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    कांग्रेस विधायक को बाइक चोर बताकर निकाली कॉल डिटेल्स

  • February 12, 2022

    • बैतूल पुलिस पर सांसद, विधायक और पत्रकारों की जासूसी के आरोप

    भोपाल। कांग्रेस विधायक निलय डागा ने बैतूल पुलिस पर नेता, उद्योगपतियों, कारोबारियों और पत्रकारों के मोबाइल फोन की सीडीआर (कॉल डिटेल रिपोर्ट) निकलवाकर जासूसी करने के आरोप लगाए हैं। उन्होंने आरोप लगाया है कि पुलिस ने उन्हें बाइक चोर बताकर उनके फोन की सीडीआर निकाली है। विधायक ने इस मामले की जांच कराने और सच्चाई सामने लाने के लिए पुलिस महानिदेशक विवेक जौहरी को पत्र भी लिखा है। साथ ही विधानसभा में मामला उठाने की बात कही है। हालांकि बैतूल एसपी सिमाला प्रसाद ने विधायक के आरोपों को सिरे से खारिज किया है।



    निलय डागा बैतूल से कांग्रेस विधायक हैं। उन्होंने प्रेस कॉफ्रेंस में आरोप लगाए हैं कि बैतूल के हर जनप्रतिनिधि, दर्जनों व्यापारियों की सीडीआर निकाली गई है। इसमें मैं अकेला कांग्रेस विधायक नहीं हूं। बीजेपी के विधायक और सांसद की सीडीआर भी निकाली गई है। कई पत्रकारों के मोबाइल फोन की भी सीडीआर निकाली गई है। उनका कहना है कि आखिर पुलिस ने किसकी परमिशन से इन लोगों सीडीआर निकाली इसके फैक्ट और सच्चाई सबके सामने आनी चाहिए। विधायक डागा ने दावा किया है कि बैतूल पुलिस ने उन्हें एक बाइक चोर बताकर उनके मोबाइल फोन की सीडीआर निकाली है। यह बात मोबाइल फोन के सर्विस प्रोवाइर के ईमेल के रिकॉर्ड में दर्ज है कि सीडीआर निकाली गई है। डागा ने सवाल उठाया कि पुलिस को इतने बड़े पैमाने पर लोगों की सीडीआर निकलवाने की जरूरत क्यों पड़ी। क्या वो संबंधित लोगों को ब्लैकमेल करना चाहती है। यदि इस मामले की जांच नहीं हुई तो उन्होंने धरने पर बैठने का ऐलान किया है। उन्होंने कहा कि वे इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री एवं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ से चर्चा कर विधानसभा में भी सवाल लगाएंगे।

    पहले भी उठ चुका है फोन टेपिंग का मामला
    प्रदेश में फोन टैपिंग का मामला पहले भी वर्ष 2014 में भी उठ चुका है। इससे पहले भी नौकरशाहों, राजनेताओं और अन्य प्रमुख लोगों के टेलीफोन कथित रूप से टैप कराने पर राजनीतिक बवाल मच चुका है। तब व्हिसल ब्लोअर प्रशांत पांडेय इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट गए थे। पांडेय की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कथित तौर पर टेलीफोन टैपिंग, कॉल डिटेल तैयार करने वाली अमेरिकी कंपनी स्पंदन द आईटी पल्स समेत राज्य और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किए थे। इसके साथ ही जांच के निर्देश भी दिए थे लेकिन बाद में यह मामला ठंडा पड़ गया था। याचिकाकर्ता ने बताया कि प्रदेश में लगभग चार साल तक चले टेलीफोन टैपिंग मामले को लेकर याचिका दायर होते ही सरकार ने इस काम को बंद कर दिया था। मध्यप्रदेश पुलिस फोन टैपिंग के लिए एक ऐसे सॉफ्टवेयर का उपयोग कर रही थी, जो पूरी तरह अवैधानिक था। इसके लिए पुलिस अफसरों ने एक एजेंसी की मदद ली। कंपनी के साथ पूरा डेटा शेयर किया गया, जो नहीं किया जाना चाहिए था।

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