नई दिल्ली. कोरोना वायरस के उपचार के लिए दवा विकसित करने में काली मिर्च खासी मददगार साबित हो सकती है. एक अध्ययन में यह खुलासा हुआ है. भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा किए गए इस परीक्षण में पाया गया कि काली मिर्च में पाए जाने वाला पाइपराइन नामक तत्व न सिर्फ कोरोना वायरस को रोक सकता बल्कि उसके समूल नाश में भी महत्ती भूमिका का निर्वाह कर सकता है.
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, आईआईटी धनबाद के फिजिक्स विभाग के शोधकर्ताओं ने कोरोना वायरस पर पाइपराइन की उपयोगिता का पता लगाया है. इस टीम का नेतृत्व कर रहे प्रोफेसर उमाकांत त्रिपाठी ने बताया कि अन्य वायरसों की तरह की कोरोना वायरस भी मनुष्यों के शरीर में प्रवेश के लिए कोशिकाओं में घुसने के लिए एक विशेष प्रकार के प्रोटीन का उपयोग करता है. इस पर काबू पाने के लिए शोधकर्ताओं को एक ऐसे प्राकृतिक तत्व की जरूरत थी, जो ऐसा करने में सक्षम हो यानि इस प्रोटीन को बांध सके और वायरस को मानव शरीक की कोशिकाओं में ही जाने न दे और जिसका साइड इफेक्ट भी न पड़े.
इसके लिए शोधार्थियों ने रसोई में प्रयोग होने वाले 30 अणुओं या कहिए मसालों का विश्लेषण किया. उन्होंने उपचार के रूप में इनका प्रयोग करके देखा कि इसका क्या प्रभाव पड़ता है, इस प्रतिक्रिया का मूल्यांकन किया। इसमें काली मिर्च में मौजूद एल्केलॉइड और इसके तीखेपन को लिए जिम्मेदार पाइपराइन तत्वों की पहचान कोरोना वायरस प्रोटीन के खिलाफ मजबूत अवरोधक के रूप में की गई.
इसके लिए विशेषज्ञों ने कोरोना वायरस की प्रणाली को बाधित करने वाले संभावित तत्वों की पहचान के लिए शोधकर्ताओं ने कंप्यूटर आधारित अत्याधुनिक मॉलिक्यूलर डॉकिंग एवं मॉलिक्यूलर डायनेमिक्स सिमुलेशन तकनीकों का प्रयोग किया है. प्रोफेसर त्रिपाठी ने बताया कि अभी यह अध्ययन अपनी प्रारंभिक अवस्था में है, ऐसे में इस अध्ययन के परिणाम काफी उत्साहजनक रहे हैं. यह अध्ययन कंप्यूटर आधारित है, जिसकी पुष्टि प्रयोगशाला में किया जाना जरूरी है.
हालांकि, यह शुरुआती जानकारी है, जो काफी महत्वपूर्ण है. वैसे उड़ीसा की बायोटेक कंपनी बायोलॉजिक्स डेवलपमेंट इम्जेनेक्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के साथ मिलकर इस अणु का परीक्षण प्रयोगशाला में किया जा रहा है. शोधकर्ताओं ने बताया कि कंप्यूटर आधारित अध्ययन प्रायोगिक परीक्षणों से पहले का चरण होता है. इसके बाद अब यदि प्रायोगिक परीक्षण सफल होता है तो यह एक बड़ी कामयाबी होगी, क्योंकि काली मिर्च एक प्राकृतिक उत्पाद है और रासायनिक उत्पादों के मुकाबले इसके दुष्प्रभाव की आशंका नहीं है.
शोधकर्ताओं में प्रोफेसर त्रिपाटी के पीएचडी छात्र जन्मेजय राउत और विकास चंद्र स्वैन शामिल हैं. उनका यह अध्ययन जर्नल ऑफ बायोमॉलिक्यूलर स्ट्रक्चर एंड डायनेमिक्स में प्रकाशित किया गया है.
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