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    आज होने वाले चुनावों में तय होगा ब्रिटेन का भविष्य

  • May 06, 2021

    लंदन। ब्रिटेन(Britain) में गुरुवार को होने वाले चुनावों (Elections) को देश के भविष्य (Future of the country) के लिए बेहद अहम माना जा रहा है। हालांकि चुनाव कई स्तरों पर होंगे, लेकिन पर्येवक्षकों की खास निगाह स्कॉटलैंड में होने वाले प्रांतीय चुनाव (Provincial elections to be held in Scotland) पर है। वहां के नतीजों से यह तय होगा कि स्कॉटलैंड की आजादी (Independence of scotland) के लिए फिर से जनमत संग्रह कराने की मांग(Demand for referendum) किस दिशा में जाएगी।
    इसके अलावा पूरे देश में स्थानीय चुनाव होंगे। संसद की एक सीट के लिए उपचुनाव भी होगा। इन चुनावों को कोरोना महामारी के दौरान प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन(Prime Minister Boris Johnson) की सरकार के कामकाज पर जनमत संग्रह समझा जा रहा है। उधर दिसंबर 2019 के चुनाव में लेबर पार्टी की हार के बाद पार्टी के नेता बने कियर स्टार्मर अपनी पार्टी में कितनी जान फूंक पाए हैं, इसका संकेत भी इन चुनावों से मिलेगा।



    दांव पर लंदन के मेयर सादिक खान का भविष्य भी लगा है। कोरोना काल में लंदन के नगर प्रशासन ने जो कदम उठाए, उस पर यहां बाशिंदे पहली बार अपना फैसला सुनाएंगे। लंदन की शहर परिषद के 25 सदस्यों को चुनने के लिए भी शहर के मतदाता वोट डालेंगे। लंदन के अलावा 12 और शहरों में मेयर चुनने के लिए वोट डाले जाएंगे। इनके अलावा देश भर में 39 पुलिस और अपराध आयुक्त पदों के लिए भी चुनाव होगा।
    स्थानीय चुनावों में पांच हजार से ज्यादा सीटें दांव पर लगी हैं। ये सीटें इंग्लैंड की 143 काउंसिलों की हैं। स्थानीय चुनाव पिछले साल ही होने थे। लेकिन कोरोना महामारी के कारण उन्हें टाल दिया गया था। संसदीय चुनाव इंग्लैंड के हार्टलपुल सीट पर कराया जा रहा है। वेल्स वेल्स की 60 सदस्यीय प्रांतीय असेंबली के निर्वाचन के लिए भी गुरुवार को वोट डाले जाएंगे।
    विश्लेषकों के मुताबिक सबसे ज्यादा निगाह स्कॉटलैंड की 129 सदस्यीय प्रांतीय संसद के चुनाव पर है। अगर इसमें स्कॉटिश नेशनल पार्टी (एसएनपी) को बड़ी जीत मिली, तो उसे स्कॉटलैंड की आजादी के लिए जनादेश समझा जाएगा। तब इस मुद्दे पर दोबारा जनमत संग्रह कराने की मांग को ठुकराना बोरिस जॉनसन सरकार के लिए शायद मुश्किल हो जाएगा। लेकिन इस बार एसएनपी को बड़ी जीत मिलेगी, इसमें संदेह है। इसकी वजह हाल में एसएनपी में हुआ विभाजन है। पार्टी के वरिष्ठ नेता एलेक्स सैलमंड ने अल्बा पार्टी नाम से अपना अलग दल बना लिया है। ये पार्टी भी आजादी की मांग की समर्थक है। इसलिए संभव है कि एसएनपी और अल्बा पार्टियों के बीच वोटों का बंटवारा हो जाए।
    एसएनपी की नेता निकोला स्टर्जन कह चुकी हैं कि अगर उनकी पार्टी जीती, तो वे दोबारा जनमत संग्रह कराने की मांग पर जोर देंगी। पार्टी के संविधान सचिव माइकल रसेल ने कहा है कि दूसरे जनमत संग्रह से इनकार करने का कोई लोकतांत्रिक तर्क नहीं है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री जॉनसन और उनकी कंजरवेटिव पार्टी अभी तक दोबारा जनमत संग्रह कराने से इनकार करते रहे हैं। जॉनसन ने कहा है कि 2014 में जो जनमत संग्रह हुआ, वह कई पीढ़ियों के बाद होने वाली घटना है। उस जनमत संग्रह में मामूली अंतर से आजादी समर्थक हार गए थे। लेकिन स्टर्जन और दूसरे आजादी समर्थकों का अब कहना है कि ब्रेग्जिट के बाद हालात बदल गए हैं। अब स्कॉटलैंड का बहुमत ब्रिटेन में रहने के पक्ष में नहीं है।
    स्टर्जन ने कहा है कि अगर जॉनसन ने गुरुवार के चुनाव के बाद दोबारा जनमत संग्रह की मांग नहीं मानी, तो स्कॉटिश संसद खुद इस बारे में फैसला करेगी। उस फैसले के तहत आजादी के बारे में स्कॉटलैंड के लोगों की राय पूछी जाएगी। जानकारों का कहना है कि ऐसा हुआ, तो मामला कानूनी दांवपेच में फंसेगा। तब ये मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में जाएगा कि क्या प्रांतीय संसद को जनमत संग्रह कराने के बारे में फैसला लेने का हक है।

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