मुंबई (Mumbai) । बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay high court) ने मंगलवार को महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra Government) के हालिया मराठा आरक्षण अधिनियम (Maratha Reservation Act) पर तत्काल अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया. नवीनतम आरक्षण के खिलाफ याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से अंतिम सुनवाई और उनकी याचिकाओं के निपटारे तक अधिनियम के कार्यान्वयन पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की थी.
मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति आरिफ डॉक्टर की पीठ ने हालांकि कहा कि किसी कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाले मामलों में अनुमानित संवैधानिकता का एक सिद्धांत है और इसलिए सभी तर्कों को उचित महत्व दिया जाना चाहिए.
पीठ ने कहा, हम राज्य को अंतरिम राहत पर जवाब देने के लिए कुछ समय देना चाहते हैं. यह (कोटा निर्णय) एक साधारण प्रशासनिक आदेश नहीं है. यह एक कानून है. इसलिए हमें कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते समय निर्धारित सिद्धांतों को ध्यान में रखना होगा. अनुमानित संवैधानिकता का एक सिद्धांत है. हमें सभी तर्कों को उचित महत्व देना होगा.
पीठ ने कहा कि मराठों को आरक्षण देने का महाराष्ट्र सरकार का कदम एक कानून में निहित है, न कि किसी प्रशासनिक आदेश में और राज्य को याचिकाओं पर प्रतिक्रिया देने के लिए समय चाहिए. पीठ ने राज्य सरकार को मराठा समुदाय को नौकरियों और शिक्षा में अलग से 10 प्रतिशत कोटा देने वाले हाल ही में लागू कानून के कार्यान्वयन पर अंतरिम राहत की मांग करने वाली याचिकाओं के जवाब में एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया.
पीठ ने यह भी बताया कि पिछले हफ्ते एक समन्वय पीठ ने कुछ याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए एक अंतरिम आदेश में कहा था कि नए मराठा कोटा कानून के तहत दिया गया कोई भी एडमिशन या रोजगार इस अदालत के अंतिम आदेशों के अधीन होगा.
पीठ ने कहा, “यह अधिनियम के तहत एडमिशन या रोजगार चाहने वाले उम्मीदवारों के लिए एक स्पष्ट चेतावनी/संकेत/नोटिस है. हम अंतरिम राहत देने पर सभी याचिकाओं पर सुनवाई करेंगे.”
अदालत ने महाराष्ट्र सरकार को याचिकाओं के जवाब में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया और सुनवाई स्थगित करते हुए कहा, ”अंतरिम राहत देने के मुद्दे पर हम 10 अप्रैल को याचिकाओं पर सुनवाई करेंगे.”
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि अतीत में सुप्रीम कोर्ट ने मराठा समुदाय के सदस्यों के लिए आरक्षण को रद्द कर दिया था. याचिकाकर्ताओं में से एक, जो एक वकील भी हैं, गुणरतन सदावर्ते ने कहा कि नए मराठा कोटा कानून के साथ, महाराष्ट्र में नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण का प्रतिशत 72 प्रतिशत हो गया है, जिससे सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए केवल 28 प्रतिशत रह गया है.
एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील अरविंद दातार ने तर्क दिया कि सभी राज्यों के लिए आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत है. दातार ने कहा, “सभी राज्य इस 50 प्रतिशत की सीमा का पालन कर रहे हैं. लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने इसे पार कर लिया है. इसकी वैधता पर निर्णय होने तक अधिनियम के कार्यान्वयन पर रोक लगाई जानी चाहिए.”
पीठ महाराष्ट्र राज्य सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण अधिनियम, 2024 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसके तहत सरकारी नौकरियों और शिक्षा में समुदाय को 10 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है. कोटा सक्षम करने वाला विधेयक पिछले महीने राज्य विधानमंडल के एक विशेष सत्र में पारित किया गया था.
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