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    कांग्रेस के गढ़ पर भाजपा की नजर

  • September 17, 2023

    • इन सीटों को फतह करने भाजपा ने बनाई अलग रणनीति

    भोपाल। विधानसभा चुनाव में मिशन 200 में जुटी भाजपा की नजर कांग्रेस के नौ गढ़ पर है। भाजपा की रणनीतिक के अनुसार इन सीटों पर कांग्रेस मजबूत स्थिति में है। इसलिए इन सीटों पर किला फतह करने के लिए भाजपा ने नई रणनीति बनाई है। भाजपा के रणनीतिकारों का मानना इन सीटों के जीत के लिए कांग्रेस पूरी तरह आश्वस्त है। इसलिए इन क्षेत्रों पर कांग्रेस का फोकस कम है। ऐसे में अगर दम लगाया जाए तो यहां कांग्रेस का गणित गड़बड़ा सकता है।
    गौरतलब है कि भाजपा ने करीब साल भर पहले से ही 103 विधानसभा सीटों को आकांक्षी मानकर उनको जीतने की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। इनमें से कुछ ऐसी सीटें हैं जो लंबे समय से कांग्रेस के पास हैं। इनमें भाजपा की मालवा-निमाड़ क्षेत्र की शाजापुर, महेश्वर, राजपुर, भीकनगांव, सोनकच्छ, गंधवानी, कुक्षी, धरमपुरी और कसरावद शामिल है। यहां से कांग्रेस के दिग्गज नेता चुने जाते थे। वर्तमान में उनके परिजन ही विधायक हैं। कांग्रेस की ऐसी सीटों पर भाजपा की इस बार अलग रणनीति है। इन सीटों पर विधानसभा चुनाव लडऩे वाले नेताओं को उन्हीं के चुनाव क्षेत्र में घेरा जाएगा। पार्टी ने मालवा-निमाड़ क्षेत्र में आधा दर्जन से ज्यादा सीटों को चिह्नित किया है। जल्द इन सीटों पर प्रत्याशियों का ऐलान भी कर दिया जाएगा। साथ ही चुनाव की कमान बड़े नेता को सौंपी जा सकती है।

    भाजपा ने बनाई विशेष रणनीति
    भाजपा की रणनीति है कि कांग्रेस को इस चुनाव में अधिक से अधिक क्षति पहुंचाने के लिए दिग्गज नेताओं को उनके ही गढ़ में घेरने की तैयारी की गई है। दरअसल, भाजपा की मालवा-निमाड़ क्षेत्र की आकांक्षी सीटों में शाजापुर, महेश्वर, राजपुर, भीकनगांव, सोनकच्छ, गंधवानी, कुक्षी, धरमपुरी और कसरावद ये सीटें कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे सुभाष यादव, जमुना देवी, सीताराव साधी के चुनाव क्षेत्र की वजह से प्रदेश में चर्चित हैं। मप्र की स्थापना के बाद दूसरे विधानसभा चुनाव 1962 से ही मालवा-निमाड़ भाजपा (पहले जनसंघ, जनता पार्टी) का गढ़ रहा है। राज्य में जब- जब भाजपा की सरकारें बनी हैं, मालवा-निमाड़ में भाजपा को बंपर जीत मिली है। जब राज्य में गैर भाजपाई सरकारें रहीं, तब इस क्षेत्र में भाजपा की सीटें कम हुई, लेकिन पकड़ बरकरार रही है। मौजूदा स्थिति में भी भाजपा का पलड़ा भारी है, लेकिन कुछ सीटें ऐसी हैं। जो अभी भी कांग्रेस का गढ़ मानी जाती है। इन सीटों में मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री सुभाष यादव की सीट खरगोन जिले की कसरावद भी शामिल है। कसरावद से फिलहाल सुभाष यादव के बेटे सचिन यादव कांग्रेस से विधायक हैं। इसी तरह धार जिले की कुक्षी विधानसभा सीट को कभी राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री एवं पूर्व नेता प्रतिपक्ष जमुना देवी की वजह से जाना जाता था। इस सीट से वर्तमान में सुरेन्द्र सिंह हनी विधायक हैं। हनी के पिता प्रताप सिंह बघेल भी मप्र सरकार में मंत्री रहे हैं।

    घर में ही घेरने की तैयारी
    जानकारी के अनुसार भाजपा ने मालवा-निमाड़ की जिन नौ सीटों को चिन्हित किया है, वहां के प्रत्याशियों को उनके घर में ही घेरने की तैयारी की गई है। प्रदेश के पूर्व गृहमंत्री बाला बच्चन मप्र कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष है। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के करीबी है। बड़वानी जिले का राजपुर विधानसभा क्षेत्र भी लंबे समय तक कांग्रेस के पास रहा है। यहां से बाला बच्चन 1993 में पहली बार विधायक बने। फिर 1998 में भी जीते। मंत्री रहे। यहीं से वर्ष 2013 से लगातार विधायक हैं। बच्चन फिर से चुनाव मैदान में है। सोनकच्छ से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा यहां से विधायक हैं। फिर से कांग्रेस से टिकट के दावेदार है। यहां से सज्जन सिंह वर्मा के खिलाफ कांग्रेसी पूर्व में विरोध प्रदर्शन कर चुके है। वर्मा इन दिनों सरकार पर लगातार हमलावर बने हैं। वर्मा पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के करीबी है। नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह ने जब कमलनाथ के भावी मुख्यमंत्री पर सवाल उठाए थे, तब उन्होंने सज्जन सिंह वर्मा ने ही गोविंद सिंह को जवाब दिया था। खरगोन जिले की कसरावद को अभी भी पूर्व मुख्यमंत्री एवं सहकारिता नेता सुभाष यादव के नाम से पहचाना जाता है।



    कसरावद से वर्तमान में उनके बेटे सचिन यादव विधायक हैं कमलनाथ सरकार में मंत्री रहे है। सचिन इस बार फिर कसरावद से टिकट के दावेदार शाजापुर से 1990 कांग्रेस विधायक हुकुम सिंह कराड़ा जीतते आ रहे हैं। सिर्फ 2013 के चुनाव में वे भाजपा के अरुण भिमावत से दो हजार से कम वोटों से चुनाव हारे थे, लेकिन 2018 में फिर कराड़ा जीत गए। शाजापुर सीट गुर्जर बाहुल्य मानी जाती है। कराड़ा की जीत की एक प्रमुख वजह यह भी है। देवी अहिल्या की नगरी महेश्वर भी भाजपा के लिए चुनौती से कम नहीं है। यहाँ कांग्रेस नेता डॉ. विजयलक्ष्मी साधी 1985 में विधायक चुनी गई थी। उसके बाद से एक-दो मौकों को छोड़कर यह सीट भी कांग्रेस के पास ही रही है। खरगोन जिले की भीकनगांव विधानसभा सीट भी 2013 से कांग्रेस के पास है। झूमा ध्यानसिंह सोलंकी बीते दो चुनावों में यहां से जीत दर्ज कर रही है। 2023 के चुनाव में भी फिर दावेदार हैं। वहीं धार जिले की तीन सीटें ऐसी हैं जो कांग्रेस का गढ़ बनी हुई हैं।

    2008 में धार जिले के गंधवानी को विधानसभा क्षेत्र बनाया गया था।
    तब से लेकर अब तक यहां कांग्रेस के उमंग सिधार ही चुनाव जीतते आ रहे हैं। सिंधार यहां से फिर से कांग्रेस के दावेदार है। हालांकि उनके खिलाफ पुलिस में आपराधिक प्रकरण दर्ज है। चुनाव में सिधार की घेराबंदी के लिए भी भाजपा ने जमावट कर रखी है। प्रदेश के धार जिले की कुक्षी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के सुरेंद्र सिंह हनी बघेल बीते दो चुनाव से जीत हासिल कर रहे हैं। पहले उनके पिता पूर्व मंत्री प्रताप सिंह बघेल लंबे समय तक यहां से जुड़े रहे। हालांकि सुरेन्द्र के पिता प्रताप सिंह बघेल भाजपा में भी रहे हैं। धार जिले के ही धरमपुरी से पांचीलाल मेढ़ा दूसरी बार विधायक हैं। ये सीट पहले भाजपा के पास थी, लेकिन फिर हाथ से फिसल गई। अब भाजपा रणनीति बनाकर इन सभी सीटों को जीतने की कोशिश में लगी हुई है।

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