इंदौर: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) की सियासत में ग्वालियर-चंबल (Gwalior-Chambal) संभाग कभी बागी बीहड़ों (rebel ravines) के लिए जाना जाता था. बागी सियासी खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. इस बार बागी यानि डकैत भले ही चुनावी मैदान में न हो, लेकिन सियासत में बगावत का सबसे गाढ़ा रंग कहीं नजर आ रहा है. कांग्रेस और बीजेपी (Congress and BJP) से जिन्हें टिकट (Ticket) नहीं मिला, वो बागी होकर निर्दलीय चुनावी मैदान में कूद गए हैं, लेकिन बीहड़ क्षेत्र में असली चुनौती बागी से ज्यादा बसपा (BSP) के उम्मीदवार बन गए हैं.
बसपा प्रमुख मायावती (Mayawati) मध्य प्रदेश में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (Gondwana Republic Party) से गठबंधन करके चुनावी मैदान में उतरी हैं. बसपा ने 178 सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं तो उसकी सहयोगी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी 52 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. इस तरह से बसपा भले ही एमपी की 178 सीट पर चुनाव लड़ रही हो, लेकिन बीहड़ माने जाने वाले चंबल बेल्ट की ज्यादातर सीटों पर उसके उम्मीदवार मैदान में है. बसपा ने जिस तरह से कांग्रेस-बीजेपी के बागियों को टिकट देकर दांव खेला है, उससे चंबल-ग्वालियर की ज्यादातर सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है.
चंबल में दलित मतदाता (dalit voter) बसपा की ताकत चंबल-ग्वालियर क्षेत्र में कुल 34 विधानसभा सीटें आती हैं और 2018 के चुनाव में 27 कांग्रेस, पांच बीजेपी और अन्य को दो सीटें बसपा को मिली थी. 2013 में 20 सीटें बीजेपी, 12 सीटें कांगेस और दो सीटें बसपा को मिली थी. 2008 में बसपा पांच सीटें इस इलाके में जीतने में सफल रही थी. ग्वालियर-चंबल इलाके में दलित मतदाता बसपा की ताकत हैं , जो कांग्रेस और बीजेपी का खेल बनाने और बिगाड़ने की स्थिति में हैं.
बागियों पर मायावती ने खेला दांव
दलित समुदाय की अधिकता की वजह से ही मायावती की बसपा पार्टी बीहड़ के इलाके में चुनाव जीतती आ रही हैं और इस बार भी उसे मजबूत ताकत मिलती दिख रही है. चंबल इलाके में इस बार बीजेपी और कांग्रेस एक दूसरे का खेल नहीं बिगाड़ रहीं और न ही दोनों दलों के बागी या अंतर्कलह इन्हें नुकसान पहुंचा रही है, बल्कि सीधे-सीधे इस इलाके में बसपा के टारगेट पर बीजेपी-कांग्रेस है. इस इलाके में इन दलों से बागी हुए नेताओं को मायावती ने टिकट देकर दांव खेला है, जिसके चलते वो तीसरी ताकत के रूप में उभरने की कवायद में खड़ी दिख रही है.
BSP से BJP-कांग्रेस को खतरा!
ग्वालियर भिंड-मुरैना की 17 विधानसभा सीटों में से 9 सीट पर बसपा मुख्य मुकाबले में खड़ी नजर आ रही है. इसके चलते समीकरण बदले हुए नजर आ रहे हैं. इन जिलों में बसपा ने पांच सीटों पर कांग्रेस के गणित को बिगाड़ दिया है जबकि चार सीटों पर बीजेपी के लिए टेंशन पैदा कर दी है. मुरैना जिले की सुमावली, दिमनी, ग्वालियर की डबरा, ग्वालियर पूर्व सीटों पर बसपा प्रत्याशी मैदान में है, यह सीटें फिलहाल कांग्रेस के पास है. इन सीटों पर बसपा प्रत्याशी कांग्रेस के लिए चिंता का सबब बन गए हैं.
वहीं, भिंड जिले की लहार, भिंड, अटेर, मुरैना सीट पर बसपा प्रत्याशी बीजेपी से बगावत कर चुनावी मैदान में उतरे हैं. यही वजह है कि बीजेपी के लिए यहां पर बसपा एक बड़ा खतरा बनी हुई है. हालांकि, लहार विधानसभा सीट कांग्रेस, भिंड बसपा और मुरैना सीट कांग्रेस के पास है. 2013 में लहार सीट बसपा ने जीती थी. बसपा ने सबसे ज्यादा फोकस इसी ग्वालियर-चंबल के साथ-साथ विंध्य क्षेत्र में किया है.
चंबल इलाके में मायावती का फोकस
मायावती ने मध्य प्रदेश में सियासी दौरों का पूरा खाका इसी इलाके में रहा. मायावती ने पहले बुंदेलखंड के निवाड़ी और दतिया जिले के सेवड़ा में रैली किया, इसके बाद छतरपुर और दमोह, रीवा और सतना में किया. भिंड और मुरैना में मायावती ने रैलियां करके माहौल बनाने की कोशिश की है. इस तरह से मायावती ने तीसरी ताकत बनने के लिए सबसे फोकस चंबल इलाके में किया, जिसके चलते ही बसपा मुख्य मुकाबले में खड़ी नजर आ रही है, उससे कांग्रेस और बीजेपी की चिंताएं बढ़ गई है.
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