दमोहः दमोह उपचुनाव के नतीजों की घोषणा हो चुकी है, जिसमें कांग्रेस के अजय टंडन ने बाजी मार ली है. वहीं बीजेपी के लिए यह हार बड़ा झटका साबित हुई है. दरअसल भाजपा ने इस उपचुनाव में जीत के लिए पूरा जोर लगाया था लेकिन इसके बावजूद अजय टंडन की जीत बीजेपी के लिए हैरानी भरी है. हार के बाद भाजपा विश्लेषण में जुटी है और इस विश्लेषण में हार का जो प्रमुख कारण निकल रहा है, वो ये है कि पार्टी ग्रामीण मतदाताओं का मूड भांपने में असफल रही. शहरी मतदाताओं में तो पहले ही दलबदल के खिलाफ गुस्सा था.
गांवों का रुख भांपने में हुई गलती
बीजेपी जब प्रचार में जुटी थी, तभी उसे अहसास हो गया था कि शहरी मतदाता दल-बदल से नाराज हैं. बता दें कि राहुल लोधी 2018 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के टिकट पर जीते थे. लेकिन बाद में वह पार्टी बदलकर भाजपा में चले गए थे. चुनाव के सिर्फ एक साल के समय में विधायक के पार्टी बदलने से शहरी मतदाताओं में नाराजगी थी.
शहरी मतदाताओं की नाराजगी बीजेपी ने भांप भी ली थी और यही वजह रही कि पार्टी ने गांवों पर फोकस किया था. लेकिन यहां भी पार्टी मतदाताओं का रुख पूरी तरह से भांपने में असफल रही. कोरोना महामारी ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई. दरअसल दमोह में भी लोग चाहते थे कि कोरोना महामारी के प्रकोप के चलते वहां भी लॉकडाउन या सख्ती हो लेकिन चुनाव के चलते वहां सरकार ने सख्ती नहीं की. इससे लोगों में नाराजगी थी. एक तरफ जहां ऑक्सीजन, बेड, दवाईयों के लिए मारामारी हो रही थी, वहीं ऐसे वक्त में सत्ताधारी पार्टी का चुनाव पर फोकस करना लोगों को शायद पसंद नहीं आया.
बाहरी नेताओं के जमावड़े ने भी बीजेपी को पहुंचाया नुकसान
दमोह उपचुनाव में जीत के लिए भाजपा ने पूरा जोर लगाया. इस दौरान कई बाहरी नेताओं ने चुनाव की जिम्मेदारी उठाई. लेकिन नतीजे देखकर लग रहा है कि भाजपा को इसका नुकसान उठाना पड़ा. दरअसल स्थानीय भाजपा नेताओं को जमीन पर उतरकर काम करने का उतना मौका नहीं मिला. इसका भी भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा.
राहुल लोधी ने अपनी हार के लिए भितरघात को जिम्मेदार ठहराया है. पार्टी ने जिस तरह से वरिष्ठ नेता जयंत मलैया की जगह राहुल लोधी को अपना उम्मीदवार बनाया, उससे यकीनन मलैया समर्थकों को निराशा हुई और ऐसे में पार्टी भितरघात से इंकार भी नहीं किया जा सकता है.
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