल 2027 तक यह बाजार 1.2 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा.

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