आईने में अपनी भद््दी शक्ल देखकर इतना गुस्सा आया कि आईना तोडक़र अपना तेवर दिखाया… टूटे आईने के सैकड़ों टुकड़ों में जब वही भद्दा चेहरा नजरा आया तो महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री शिंदे की शकल के साथ अकल पर भी लोगों ने तरस खाया… एक कॉमेडियन का शिकार हुए एकनाथ शिंदे के नाथ बदलने और दगा करने की चार पंक्तियों ने इतना कोहराम मचाया कि सत्ता के दंभ और अहंकार में डूबे शिंदे के पट््ठों ने कॉमेडियन का स्टूडियो तहस-नहस कर डाला… किसी ने फतवा जारी किया तो किसी ने कॉमेडियन का मुंह काला करने पर इनाम रख दिया… एक कमरे में चंद लोगों के बीच हुई कॉमेडी पूरे देश की कानाफूसी का हिस्सा बन गई… जिन्होंने नहीं सुनी थी उन्होंने ढूंढ-ढूंढकर चार पंक्तियों के मजे लिए और शिंदे पर चालीस तोहमतें कस डालीं… अपना नजरिया व्यक्त करते कॉमेडियन कामरा ने शिंदे और शिवसेना का जिक्र करते हुए बिना नाम लिए केवल इशारों में इतना-भर तो कहा था कि पहले शिवसेना भाजपा से अलग हुई… फिर शिवसेना शिवसेना से और एनसीपी एनसीपी से बाहर आ गई… इसी पर कॉमेडियन ने कविता गढ़ते हुए कहा ठाणे की रिक्शा… चेहरे पर दाढ़ी… आंखों पे चश्मा हाय… एक झलक दिखलाए कभी गोहाटी में छुप जाए… मेरी नजर से तुम देखो गद््दार नजर वो आए…मंत्री नहीं वो दलबदलू कहलाए… जिस थाली में खाए उसमें छेद कर जाए… कॉमेडियन की बातों में सत्ता की सच्चाई… राजनीति की गहराई और खुद की टुच्चाई देख शिंदे इतने बौखलाए कि कॉमेडियन के स्टूडियो में तोडफ़ोड़ करवाकर कमरे में बंद बात पूरे देश में पहुंचा दी… राजनीति के चाणक्य फडणवीस ने भी शिंदे की भद््दी शक्ल पूरे देश को दिखाने की चतुराई दिखाते हुए कॉमेडियन पर मुकदमा दर्ज करा दिया… ताकि बात आगे बढ़े और पूरा देश शिंदे पर तोहमतें कसे… कॉमेडियन भी अपनी चार पंक्तियों को जिंदा करने के लिए इस कदर अकड़ू हो गया कि माफी मांगना तो दूर शिंदे समर्थकों को ललकारने लगा… मौके का फायदा उठाती उद्धव की शिवेसना ने हाथो-हाथ कॉमेडियन पर हाथ रखकर उसे अपनी सेना का सिपाही बना डाला… बात अभिव्यक्ति की आजादी तक पहुंच गई… महाराष्ट्र से चली आग उत्तरप्रदेश तक जा पहुंची और मुंहफट योगी ने जुबान की आजादी पर भी शर्तें थोप डालीं…भाजपा से लेकर शिंदे की सेना जिस तरह गुर्रा रही है उससे साफ नजर आ रहा है कि जो उनको हो पसंद वही बात कहोगे…जो नापसंद बात करोगे तो कठघरे में खड़े रहोगे… बात कॉमेडी से शुरू हुई थी, गंभीरता तक पहुंच गई… देश सवाल करने लगा कि दलबदलुओं को गद््दार नहीं तो क्या वफादार कहेंगे… जिसे वोट देंगे वो अपनी ताकत बेच आएगा तो उसे शरीफ कैसे समझेंगे…गद्दारी के लिए बचपन से सीखते आ रहे थाली में छेद के मुहावरे को कैसे भूल सकेंगे…जिनको करने में शर्म नहीं आती उन्हें कहने में क्यों झिझकेंगे…नेता और उनके समर्थक मुकदमा किस बात पर करेंगे… कॉमेडियन की किस पंक्ति को झुठला सकेंगे…सच तो यह है कि आईना फोडऩे से शक्ल नहीं बदल जाएगी…टूटे आईने के हर हिस्से से वही भद््दी तस्वीर नजर आएगी…दुहाई शक्ल पर नहीं अकल को भी दी जाएगी…
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