नागदा (प्रफुल्ल शुक्ला)। एक समय भाजपा की गढ़ कही जाने वाली नागदा-खाचरौद विधानसभा कांग्रेस के दिलीप सिंह गुर्जर का गढ़ बन चुकी है। वह भी इस स्थिति में तब जब श्री गुर्जर के पास इतने कार्यकाल बाद भी बताने लायक कोई बड़ी उपलब्धी नहीं है। भाजपा प्रत्याशी यहाँ चुनाव कांग्रेसी प्रत्याशी के साथ-साथ भाजपा के अघोषित प्रत्याशियों से भी लड़ता आया है। कहते हैं इतिहास इसीलिए होता है ताकि उससे सबक लिया जाए और वही गलती दोबारा ना हो। परंतु यहाँ तो चुनाव के लगभग एक वर्ष पूर्व ही आम जनता को भाजपा की आपसी जंग फेसबुक पर देखने को मिल रही है।
वरिष्ठ बनाम युवा
सोशल मीडिया पर युवा बनाम वरिष्ठ के आधार पर कई नए दावेदार अपने आपको मतदाताओं के बीच स्थापित करने के लिए पूरे विधानसभा क्षेत्र में दौड़ लगा रहे है। शादी, मौत, उठावना, पगड़ी किसी प्रकार का आयोजन हो, कोई मौका खुद को प्रमोट करने का नहीं छोड़ रहे। युवाओं की दौड़ से घबराए वरिष्ठ दावेदार जिन्हें गुजरात प्रभारी बनाया गया खुद के नहीं आने की स्थिति में अपने परिवार को स्थानीय कार्यक्रमों में झौंक दिया। जनता के बीच सभी दावेदारों के जाने से भाजपा को फायदा मिलता तब जब वे सरकार की उपलब्धियाँ बताते।
सोशल मीडिया बनी जंग का मैदान
विधानसभा क्षेत्र के विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लेने के बाद फेसबुक पर पोस्टों की भरमार हो जाती है। यही पोस्टें अन्य नेताओं के समर्थकों को रास नहीं आ रही, क्योंकि पिछले चार वर्षों से घर बैठे नेता चुनावी साल आते ही सक्रियता दिखाने में जुट गए। इन पोस्टों पर टिकाटिप्पणी भाजपा समर्थकों में आपसी विवाद पैदा कर रही है।
एक अनार सौ बीमार
विधानसभा कि एक उम्मीदवारी के लिए एक दर्जन के लगभग दावेदार अभी से न केवल सक्रिय हो गए बल्कि खुलेआम दावा भी ठोंक रहे है कि अगला उम्मीदवार वही होगा। दावा तो यहाँ तक किया जा रहा है कि दिल्ली, भोपाल के वरिष्ठ नेताओं ने हरी झंडी दे दी है कहा है जाकर तैयारी करो मैदान सम्भालो।
2023 का परिणाम तय
हालात बता रहे है कि नवम्बर 2023 के होने वाले चुनावों में नागदा-खाचरौद विधानसभा एक बार फिर बिना मेहनत, बिना किसी उपलब्धि के घर बैठे कांग्रेस के तय प्रत्याशी दिलीप सिंह गुर्जर के कब्जे में होगी और भाजपा प्रत्याशी अपनों को मनाने या अपनों से लडऩे में ही रह जाएगा।
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