लंदन। ब्रिटिश वैज्ञानिकों (British scientists) ने ‘कृत्रिम सूर्य’ (artificial sun) बनाने का दावा किया है। वैज्ञानिकों (scientists) के मुताबिक, इस तकनीक की मदद से सितारों जैसी ऊर्जा का दोहन किया जा सकेगा और धरती पर सस्ती व साफ ऊर्जा मिलने का रास्ता साफ होगा।
वैज्ञानिकों (scientists) ने कहा कि उन्होंने एक ऐसा रिएक्टर (reactor) बनाने में सफलता हासिल की है जो सूर्य की तकनीक(sun technology) पर न्यूक्लियर फ्यूजन (nuclear fusion) करता है, जिससे अपार ऊर्जा निकलती है। दरअसल, न्यूक्लियर फ्यूजन वही प्रक्रिया है, जिसका इस्तेमाल सूर्य जैसी गर्मी पैदा करने के लिए होता है। जेट फ्यूजन रिएक्टर अपने ईंधन को लगभग 150 मिलियन डिग्री तक गर्म करता है, जो कि सूर्य से लगभग दस गुना अधिक गर्म है।
यह न्यूट्रॉन के उत्सर्जन के कारण ढाई मीटर मोटी कंक्रीट में घिरा हुआ है। इस प्रयोग के दौरान रिएक्टर से पांच सेकंड तक 59 मेगाजूल ऊर्जा निकली। आमतौर पर इतनी मात्रा में ऊर्जा पैदा करने के लिए 14 किलो टीएनटी का इस्तेमाल करना पड़ता है। परमाणु संलयन तकनीक में ठीक उसी तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है जो सूर्य गर्मी पैदा करने के लिए करता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि परिणाम अच्छे मिलते रहे तो भविष्य में इससे मानवता को भरपूर, सुरक्षित और साफ ऊर्जा स्रोत मिलेगा, जिससे जलवायु परिवर्तन की समस्या से निजात मिल सकेगा। परमाणु संलयन पर केंद्रित ब्रिटिश प्रयोगशाला में यह सफलता वर्षों के प्रयोग के बाद मिली है। नवीनतम परीक्षणों के परिणामस्वरूप 59 मेगाजूल निरंतर ऊर्जा का उत्पादन हुआ। इतनी ऊर्जा पांच सेकेंड में 60 केतली उबालने के लिए पर्याप्त है। यह ऊर्जा 1997 में इसी तरह के परीक्षणों में हासिल की गई तुलना से दोगुने से भी अधिक है। ऑक्सफोर्ड के पास स्थित संयुक्त यूरोपीय टोरस (जेईटी) प्रयोगशाला के वैज्ञानिक इस प्रक्रिया पर 1980 के दशक से काम कर रहे हैं। परियोजना का नेतृत्व कर रहे प्रोफेसर इयान ने कहा, ‘संलयन सूर्य की शक्ति का मूल स्रोत है। हम लंबे समय से उस शक्ति को फिर से बनाने की कोशिश कर रहे हैं। यह मशीन एक प्रयोग है लेकिन हम यह साबित करने के बहुत करीब हैं कि यह बड़े पैमाने पर काम कर सकता है। फ्यूजन जलवायु परिवर्तन के खिलाफ हमारी लड़ाई का एक बड़ा हिस्सा है।’ जेईटी प्रयोगशाला में लगाई डॉनट के आकार की मशीन लगाई गई है जिसे ‘टोकामैक’ नाम दिया गया है। यह दुनिया में सबसे बड़ी और सबसे शक्तिशाली है। इस मशीन के अंदर बहुत कम मात्रा में ड्यूटीरियम और ट्रीटीयम भरा गया। ये दोनों ही हाइड्रोजन के आइसोटोप हैं और ड्यूटीरियम को हैवी हाइड्रोजन कहा जाता है। इसे सूर्य के केंद्र की तुलना में 10 गुना ज्यादा गर्म किया गया ताकि प्लाज्मा का निर्माण किया जा सके। इसे सुपरकंडक्टर इलेक्ट्रोमैग्नेट का इस्तेमाल करके एक जगह पर रखा गया। इसके घूमने पर अपार मात्रा में ऊर्जा निकली। परमाणु संलयन से पैदा हुई ऊर्जा सुरक्षित होती है और यह एक किलोग्राम में कोयला, तेल या गैस से पैदा हुई ऊर्जा की तुलना में 40 लाख गुना ज्यादा ऊर्जा पैदा करती है। ब्रिटेन के विज्ञान मंत्री जार्ज फ्रीमैन ने इस परिणाम की प्रशंसा करते हुए इसे मील का पत्थर करार दिया है। उन्होंने कहा, ये इस बात का प्रमाण हैं कि ब्रिटेन में उल्लेखनीय शोध और नई खोजों को बढ़ावा दिया गया है और यूरोपीय सहयोगियों की मदद से परमाणु संलयन पर आधारित ऊर्जा को वास्तविक रूप दिया गया है।