सत्ता, संगठन और संघ के तालमेल ने भाजपा को दिलाई चमत्कारिक जीत, तो कांग्रेेस हाथ पर हाथ धरे सिर्फ जन आक्रोश के मुगालते में ही निपट गई
इंदौर। हाथ पर हाथ धरे और सिर्फ जनाक्रोश के मुगालते में चुनाव मैदान में उतरी कांग्रेस (Congress) बुरी तरह निपटी और सरकार बनाने का दावा तो धरा ही रह गया, वहीं पिछली बार की तुलना में सीटें भी कम मिलीं। भाजपा ने जहां बंपर सीट हासिल करते हुए 163 सीटों पर कब्जा जमाया तो कांग्रेस मात्र 66 सीटों पर ही सिमट गई। सत्ता, संगठन और संघ के तालमेल ने भाजपा को चमत्कारिक जीत दिलाई, जिसमें सनातन, राम मंदिर के साथ मोदी मैजिक ने तो कमाल किया ही, वहीं शिवराज की लाड़ली बहना ने बूस्टर डोज लगा दिया, जिसके चलते कम से कम 50 सीटों का इजाफा हुआ है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) की गारंटी को तो प्रदेश की जनता ने स्वीकार किया ही, साथ ही अमित शाह की कुशल रणनीति ने जो प्रयोग किए वह भी सफल साबित हुए और 51 फीसदी तक भाजपा का वोट शेयर पहुंच गया। सनातन के साथ-साथ राम मंदिर सहित अन्य नैरेटिव सेट करने में भी भाजपा सफल रही, तो लाड़ली बहना ने भी भरपल्ले वोट उसकी झोली में डाल दिए। इसमें कोई शक नहीं कि भाजपा ने मध्यप्रदेश के साथ-साथ राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी चमत्कार किया और अपनी सरकार बना ली, लेकिन मध्यप्रदेश में जो 163 रिकॉर्ड सीटें मिली हैं उसमें लाड़ली बहना का योगदान कमतर नहीं है, अन्यथा भाजपा सरकार अगर बना भी लेती तो 115-120 सीटें हासिल होतीं, लेकिन लाड़ली बहना के बूस्टर डोज ने सीटों की संख्या बढ़ाकर 163 तक पहुंचा दी, क्योंकि महिलाओं का वोट शेयर पुरुषों की तुलना में कहीं ज्यादा बढ़ा है। भाजपा के साथ सत्ता, संगठन की ताकत तो थी ही, वहीं इस बार विधानसभा चुनाव में संघ ने भी अपनी पूरी ताकत झोंकी। उसका भी तगड़ा फायदा चुनाव परिणामों में साफ नजर आया है। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान, जो कि मामा के नाम से मशहूर हैं, का जादू भी चल गया। हालांकि पूरी भाजपा मोदी-शाह से लेकर जेपी नड्डा को श्रेय दे रही है, जो कि सही भी है। मगर टीम वर्क का बखूबी प्रदर्शन भाजपा ने किया, जबकि कांग्रेस मतदान होने तक बिखर गई और उसके उम्मीदवारों ने ही अपने बलबूते पर जैसे-तैसे किला लड़ाया। 2003 में जब दिग्विजयसिंह की सरकार के खिलाफ एंटी-इंकम्बेंसी थी, उस वक्त उमा भारती के नेतृत्व में भाजपा ने 173 सीटें हासिल की थीं। उसके बाद शिवराजसिंह चौहान के नेतृत्व में भी दो बार भाजपा ने सरकार बनाई और पिछला चुनाव कांग्रेस ने अधिक सीटों के साथ जीता, मगर डेढ़ साल बाद ही उसका तख्तापलट हो गया और फिर शिवराज मुख्यमंत्री बन गए। इस बार चुनाव में भले ही भाजपा नेतृत्व ने उन्हें मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित न किया हो, मगर अब जो परिणाम सामने आए हैं उसके बाद यह चर्चा चल पड़ी कि लोकसभा चुनाव तक तो संभव है कि शिवराज ही मुख्यमंत्री बने रहें, क्योंकि भाजपा नेतृत्व ने भी अपने साथ मामा का भी मैदानी जादू महसूस कर लिया है।
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