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    पंजाब में BJP लागू करेगी ‘गुजरात मॉडल’, PM मोदी के करीबी की एंट्री

  • September 18, 2022

    नई दिल्ली। लंबे समय से गठबंधन राजनीति के चलते पंजाब (Punjab) में कमजोर पड़ी भाजपा (BJP) को अब मजबूत करने की कवायद शुरू हो गई है। सीमावर्ती राज्य होने से पंजाब कूटनीतिक, सामरिक और राजनीतिक तीनों दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। पूरे उत्तर भारत में पंजाब ही ऐसा राज्य है जो भाजपा की पहुंच से काफी दूर दिख रहा है, ऐसे में वह राज्य में अपनी जमीन तैयार करने और उसके बाद चुनाव अभियान की रणनीति पर काम करेगी। भाजपा नेतृत्व ने अपने इस अभियान की कमान गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री (Former Chief Minister of Gujarat) और राज्य के नए प्रभारी (New in-charge) विजय रूपाणी (Vijay Rupani) को सौंपी है।


    मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में उत्तर भारत में पंजाब ही भाजपा की सबसे कमजोर कड़ी है। लंबे समय तक राज्य में अकाली दल के साथ गठबंधन में रहने के कारण भाजपा यहां पर पूरे राज्य में कभी ठीक तरह से काम नहीं कर पाई है। गठबंधन में वह विधानसभा की लगभग दो दर्जन और लोकसभा की एक चौथाई सीटों तक ही सिमटी रही। लेकिन अब अकाली दल के साथ गठबंधन टूटने के बाद पार्टी अपने विस्तार की योजना पर काम कर रही है। पंजाब में भाजपा और शिरोमणि अकाली दल के बीच 1997 में पहली बार गठबंधन हुआ था जो बीते विधानसभा चुनाव में टूट गया। 1997 में ही पहली बार भाजपा ने अकाली दल के साथ गठबंधन सरकार बनाई थी।

    विधानसभा चुनाव में 2007 में बड़ी सफलता
    भाजपा ने गठबंधन में रहते हुए विधानसभा की 23 (कुल 117) और लोकसभा की तीन सीटों (कुल 13) पर चुनाव लड़ा। भाजपा को विधानसभा में सबसे बड़ी सफलता 2007 के चुनाव में मिली, जब पार्टी ने 23 में से 19 सीटें जीतीं। इसके पहले 1997 में उसने 23 में से 18 सीटें जीती थी। लोकसभा चुनावों में भाजपा ने दो बार गठबंधन में अपने हिस्से की तीनों सीटें जीतने में सफलता हासिल की। 1998 और 2004 में उसने अपने हिस्से की अमृतसर, गुरुदासपुर और होशियारपुर सीटें जीतीं।

    सिद्धू के साथ मिला था सिख चेहरा
    पंजाब में भाजपा के जनसंघ के जमाने के नेता बल्देब प्रकाश सबसे बड़े नेता रहे। बाद में बलराम दास टंडन और मनोरंजन कालिया सक्रिय रहे। नवजोत सिंह सिद्धू के आने के बाद भाजपा को पहला चर्चित सिख चेहरा मिला था।

    शहरी क्षेत्रों और हिंदू आबादी में आधार
    भाजपा राज्य में शहरी क्षेत्रों में जहां हिंदू मतदाता ज्यादा हैं, वहां पर सक्रिय रही। उसे जो सफलता मिली वह शहरी क्षेत्रों में मिलती रही थी। जालंधर और अमृतसर में पार्टी को ज्यादा सफलता मिली। बाद में अकाली दल के साथ आने पर भी वह हिंदू और सिख मतदाताओं तथा शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्र के आधार पर समझौता करती रही।

    अकाली दल को सत्ता और भाजपा को मिला सहयोगी
    भाजपा की अकाली गठबंधन से शहरी और ग्रामीण मतदाताओं को एक साथ लाने तथा सिख एवं हिंदू मतदाताओं को जोड़ने की रणनीति रही थी। हालांकि, बदलाव की लहर में पलड़ा कांग्रेस की तरफ चला जाता था। अकाली दल को इस गठबंधन का सबसे ज्यादा लाभ मिला। क्योंकि अकाली दल को सिखों के बाहर हिंदू मतदाताओं का समर्थन मिलने में दिक्कत आती थी। भाजपा के साथ आने से उसे ज्यादा लाभ मिला। खासकर, ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद की स्थितियों में। भाजपा को उस समय नए सहयोगियों की तलाश थी।

    बीते चुनाव में बदली स्थिति
    पंजाब में पिछले विधानसभा चुनाव में जब भाजपा अपने दम पर चुनाव मैदान में उतरी तो उसे महज 2 सीटें और 6.6 फीसद वोट ही मिले, जबकि आम आदमी पार्टी राज्य की 117 में से 92 सीटें (42 फीसद वोट) जीतने में सफल रही। कांग्रेस को 18 सीट ( 22.98 फीसद वोट) और अकाली दल को तीन सीट (18. 38 फीसद वोट) सीटें मिली। बसपा के खाते में एक और एक सीट निर्दलीय के हिस्से आई।

    बदल रहे समीकरण
    इसके पहले लोकसभा चुनाव में जब भाजपा और अकाली दल का गठबंधन था तब राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस ने 13 में से आठ सीटें (40.12 फीसद वोट) जीती थी, जबकि भाजपा और अकाली दल के गठबंधन को चार सीटें (दोनों को दो-दो) मिली थी। अकाली दल को 27.76 फीसद वोट और भाजपा को 9.63 फीसद वोट मिले थे, जबकि आम आदमी पार्टी को मात्र एक सीट यानी 7.38 फीसद वोट मिले थे। लोकसभा, विधानसभा चुनाव के बीच राज्य के समीकरण पूरी तरह बदल गए थे। किसान आंदोलन और कैप्टन अमरिंदर सिंह का कांग्रेस से बाहर जाना काफी महत्वपूर्ण पहलू रहे थे। इसके साथ ही भाजपा और अकाली दल का गठबंधन भी टूट गया था।

    अब जबकि राज्य में आम आदमी पार्टी की सरकार बन गई है, तब केंद्र सरकार की चिंताएं बढ़ी हैं। एक तो सीमावर्ती राज्य और दूसरे खालिस्तानी अभियान को लेकर मिल रहे खुफिया इनपुट काफी महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं। इसके अलावा राजनीतिक रूप से भी भाजपा के लिए पंजाब बड़ी चुनौती है।

    पंजाब में लागू होगा गुजरात मॉडल
    रूपाणी पंजाब के इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि मोदी और शाह की रणनीति को समझते हैं। गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी ने गुजरात में संगठन में काम करते हुए पार्टी संगठन को खड़ा किया था। उस समय उन्होंने चार महत्वपूर्ण सूत्र दिए थे। इनमें पग में चक्कर यानी लगातार सक्रिय रहो, बेकार मत बैठो। जीभ में शक्कर यानी अच्छी बातें करो, कड़वी बात नहीं करो। सर पर बर्फ यानी ठंडे दिमाग से काम करो और दिल में हाम यानी हिम्मत से आगे बढ़ो। अब पार्टी इन्हीं सूत्रों को पंजाब में लागू करेगी।

    मोदी-शाह के साथ काम कर चुके हैं रुपाणी
    गुजरात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की प्रयोगशाला रही है और सफल रणनीति से वहां पर 27 साल से लगातार सत्ता में भी है। रूपाणी ने भी राज्य में मोदी और शाह के साथ काम किया है। वह संगठन से लेकर सरकार तक की सभी भूमिकाओं से परिचित हैं। बूथ से लेकर पन्ना प्रमुख तक के प्रयोग गुजरात से शुरू हुए हैं। ऐसे में पंजाब में लोगों को भाजपा के साथ जोड़ने की रणनीति पर रुपाणी को काम करना होगा। खासकर, पंजाब के गांव में भाजपा को हर बूथ पर अपनी टीम बनानी होगी।

    सिख नेता आ रहे आगे
    भाजपा के एक प्रमुख नेता ने कहा कि पंजाब में भावी गठबंधन से भाजपा को परहेज नहीं है, लेकिन अब जो गठबंधन होगा वह अलग तरह का होगा। भाजपा भविष्य में सिर्फ छोटे भाई की भूमिका के लिए तैयार नहीं रहेगी। वह अपना विस्तार करेगी और राज्य में अपनी ताकत को मजबूत करेगी। बता दें कि भाजपा ने हाल में अपने केंद्रीय संसदीय बोर्ड में पहली बार सिख नेता को जगह दी है। सरदार इकबाल सिंह लालपुरा बोर्ड में जगह पाने में सफल रहे हैं। इसके जरिए भाजपा ने सिख समुदाय को बड़ा संदेश दिया है। केंद्र में भी अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में एकमात्र मंत्री हरदीप सिंह पुरी हैं जो सिख हैं।

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