नई दिल्ली। नार्थ ब्लाक में वित्त मंत्रालय का दफ्तर है और वहां हलचल काफी बढ़ गई है। 2023-24 के बजट की तैयारियों को अंतिम रूप देने में सभी व्यस्त हैं। इस पर एक शीर्ष अधिकारी बड़े सधे स्वर में कहते हैं कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को पता है कि 2024 में लोकसभा चुनाव है। इसके बाद की प्रतिक्रिया को उन्होंने मीडिया की समझ पर डाल दिया।
संघ के एक बड़े नेता का कहना है कि आगामी बजट में जनता के मुद्दों पर फोकस होना चाहिए। माना जा रहा है कि 2023-24 का आम बजट मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का आखिरी है। इसलिए इसके लोकलुभावन होने की पूरी उम्मीद है। अभी हाल में दो राज्यों के विधानसभा चुनाव संपन्न हुए हैं।
दिल्ली नगर निगम का भी चुनाव हुआ। इन तीनों चुनावों की समीक्षा करने पर राजनीतिक दृष्टि से सत्ता पक्ष की राह धीरे धीरे मुश्किल हो रही है। हालांकि भाजपा मुख्यालय के एक बड़े नेता का कहना है कि 2023-24 के बजट और लोकसभा चुनाव 2024 का आपस में कोई लेना देना नहीं है।
सूत्रों के अनुसार यूपी विधानसभा चुनाव के बाद से ही देश के आम चुनाव को ध्यान में रखकर तैयारियां चल रही हैं। वह बताते हैं कि 2019 के आम चुनाव और बाद के राज्यसभा चुनावों के नतीजे को देखते हुए भाजपा ने हारी हुई 100 से अधिक लोकसभा सीटों पर विशेष तौर से फोकस किया है।
भाजपा और संघ के संगठन से जुड़े नेता ज्ञानेश्वर शुक्ला कहते हैं कि भाजपा राजनीतिक दृष्टि से हमेशा चुनाव के मोड में रहती है। हमारे यहां कभी तैयारी बंद नहीं होती। इसलिए चुनाव को लेकर कोई प्रधानमंत्री मोदी और शाह के दौर की भाजपा कभी नहीं घबराती।
सरकार के सामने बड़ी चुनौतियां
आप राजकोषीय घाटा, बेरोजगारी की स्थिति और वैश्विक चुनौतियों को देख लीजिए। एक मंत्रालय के आईआरएस कॉडर के अधिकारी के मुताबिक इसके बाद सरकार के सामने खड़ी चुनौतियां दिखाई देने लगेंगी। इससे निबटने के लिए सरकार लगातार कदम उठा रही है। इसे आगे भी जारी रखना होगा। रक्षा मंत्रालय और तीनों सेना मुख्यालय के लिए सैन्य बलों का आधुनिकीकरण लगातार बड़ी चुनौती बन रही है। सैन्य बलों के कमांडर कांफ्रेस में भी भावी चुनौतियों पर ध्यान दिया गया है।
इसको देखते हुए सैन्य बलों को रक्षा क्षेत्र में आम बजट में सरकार से बड़ी उम्मीद है। इसी तरह की स्थिति कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय समेत अन्य सभी की है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अफसरों के सामने बैठिए और शिक्षा के आधुनिकीकरण पर चर्चा कीजिए तो उनके पास कहने के लिए काफी कुछ है। यह बात अलग है कि वह मुंह कम खोल रहे हैं। सरकार की चुनौतियां रेल मंत्रालय को लेकर भी हैं। रेल मंत्रालय को पूरी तरह से आपरेशनल होने के लिए सरकार से विशेष सहायता की जरूरत महसूस हो रही है।
इस बार बजट में सरकार कड़ी दवाई पिलाने से परहेज कर सकती है
आईआईएम, अहमदाबाद के पासआउट राघव गुप्ता कहते हैं कि उन्हें भरोसा है। इस बार के बजट में सरकार कड़वी दवाई पिलाने से परहेज करेगी। राघव इसकी दो बड़ी वजह बताते हैं। पहली वजह, अभी भी देश का बाजार और औद्योगिक उत्पादन कोरोना काल 2020 से पहले वाली स्थिति में नहीं लौट पाया है। दूसरे खर्चे बढ़े हैं। राघव कहते हैं कि मध्यम वर्ग की होने वाली कमाई की तुलना में बोझ भी बढ़ा है। मंहगाई की मार झेल रहा है। इसलिए सरकार द्वारा 2023-24 में कड़वी दवाई पिलाने की उम्मीद कम दिखाई दे रही है।
राजेश चौधरी का कहना है कि सरकार के पास पैसा नहीं आएगा तो लोक लुभावन काम या विकास की रफ्तार को कैसे संतुलित कर पाएगी। चौधरी कहते हैं कि मुझे लग रहा है कि केन्द्र सरकार आम जनता पर करों का बोझ तो नहीं डालेगी। यह स्थिति पिछले साल जैसी रहेगी, लेकिन बजट में चतुराई के साथ आगे की जेब में पैसा डालकर पीछे की जेब से निकालने की तकनीक प्रभावी रहेगी। राजेश चौधरी कहते हैं कि मोदी सरकार ने 26 मई 2014 से केन्द्र की सत्ता संभाली है। साढ़े आठ साल में सरकार से जनता की नाराजगी अब खड़ी हो रही है। मुझे लग रहा है कि इसकी गंभीरता को केन्द्र सरकार भी समझ रही है।
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