भोपाल। मध्यप्रदेश में 2023 विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी गई है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टी अपने-अपने स्तर पर जीत के दावे कर रही है। इसी बीच भाजपा ने 2018 के चुनाव में हारी हुई 121 सीटों को लेकर एक्शन प्लान तैयार किया है। मिशन 2023 को लेकर नए साल में नया प्लान बनाया गया है। जिससे उन सीटों पर जीत मिल सके। चुनाव से 6 महीने पहले 121 सीटों पर भाजपा की चुनावी कैंपेनिंग शुरू होगी। इन सीटों माइक्रो लेबल मैनेजमेंट शुरू हो जाएगा। ऐसे सीटों पर समन्वयक को अधिक प्राथमिकता दी जाएगी। हारी सीटों के बूथों पर युवाओं को भी प्राथमिकता दी जाएगी। बता दें कि मौजूदा स्थिति में 230 विधानसभा सीटों में से अभी भारतीय जनता पार्टी के पास 127 विधायक है। कांग्रेस के पास 96 सीट, निर्दलीय 4, बहुजन समाज पार्टी 2 और समाजवादी पार्टी के पास 1 सीट है। इस तरह चार पार्टी और निर्दलीय में सीट बटी हुई है। अब आगामी 2023 विधानसभा चुनाव में किस पार्टी को कितना सीट मिलेगा यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
बूथ स्तर पर चलेगा संपर्क अभियान
पार्टी सूत्रों के अनुसार भाजपा ने हारी सीटों को लेकर माइक्रो लेवल पर काम करना तय किया है। इसके तहत इन सीटों पर अब प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा का फोकस होगा। इसके अलावा प्रदेश अध्यक्ष भी इन सीटों पर निचले स्तर तक नेटवर्क को मजबूत करने के लिए एक-एक कर जिलावार दौरा करेंगे। इसके लिए नए साल में ताबड़-तोड़ दौरे होंगे। भाजपा ने चुनाव की व्यूह रचना में वोट बैंक और एरिया आधारित लक्ष्य तय किया है। हारी 103 सीटों को लेकर विशेष तौर पर काम होगा। ये वे सीटें हैं, जिन्हें भाजपा 2023 में फतह करने का लक्ष्य लेकर चलेगी। इसमें टिकट, भितरघात या कम वोट से हारने वाली सीटों को लेकर ज्यादा ध्यान दिया जाएगा। मुरलीधर राव खुद एक-एक कर इन सभी सीटों पर जाएंगे। वीडी शर्मा अलग से इन सीटों को लेकर बूथ स्तर का संपर्क अभियान चलाएंगे। 6 माह के भीतर सीटें कवर कर ली जाएंगी। बाद में नेताओं के चुनावी कैम्पेन शुरू होंगे। वहीं जिन सीटों पर पिछली बार भाजपा चुनाव हार गई थी।
इस बार वहां पर समन्वय को ज्यादा प्राथमिकता दी जानी है। साथ ही भाजपा ने हारी सीटों पर बूथ स्तर पर युवाओं को प्राथमिकता से जोडऩा शुरू किया है। हर बूथ पर दो युवा जोड़े जाने हैं। उधर, कांग्रेस की चुनौती कमजोर सीटों पर अधिक है। वर्ष 2018 के चुनाव- में कांग्रेस को 114 सीटें मिली थीं। उपचुनाव के बाद कांग्रेस की सीटें सिमटकर 96 हो गई। ऐसे में कांग्रेस की बड़ी चुनौती हारी हुई सीटों पर अधिक है। यहां जिताऊ उम्मीदवारों की तलाश है। सर्वे का सहारा लिया जा रहा है। दूसरी ओर 50 से अधिक सीटें ऐसी हैं, जहां कांग्रेस इन्हें पूरी तरह से सुरक्षित मान रही है। इनमें से 40 सीटों पर तो मौजूदा विधायकों से कहा दिया गया है कि वे वहां मैदान संभाल लें। शेष के मामले में निर्णय लेना है।
कार्यकर्ता दिखाएंगे सक्रियता
भाजपा ने 121 सीटों को मजबूत करने की रणनीति बनाई है। इसके लिए वरिष्ठ नेता, पूर्व जिला अध्यक्ष, क्षेत्र में प्रभाव रखने वाले नेता, पूर्व संगठन मंत्रियों और विधायकों को एक-एक सीट की जिम्मेदारी सौंपी है। इनका काम कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करना और संगठन से दूर हुए कार्यकर्ताओं को एक्टिव करना है। हारी सीटों को भाजपा ने आकांक्षी नाम दिया है। इनको मजबूत करने के लिए प्रभारियों को जिम्मेदारी सौंपी गई है। बीजेपी ने छह पूर्व संगठन मंत्री शैलेंद्र बरुआ, आशुतोष तिवारी, जितेंद्र लिटोरिया, केशव सिंह भदौरिया, पूर्व प्रदेश पदाधिकारी विनोद गोटिया और विधायक राजेंद्र शुक्ला को शामिल किया है। कांग्रेस से भाजपा में आए विधायकों की सीटों पर भी नाराज कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों को मनाया जाएगा। पार्टी ने प्रभारियों को हर बूथ पर 10 प्रतिशत वोट बढ़ाने को लेकर रणनीति बनाने को कहा है। साथ ही सुझाव भी मांगे हैं। प्रदेश की 230 सीटों वाली मध्य प्रदेश विधानसभा में भाजपा के पास 127, कांग्रेस के पास 96 और अन्य के पास 7 सीटें है। भाजपा ने हारी 103 सीटों पर चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। भाजपा कांग्रेस विधायकों की सीटों पर अभी से जनता की नाराजगी का फायदा उठाने में जुट गई है।
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