– योगेश कुमार गोयल
एक और मासूम बच्चे ने पिछले दिनों बोरवेल के अंदर दम तोड़ दिया। घटना मध्य प्रदेश के निवाड़ी जिले के सैतपुरा गांव की है, जहां बोरवेल में गिरे चार वर्षीय मासूम प्रह्लाद को चार दिनों की जद्दोजहद के बाद अंततः मृत ही बाहर निकाला जा सका। सैतपुरा गांव के हरकिशन कुशवाहा का चार वर्षीय पुत्र प्रहलाद परिजनों के साथ खेत पर गया था, जहां परिजनों द्वारा घटना से पांच दिन पूर्व ही खेत में 200 फुट गहरा 9 इंच चौड़ा बोर कराया गया था। प्रहलाद खेलते-खेलते बोर के पास चला गया और अचानक उस गहरे बोर में जा गिरा। पता चलते ही परिजनों द्वारा आनन-फानन में प्रशासन को सूचित किया गया, जिसके बाद हालांकि बचाव दल में शामिल एसडीआरएफ, एनडीआरएफ तथा अन्य विशेषज्ञों की टीम द्वारा करीब 90 घंटे तक रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया गया लेकिन मासूम को बचाया नहीं जा सका और इस प्रकार खुला बोरवेल एक और मासूम को जिंदा निगल गया।
थोड़े-थोड़े अंतराल पर लगातार सामने आते ऐसे दर्दनाक हादसे काफी चिंताजनक हैं लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि ऐसे हादसों पर पूर्णविराम लगाने के लिए कहीं कोई कारगर प्रयास नहीं दिखता। बोरवेल हादसे पिछले कुछ वर्षों से जागरुकता के बावजूद निरन्तर सामने आ रहे हैं किन्तु इनसे कोई सबक सीखने को तैयार नहीं दिखता। ऐसे मामलों में अक्सर सेना-एनडीआरएफ की बड़ी विफलताओं को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं कि अंतरिक्ष तक में अपनी धाक दिखाने में सफल हो रहे भारत के पास चीन तथा कुछ अन्य देशों जैसी वो स्वचालित तकनीकें क्यों नहीं हैं, जिनका इस्तेमाल कर ऐसे मामलों में बच्चों को अपेक्षाकृत काफी जल्दी बोरवेल से बाहर निकालने में मदद मिल सके।
सवाल यह भी हैं कि आखिर बार-बार होते ऐसे दर्दनाक हादसों के बावजूद देश में बोरवेल और ट्यूबवैल के गड्ढे कब तक इसी प्रकार खुले छोड़े जाते रहेंगे और कबतब मासूम जानें इनमें फंसकर इसी तरह दम तोड़ती रहेंगी। आखिर कबतक मासूमों की जिंदगी से ऐसा खिलवाड़ होता रहेगा? कोई भी बड़ा हादसा होने के बाद प्रशासन द्वारा बोरवेल खुला छोड़ने वालों के खिलाफ अभियान चलाकर सख्ती की बातें तो दोहरायी जाती हैं लेकिन बार-बार सामने आते ऐसे हादसे यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि सख्ती की ये सब बातें कोई घटना सामने आने पर लोगों के उपजे आक्रोश के शांत होने तक ही बरकरार रहती हैं। ऐसे हादसों के लिए बोरवेल खुला छोड़ने वाले खेत मालिक के साथ-साथ ग्राम पंचायत और स्थानीय प्रशासन भी बराबर के दोषी होते हैं।
पिछले साल मध्य प्रदेश के देवास जिले में खातेगांव कस्बे के उमरिया गांव में हीरालाल नामक व्यक्ति को अपने खेत में सूखा बोरवेल खुला छोड़ देने के अपराध में जिला सत्र न्यायालय ने दो वर्ष सश्रम कारावास तथा 20 हजार रुपये अर्थदंड की सजा सुनाई थी। अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि लोग बोरवेल कराकर उन्हें इस प्रकार खुला छोड़ देते हैं, जिससे उनमें बच्चों के गिरने की घटनाएं हो जाती हैं और समाज में बढ़ रही लापरवाही के ऐसे मामलों में सजा देने से ही लोगों को सबक मिल सकेगा। अगर मध्य प्रदेश में जिला अदालत के उसी फैसले की तरह ऐसे सभी मामलों में त्वरित न्याय प्रक्रिया के जरिये दोषियों को कड़ी सजा मिले, तभी लोग खुले बोरवेल बंद करने को लेकर सक्रिय होंगे अन्यथा बोरवेल इसी प्रकार मासूमों की जिंदगी छीनते रहेंगे और हम ऐसी मासूम मौतों पर घडि़याली आंसू बहाने तक ही अपनी भूमिका का निर्वहन करते रहेंगे।
अबतक अनेक मासूम जिंदगियां बोरवेल में समाकर जिंदगी की जंग हार चुकी हैं किन्तु विडम्बना है कि सुप्रीम कोर्ट के सख्त निर्देशों के बावजूद कभी ऐसे प्रयास नहीं किए गए, जिससे ऐसे मामलों पर अंकुश लग सके। विडम्बना है कि देश में प्रतिवर्ष औसतन 50 बच्चे बेकार पड़े खुले बोरवेलों में गिर जाते हैं, जिनमें से बहुत से बच्चे इन्हीं बोरवेलों में जिंदगी की अंतिम सांसें लेते हैं। ऐसे हादसे हर बार किसी परिवार को जीवन भर का असहनीय दुख देने के साथ-साथ समाज को भी बुरी तरह झकझोर जाते हैं। भूगर्भ जल विभाग के अनुमान के अनुसार देशभर में करीब 2.70 करोड़ बोरवेल हैं लेकिन सक्रिय बोरवेलों की संख्या, अनुपयोगी बोरवेलों की संख्या तथा उनके मालिक का राष्ट्रीय स्तर का कोई डाटाबेस मौजूद नहीं है। बोरवेलों में बच्चों के गिरने की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में ऐसे हादसों पर संज्ञान लेते हुए कुछ दिशा-निर्देश जारी किए थे। 2013 में कई दिशा-निर्देशों में सुधार करते हुए नए दिशा-निर्देश जारी किए गए थे, जिनके अनुसार गांवों में बोरवेल की खुदाई सरपंच तथा कृषि विभाग के अधिकारियों की निगरानी में करानी अनिवार्य है जबकि शहरों में यह कार्य ग्राउंड वाटर डिपार्टमेंट, स्वास्थ्य विभाग तथा नगर निगम इंजीनियर की देखरेख में होना जरूरी है।
अदालत के निर्देशानुसार बोरवेल खुदवाने के कम से कम 15 दिन पहले डी.एम., ग्राउंड वाटर डिपार्टमेंट, स्वास्थ्य विभाग और नगर निगम को सूचना देना अनिवार्य है। बोरवेल की खुदाई से पहले उस जगह पर चेतावनी बोर्ड लगाया जाना और उसके खतरे के बारे में लोगों को सचेत किया जाना आवश्यक है। इसके अलावा ऐसी जगह को कंटीले तारों से घेरने और उसके आसपास कंक्रीट की दीवार खड़ी करने के साथ गड्ढ़ों के मुंह को लोहे के ढक्कन से ढंकना भी अनिवार्य है लेकिन इन दिशा-निर्देशों का कहीं पालन होता नहीं दिखता। दिशा-निर्देशों में स्पष्ट है कि बोरवेल की खुदाई के बाद अगर कोई गड्ढा है तो उसे कंक्रीट से भर दिया जाए लेकिन ऐसा न किया जाना हादसों का सबब बनता है। ऐसे हादसों में न केवल मासूमों की जान जाती है बल्कि रेस्क्यू ऑपरेशनों पर अथाह धन, समय और श्रम भी नष्ट होता है।
प्रायः होता यही है कि तेजी से गिरते भू-जल स्तर के कारण नलकूपों को चालू रखने के लिए कई बार उन्हें एक जगह से दूसरी जगह स्थानांतरित करना पड़ता है और पानी कम होने पर जिस जगह से नलकूप हटाया जाता है, वहां लापरवाही के चलते बोरवेल खुला छोड़ दिया जाता है। कहीं बोरिंग के लिए खोदे गए गड्ढ़ों या सूख चुके कुओं को बोरी, पॉलीथीन या लकड़ी के फट्टों से ढांप दिया जाता है तो कहीं इन्हें पूरी तरह से खुला छोड़ दिया जाता है और अनजाने में ही कोई ऐसी अप्रिय घटना घट जाती है, जो किसी परिवार को जिंदगी भर का असहनीय दर्द दे जाती है। न केवल सरकार बल्कि समाज को भी ऐसी लापरवाहियों को लेकर चेतना होगा ताकि भविष्य में फिर ऐसे दर्दनाक हादसों की पुनरावृत्ति न हो। देश में ऐसी स्वचालित तकनीकों की भी व्यवस्था करनी होगी, जो ऐसी विकट परिस्थितियों में तुरंत राहत प्रदान करने में सक्षम हों।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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