भाजपा की राजनीति की नई रेखा लगभग तय हो गई है… दिल्ली में भी पहली बार की विधायक रेखा गुप्ता की ताजपोशी के साथ ही तय हो गया कि भाजपा चार राज्यों में अपनाई परिपाटी को ही यथावत रखेगी… बड़े-बड़े नेता कतार में खड़े रहेंगे और नए-नवेले आगे बढ़ेंगे… पार्टी मेें न वरिष्ठता का पैमाना रहेगा और न ही कद या अनुभव का महत्व नजर आएगा… जिसका नाम चलाया जाएगा… जिसे वरिष्ठ माना जाएगा उसे पीछे कर दिया जाएगा… चौंकाने वाली इस परिपाटी को यथावत रखते हुए भाजपा ने मध्यप्रदेश में डॉ. मोहन यादव को परखा तो राजस्थान में पहली बार के विधायक भजनलाल शर्मा को… छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय सरकार में दिग्गजों को पछाडक़र मुख्यमंत्री बनाए गए तो अब दिल्ली में प्रवेश वर्मा सहित कई बड़े-बड़ों के मुंह लटकाए गए… भाजपा ने अपनी यह नीति इस विश्वास के साथ बनाई है कि चुनाव में किसी नेता का चेहरा नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा जीत दिला रहा है… इसीलिए केंद्र के साथ ही हर राज्य में मोदी का ही नियंत्रण होना चाहिए और यह नियंत्रण केवल नए-नवेले नेताओं के साथ ही कामयाब हो सकता है…इस मामले में भी पार्टी गंभीरता से काम ले रही है…नए नेताओं को मुख्यमंत्री बनाकर उन पर ही सफलता या असफलता का बोझ नहीं लाद रही है, बल्कि सरकार की सफलता की जिम्मेदारी भी उठा रही है… हर राज्य की सरकार में केंद्र से सक्षम अधिकारी प्रमुख के रूप में भेजे जा रहे हैं जो अन्य राज्यों के प्रमुखों के साथ मिलकर एकजुट नीति तय करेंगे और अपने-अपने राज्यों की अनुकूलता और व्यावहारिकता परखकर उन्हें लागू करेंगे… जिन राज्यों में सक्षम मुख्यमंत्री हैं उनके नवाचारों को भी लागू करने की योजना बनाई गई है…इसी के चलते मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की लाड़ली बहना ने महाराष्ट्र में लाडक़ी बहना बनकर विजय दिलाई… उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी द्वारा कानून-व्यवस्था पर लगाई गई लगाम अन्य राज्यों में नजर आई तो असम के मुख्यमंत्री बिस्वा का देश में पहली बार लागू किया गया समान नागरिक संहिता कानून पूरे देश के भाजपा शासित राज्यों के लिए सोच का विषय बन गया है…दरअसल भाजपा अब पार्टी के पारंपरिक संचालन से हटकर कॉर्पोरेट तर्ज पर संचालन के दौर में जा चुकी है, जहां नए-नवेलों को भी बड़ा पद मिलने की संभावनाओं के चलते छोटे से छोटे नेताओं में उस पद तक पहुंचने का जहां समर्पण भाव नजर आएगा, वहीं दिग्गजों का अहंकार भी मुखर नहीं हो पाएगा… लेकिन पार्टी को इस सोच के दीर्घकालिक परिणामों पर भी गंभीरता से सोचना होगा… जिन्हें नेतृत्व सौंपा जा रहा है उनमें लोकप्रियता हासिल करने की क्षमता होना चाहिए, वरना पार्टी में नेता तो रह जाएंगे, लेकिन लोकप्रियता नहीं रहने से भविष्य की बुनियाद नहीं बन पाएंगे…
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