मुंबई (Mumbai)। बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay high court) ने रेलवे वैगन की बिक्री के विवाद (Railway Wagon Sale Controversy) में एक आदेश को चुनौती देने वाली ईरान सरकार की अपील (Iranian government’s appeal) को खारिज कर दिया है। इससे पहले अदालत ने वर्ष 1970 के इस मामले में ईरान सरकार को एक भारतीय कंपनी (Indian company) को 35 लाख अमेरिकी डॉलर से अधिक का मुआवजा (Compensation of more than 3.5 million US dollars) देने का निर्देश दिया था। जिसके बाद ईरान सरकार ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
न्यायमूर्ति केआर श्रीराम और न्यायमूर्ति राजेश पाटिल की खंडपीठ ने इस सप्ताह की शुरुआत में एक फैसले में ईरान सरकार की याचिका को खारिज करने के बाद 10 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया। यह जुर्माना राशि चार सप्ताह के भीतर भारतीय कंपनी केटी स्टील्स को देनी होगी।
इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान (IRI) ने ईरानी इस्लामिक रिपब्लिक रेलवे (RAI) के माध्यम से रेलवे वैगनों की खरीद के लिए एक वैश्विक निविदा जारी की थी। उस समय भारत सरकार स्टेट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन (एसटीसी) के माध्यम से वैगनों का निर्यात कर रही थी। भारतीय कंपनी केटी स्टील्स ने एसटीसी के माध्यम से अपनी बोली लगाई थी और भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी ने 16 मार्च, 1970 को ईरानी सरकार के साथ एक खरीद अनुबंध किया था। एसटीसी ने नवंबर 1970 में एक अलग अनुबंध के माध्यम से केटी स्टील्स को अनुबंध का लाभ सौंपा।
इसके बाद 1972 में अंतरराष्ट्रीय तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण वैगनों के शिपमेंट के लिए माल ढुलाई शुल्क में वृद्धि हुई और अगस्त 1976 में अनुबंध में संशोधन किया गया। इस संशोधन के साथ, निर्यात 1977 तक जारी रहा। हालांकि, केटी स्टील्स ने दावा किया कि इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान (आईआरआई) 1973 में 306 वैगनों और 1977 में शिप किए गए 94 वैगनों के लिए माल ढुलाई शुल्क का भुगतान करने में विफल रहा। भारतीय फर्म ने सितंबर 1996 में हाईकोर्ट में मुकदमा दायर किया, लेकिन ईरान सरकार अदालत के सामने कभी पेश नहीं हुई।
इसके बाद 2008 में तत्कालीन बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ द्वारा पारित फैसले में हाईकोर्ट ने आईआरआई को 306 वैगनों के लिए 13,87,727 अमेरिकी डॉलर और 94 वैगनों के लिए 16,96,722 अमेरिकी डॉलर और नुकसान के लिए 4,84,840 अमेरिकी डॉलर की राशि यानी कुल 35,69,289 अमेरिकी डॉलर का भुगतान करने का निर्देश दिया था। इसके साथ ही अदालत ने वाद दायर करने की तिथि से लेकर वसूली तक माल भाड़ा शुल्क पर 9 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज भुगतान का भी आदेश दिया था।
12 वर्षों के बाद ईरानी इस्लामिक रिपब्लिक रेलवे (आरएआई) ने बॉम्बे हाईकोर्ट में इस आदेश के खिलाफ एक अपील दायर की, जिसमें दावा किया गया कि मुकदमा गलत तरीके से ईरान के इस्लामी गणराज्य के खिलाफ दायर किया गया था, वास्तव में इसे आरएआई के खिलाफ दायर किया जाना चाहिए था। आरएआई ने ईरान के विदेश मंत्रालय से कागजात प्राप्त करने के बाद जुलाई 2019 में कार्यवाही के बारे में पता चलने का दावा किया। इसके बाद आरएआई ने 25 फरवरी, 2020 को एक अपील दायर की।
खंडपीठ ने इस बात पर ध्यान दिया कि आवेदक (आईआरआई) ने इस न्यायालय के समक्ष कोई प्रस्तुतिकरण नहीं दिया है, केवल आरएआई, जो कि अपील के पक्षकार भी नहीं है, ने उपस्थित होने के लिए एक वकील को नियुक्त किया है। सुनवाई के दौरान अपील दायर करने में 12 साल और 10 दिन की देरी के लिए कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं मिला। इन टिप्पणियों के मद्देनजर, उच्च न्यायालय ने इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया और 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया।
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