पिंजरे के पंछी रे… तेरा दरद न जाने कोय…
बुरा तुम देखो… बुरा तुम सुनो… पर बुरा मत कहो… छोटा सा ही तो परिवर्तन है… गांधी के तीन बंदरों को सिखाई सीख में… अब सुनना भी पड़ेगा… सहना भी पड़ेगा… पर खामोश रहना पड़ेगा… ऐसे ही खामोशी की घुटन ज्वालामुखी बनाती है और जब फूटने पर आती है तो आवाज विदेश तक से सुनाई जाती है…बोलने की सजा में सांसद पद गंवा चुके राहुल गांधी बेघर होने के बाद अमेरिका में जाकर फडफ़ड़ा रहे हैं…मोदीजी वहां पहुंचें उससे पहले वहां का माहौल बिगाड़ रहे हैं… भाजपाई इसे मोदी का अपमान बता रहे हैं तो कांग्रेसी इसे दिल का दर्द बता रहे हैं और लोग इसे राजनीतिक कव्वाली मान रहे हैं, लेकिन बुद्धिजीवी कुछ अलग ही नजरिए से इस बवाल को भांप रहे हैं… यह परिस्थितियां इसलिए बन रही हैं, क्योकि देश में आलोचनाओं की स्वीकृति समाप्त हो चुकी है…विपक्ष का कहना है कि उनका पक्ष सुना नहीं जा रहा है…तर्कों का दमन किया जा रहा है और एक ही पक्ष अपने फैसले सुना रहा है… एक वक्त था, जब राजनीतिक सौहार्दता हुआ करती थी… इंदिराजी अटलजी को अपना दूत बनाकर विदेश भेजती थीं… महत्वपूर्ण मुद्दों पर विपक्ष की राय ली जाती थी…विपक्ष के दिग्गज नेताओं के लिए संसद की राह खोली जाती थी… अटलजी, आडवाणी, बहुगुणा जैसे लोगों के सामने कमजोर प्रत्याशी खड़ा किया जाता था… उन्हें संसद में आदर से बुलाया जाता था… वो सत्ता का जमकर विरोध करते थे, लेकिन कभी भी व्यक्तिगत प्रहार नहीं करते थे… उनका विरोध नीतियों पर हुआ करता था और सत्तापक्ष उनके विरोध को तवज्जो देता था, लेकिन अब राहुल सीधे मोदी पर प्रहार करते हैं… ममता उन पर कटाक्ष करती हैं… नीतीश पीठ में छुरा घोंपते हैं और बदले में मोदी के भडक़े सिपहसालार विपक्ष के सफाए में लग जाते हैं… राहुल की बोलती बंद कर दी जाती है… लोकसभा की सदस्यता छीन ली जाती है…केजरीवाल को पंगू बना दिया जाता है… अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट तक के आदेश को बदल दिया जाता है…फिर विपक्ष भी बदले पर आमादा हो जाता है…कहीं किसानों को भडक़ाता है तो कहीं पहलवानों को उकसाया जाता है…देश में जब विरोध कामयाब नहीं हो पाता है तो विदेशों में जाकर सुरों को गुंजाया जाता है…राजधर्म की मर्यादाएं नष्ट की जा रही हैं… देश की स्थिरता, समृद्धि और विश्वास में सेंध लगाई जा रही है… आखिर ये परिस्थितियां क्यों बनती जा रही हैं… देश एक अलग माहौल में तब्दील हो रहा है… देश तरक्की तो कर रहा है, लेकिन प्रेम घट रहा है… खामोशी को यदि यहीं जुबां मिल जाए तो विदेशों में जाकर आवाज क्यों फडफ़ड़ाए…
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