इंदौर। केन्द्र सरकार (central government) और जीएसटी काउंसिल (GST Council) ने एक जनवरी से रेडिमेड गारमेंट (readymade garments from january) और जूते पर जीएसटी (GST) की दर 5 से बढ़ाकर 12 प्रतिशत करने का जो निर्णय लिया है उसके चलते इंदौर सहित प्रदेशभर के व्यापारी आंदोलनरत (agitating) हैं। इंदौर (Indore) में तीन दिन का जो ब्लैक आउट आंदोलन (black out movement) राजवाड़ा, कपड़ा मार्केट (Rajwada, Textile Market) और उससे जुड़े व्यापारियों (merchants) द्वारा किया जा रहा है उसके चलते आज शाम सभी दुकानदार (shopkeeper) अपने पेट पर कपड़ा बांधेंगे और उस पर ताला लगाकर शासन को संदेश देंगे कि 12 प्रतिशत जीएसटी करने से हमारे पेट खाली रहेंगे और रोजी-रोटी पर ताले पड़ जाएंगे।
व्यापारियों द्वारा नित नए तरीके से प्रदर्शन किया जा रहा है। इसी कड़ी में शाम 7 बजे से साढ़े 7 बजे के बीच जो ब्लैक आउट किया जा रहा है उसमें मार्केट के सभी दुकानदार कपड़ा बांधकर, ताला लगाकर प्रदर्शन करेंगे। इंदौर रिटेल गारमेंट (Indore Retail Garment) एसोसिएशन (Association) के अध्यक्ष अक्षय जैन और सचिव महेश गोहर ने बताया कि शासन को जमीनी हकीकत समझना चाहिए और अपनी मांगों को रखने के लिए व्यापारी रोजाना अनोखे अंदाज में प्रदर्शन कर रहे हैं। इसके पूर्व व्यापारियों ने पुतलों को काले कपड़े पहनाकर भी इसी तरह विरोध जताया था। व्यापारियों का कहना है कि आम जनता का भी उन्हें समर्थन मिल रहा है, क्योंकि जनता पर ही इस महंगाई का भार आएगा और 5 से बढ़ाकर जो 12 फीसदी जीएसटी की जा रही है उसके चलते 7 प्रतिशत की वृद्धि होने से रेडिमेट गारमेंट और जूतों की कीमतों में इजाफा होगा। पहले से ही कोरोना और अन्य कारणों से बेरोजगारी बढ़ गई है और छोटे कारोबारियों की स्थिति अत्यंत दयनीय है। राजवाड़ा और उससे जुड़े क्षेत्रों में छोटे कारोबारी ही हैं और शहर का गरीब और निम्न मध्यमवर्गीय तबका यहीं से खरीददारी करता है, जिसके चलते यहां के व्यापारी लगातार विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। मानव श्रंृखला भी पूर्व में बनाई गई। क्लाथ मार्केट एसोसिएशन के अध्यक्ष हंसराज जैन, मंत्री कैलाश मुंगड़, उपाध्यक्ष रजनीश चौरडिय़ा, अरुण बाकलीवाल सहित अन्य पदाधिकारी भी लगातार इस मुहिम में जुटे हैं। इंदौर के अलावा देशभर के व्यापारी भी इसी तरह आंदोलनरत हैं। कुछ बड़े व्यापारिक समूहों और एसोसिएशन ने 28 दिसम्बर का भी वक्त केन्द्र सरकार को दिया था और जनप्रतिनिधियों के माध्यम से भी पक्ष रखा और जीएसटी दरें वापस लेने के लिए पत्र भी लिखे। मगर इन व्यापारिक संगठनों का भी कहना है कि अभी तक केन्द्र ने गंभीरता नहीं दिखाई है और जिस तरह किसान आंदोलन सालभर चला और केन्द्र को मजबूरी में तीनों कानून वापस लेना पड़े, उसी तर्ज पर अब रेडिमेड कपड़ा व्यवसायी और अन्य आंदोलन की रणनीति बनाएंगे।