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    Budget: अर्थव्यवस्था को तेज बनाए रखने की चुनौती

  • January 23, 2023

    नई दिल्ली (New Delhi)। वैश्विक मंदी (global recession) की आशंका (fear) के बीच वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Finance Minister Nirmala Sitharaman) एक फरवरी, 2023 को बजट पेश करेंगी। भारत (India) को सबसे तेज अर्थव्यवस्थाओं (fastest economies) में से एक बनाए रखने के लिए 2023-24 के बजट (Budget 2023-24) में सरकार अपने खर्च में 33 फीसदी तक बढ़ोतरी (33% increase in expenditure) कर सकती है। यानी बजट में अगले वित्त वर्ष के लिए 9-10 लाख करोड़ रुपये (Rs 9-10 lakh crore) का प्रावधान किया जा सकता है। पिछले बजट में इसके लिए 7.50 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था।


    डॉ. कोहली का कहना है कि सरकार अगर खर्च बढ़ाती है तो इससे न सिर्फ निजी निवेश को बढ़ावा मिलेगा बल्कि खपत भी बढ़ेगी। इससे आर्थिक वृद्धि को समर्थन मिलेगा। बार्कलेज ने एक रिपोर्ट में कहा कि खर्च बढ़ाकर सरकार मुख्य तौर पर इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास पर ज्यादा जोर देगी। रोजगार बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।

    राजकोषीय घाटे पर भी रहेगा ध्यान
    चुनावी वर्ष से पहले सरकार अंतिम पूर्ण बजट में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य घटाकर 5.8 फीसदी रख सकती है। इसके लिए सब्सिडी में कटौती की जा सकती है। 2022-23 के बजट में सब्सिडी 3.56 लाख करोड़ रुपये और राजकोषीय घाटा जीडीपी का 6.4% रहने की संभावना जताई गई थी। कुल सब्सिडी में खाद्य सब्सिडी की हिस्सेदारी दो लाख करोड़ से अधिक है।

    विशेषज्ञों का कहना है
    – राजकोषीय घाटा कम होगा तो महंगाई भी नियंत्रित रहेगी।
    – इससे खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में खपत बढ़ेगी।
    – त्योहारी सीजन के बाद से ग्रामीण खपत में कमी आ रही है, जो चिंता का विषय है।
    – 8.30 फीसदी पर पहुंच गई थी देश में बेरोजगारी दर (दिसंबर, 2022 में)
    – रोजगार गारंटी योजना पर विचार
    – देश में रोजगार बढ़ाने के लिए शहरी रोजगार गारंटी योजना पर विचार किया जा सकता है। भारतीय उद्योग महासंघ के अध्यक्ष संजीव बजाज का कहना है कि इस बजट में इसकी शुरुआत महानगरों से हो सकती है।

    रियल एस्टेट
    रियल एस्टेट क्षेत्र के लिए 2022 एक ऐतिहासिक वर्ष रहा। इस दौरान 2021 की तुलना में मकानों की बिक्री में 50 फीसदी से ज्यादा की तेजी दर्ज की गई। इस रफ्तार को बनाए रखने के लिए बजट में कुछ चुनौतियों का समाधान ढूंढना होगा।

    रियल एस्टेट को एक असंगठित क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। देश की जीडीपी में दूसरा सबसे बड़ा योगदान देने वाले क्षेत्र को इस बजट में उद्योग का दर्जा मिल सकता है। इससे क्षेत्र को संगठित और पारदर्शी बनाने में मदद मिलेगी। रेरा और जीएसटी का रियल एस्टेट पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इसलिए क्षेत्र में छोटे ब्रोकरों को शामिल करने के लिए ब्रोकरेज पर मौजूदा 18 फीसदी जीएसटी को घटाकर 5 फीसदी किया जा सकता है।

    कम ब्याज पर कर्ज देने के लिए बने सरकारी फंड
    देश में डेवलपर को जो कर्ज मिल रहा है, वह होम लोन से 6 फीसदी से 8 फीसदी ज्यादा है। आरबीआई और वित्त मंत्रालय को एक सरकारी फंड बनाना चाहिए, जिससे डेवलपर्स को कम ब्याज पर कर्ज मिले। इससे मकान सस्ते होंगे। ब्याज दरों को भी स्थिर किया जाए।

    इसके अलावा, देश में करीब 10 लाख रियल एस्टेट ब्रोकर हैं। उनमें से ज्यादातर को जीएसटी के दायरे में लाना चाहिए। इससे सरकार को ज्यादा टैक्स मिलेगा। कौशल को बढ़ावा देने के लिए रियल एस्टेट केंद्रित शिक्षा प्लेटफॉर्म लाने पर भी विचार संभव है।

    स्वास्थ्य : निजी निवेश से मिलेगा बूस्टर
    कोरोना जैसे संकट से निपटने के लिए देश के स्वास्थ्य क्षेत्र को बड़े बदलाव की जरूरत है। क्षेत्र में एक विस्तृत डेवलपमेंट प्रोग्राम लाने के साथ निजी निवेश को बढ़ाने की जरूरत है। बजट में मेडिकल शिक्षा के लिए बुनियादी ढांचागत विकास, आर्थिक समर्थन, डिजिटलीकरण को बढ़ावा देने और समय पर सही इलाज के लिए यूनिवर्सल रोडमैप को लेकर घोषणाएं हो सकती हैं।

    सरकारी बैंक : पूंजी मिलने की संभावना कम
    बजट में सरकारी बैंकों को पूंजी देने के बारे में कोई घोषणा होनी मुश्किल है क्योंकि बैंकों की सेहत अच्छी है। सभी 12 सरकारी बैंक लाभ में हैं। सरकार ने अंतिम बार 2021-22 में 20 हजार करोड़ रुपये की पूंजी दी थी। चालू वित्त वर्ष में सरकारी बैंक एक लाख करोड़ का फायदा कमा सकते हैं। सितंबर तिमाही में इनका फायदा 25,685 करोड़ था। पहली छमाही में 40,991 करोड़ था। इनका पूंजी पर्याप्तता अनुपात आरबीआई के तय 14-20 फीसदी से ज्यादा है। साथ ही, इनके एनपीए में भी भारी कमी आ रही है। बैंक अपनी नॉन-कोर संपत्तियां बेचकर व बाजार से भी रकम जुटा रहे हैं।

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