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    ग्वालियर-चंबल में एससी वोटों का बंटवारा कर कांग्रेस को मात देने भाजपा की रणनीति

  • September 27, 2020

    भोपाल। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को ग्वालियर-चंबल अंचल से बड़ी मात मिली थी। 2013 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले में भाजपा को 13 सीटों का नुकसान हुआ था और कांग्रेस को 14 सीटों का लाभ हुआ था। नतीजों के आकलन से साफ हुआ कि भाजपा अनुसूचित जाति की वोटरों की नब्ज नहीं पकड़ पाई। लोकार्पण व भूमिपूजन कार्यक्रमों से फ्री होने के साथ भाजपा रणनीतिकारों का पूरा फोकस अब अनुसूचित वर्ग के वोटों पर है। भाजपा की पहली कोशिश है कि कैसे भी एट्रोसिटी एक्ट के कारण इस वर्ग की नाराजगी दूर कर पार्टी से जोड़ा जाए। दूसरी कोशिश है कि इस वर्ग के एक मुश्त वोट कांग्रेस में खाते जाने से रोका जाए। पहले बिंदु पर भाजपा लंबे समय से काम कर रही है। दूसरे बिंदु की सफलता के लिए भाजपा बसपा पर निर्भर है। अगर बसपा अंचल से जाति समीकरणों के आधार पर मजबूत प्रत्याशी उतारती है तो निश्चित ही इस वर्ग का वोट कांग्रेस और बसपा के बीच बंटने से भाजपा को लाभ होगा।

    मुकाबला त्रिकोणीय होने पर भाजपा फायदे में रहेगी
    दतिया जिले की भांडेर (अजा) सीट कांग्रेस ने पिछले चुनाव में भाजपा से छीनी थी। यहां फिर उपचुनाव है। कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बसपा से अंचल की राजनीति में पहचान बनाने वाले फूल सिंह बरैया को टिकट दिया है। फूल सिंह बरैया को टिकट दिए जाने से नाराज कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व गृहमंत्री महेंद्र सिंह बौद्ध ने बसपा की सदस्यता ग्रहण कर ली है। भांडेर से बसपा ने महेंद्र सिंह बौद्ध की उम्मीदवारी घोषित कर दी है, जिसके कारण अब मुकाबला अब त्रिकोणीय हो गया है। भाजपा का आकलन है अनुसूचित जाति का वोट कांग्रेस के खाते में जाने की बजाए बसपा के साथ बंट जाएगा। भाजपा का अनुमान है कि अनुसूचित जाति का जो वोट उसे मिलता है, वो तो उसके साथ ही रहेगा। इस त्रिकोणीय मुकाबले का लाभ भाजपा को मिलेगा।

    कांग्रेस के विश्वासघात से बसपा नाराज
    1998 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश में बसपा के 12 विधायक थे। इनमें से 6 ग्वालियर-चंबल अंचल के थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए बसपा प्रमुख काशीराम से समझौता किया कि जहां-जहां कांग्रेस मजबूत स्थिति में बसपा अपने उम्मीदवार नहीं उतारेगी। कांग्रेस सरकार बनने के बाद दिग्विजय सिंह ने पूर्ण बहुमत होने के बाद भी बसपा विधायकों को तोड़कर कांग्रेस में शामिल कर लिया। इस समझौते का खमियाजा बसपा को 2003 के विधानसभा चुनाव में उठाना पड़ा। उसके विधायकों की संख्या घटकर 6 रह गई। इसके बाद फूल सिंह बरैया, सत्यप्रकाशी परेसडिय़ा सहित अंचल के कई नेताओं को तोड़कर कांग्रेस में शामिल कर लिया। दुश्मन का दुश्मन दोस्त वाली तर्ज पर इस उपचुनाव में भाजपा व बसपा एक दूसरे के अघोषित दोस्त हो सकते हैं।

    इन सीटों पर भाजपा त्रिकोणीय मुकाबला चाहती है
    2018 के चुनाव में बसपा उम्मीदवारों को पौहरी विधानसभा क्षेत्र से 52726,जौरा 41014, अंबाह से 22179, करैरा से 40026, गोहद से 15477, डबरा 13155, दिमनी 14458, मुरैना से 21149, सुमावली 31331, मेहगांव से 7579 व ग्वालियर पूर्व से 5446 वोट मिले थे। भाजपा इन सीटों पर उपचुनाव में भी त्रिकोणीय मुकाबला चाहती है, क्योंकि 2018 विधानसभा चुनाव कांग्रेस के चुनाव चिन्ह पर लडऩे वाले अब भाजपा से उम्मीदवार हैं। भाजपा इनकी जीत सुनिश्चित करने के लिए इन विधानसभा क्षेत्रों में त्रिकोणीय मुकाबला की योजना बना रही है।

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