लंदन। ब्रिटिश सांसद बॉब ब्लैकमैन (British MP Bob Blackman) ने चेतावनी दी है कि कश्मीर (Kashmir) से भारतीय सेना (Indian Army) हटी तो इस्लामी कट्टरपंथी (Islamic fundamentalists) ताकतें घाटी का हाल अफगानिस्तान (Afghanistan) जैसा कर देंगी। उन्होंने कहा, जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) से भारतीय सेना के न रहने पर वहां इस्लामी कट्टरपंथी ताकतों को रोकने वाला कोई नहीं रहेगा और राज्य में तालिबानराज (Taliban Raj) के हालात बन जाएंगे।
कश्मीर मसले पर ब्रिटिश संसद में हुई बहस के दौरान सांसद ने कहा, सेना का जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र बनाए रखने में बड़ा योगदान है। असल में ‘ऑल पार्टी पार्लियामेंट्री ग्रुप ऑन कश्मीर’ (एपीपीजीके) की तरफ से सांसद डेबी अब्राहम व पाकिस्तानी मूल की सांसद यास्मीन कुरैशी ने ब्रिटेन की संसद के निचले सदन हाउस ऑफ कॉमन्स में कश्मीर में मानवाधिकारों की स्थिति चर्चा का प्रस्ताव रखा था। चर्चा में 20 से ज्यादा सांसदों ने भाग लिया।
इस मसले पर प्रस्ताव का विरोध करते हुए लेबर सांसद बैरी गार्डिनर ने कहा कि पाकिस्तान आतंकवाद को पनाह देता है। वर्षों तक पाकिस्तान ने तालिबानी को पनाह दी, आईएसआई ने आतंकवादी संगठनों को हर तरह से मदद दी, नतीजतन अफगानिस्तान से अमेरिका और ब्रिटेन को हटना पड़ा, इसके बाद के घटनाक्रम से हमें लोकतंत्र, बहुलवाद व मानवाधिकारों और कट्टरपंथ, आतंकवाद व मानवाधिकारों के दमन के बीच संबंधों को समझना होगा।
पाकिस्तान से पैसे लेकर कश्मीर का राग गाता है एपीपीजीके
डेबी अब्राहम व एपीपीजीके पिछले वर्ष बड़े विवाद में फंसे थे जब इस बात का खुलासा हुआ कि इस गुट को पाकिस्तान आने के लिए पाक सरकार से करीब 30 लाख रुपये मिले थे। फरवरी 2020 में अब्राहम को भारत ने दुबई से दिल्ली आते वक्त वैध पासपोर्ट नहीं होने की वजह से एयरपोर्ट से ही लौटा दिया था।
भारत ने जताया विरोध
वहीं, भारत सरकार ने इस चर्चा में भाग ले रहे सांसदों खासतौर से पाकिस्तानी मूल की सांसद नाज शाह की तरफ से इस्तेमाल की गई भाषा पर कड़ी आपत्ति जताई। ब्रिटेन में भारतीय उच्चायोग ने यह कहते हुए विरोध जताया कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के खिलाफ आरोप लगाने के लिए एक साथी लोकतांत्रिक देश की संस्था का दुरुपयोग किया गया।
ब्रिटिश सरकार ने दिया स्पष्टीकरण
दूसरी तरफ, चर्चा के दौरान ब्रिटिश सरकार की तरफ से विदेश, राष्ट्रमंडल व एशिया मंत्री अमांडा मिलिंग ने साफ किया, भारत के साथ द्विपक्षीय मुद्दे के तौर पर कश्मीर को लेकर ब्रिटिश सरकार के रुख में कोई बदलाव नहीं आया है।
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