नई दिल्ली । केंद्र की नरेंद्र मोदी कैबिनेट(narendra modi cabinet) ने बुधवार को वन नेशन वन इलेक्शन (one nation one election)के प्रस्ताव को मंजूरी (approve the proposal)दे दी। इसके साथ ही इसे लेकर वार-पलटवार(attack and counter attack) का दौर शुरू हो गया है। लोकसभा में भाजपा के बाद सबसे बड़ी दो पार्टियों कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने इसे लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने तो इस फैसले को लेकर केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। अखिलेश ने पूछा कि किसी राज्य में भाजपा चयनित सरकार गिराती है तो उसके साथ पूरे देश में चुनाव कराए जाएंगे। यह भी पूछा कि वन नेशन वन इलेक्शन लागू होने के बाद पंचायत से लेकर लोकसभा तक के सभी चुनाव एक साथ होंगे या सरकार त्योहार और मौसम के बहाने अपनी हार-जीत के आधार पर सुविधानुसार व्यवस्था करेगी।
महाराष्ट्र-झारखंड का चुनाव साथ में क्यों नही करा रही भाजपा
अखिलेश का इशारा इस बार हरियाणा और कश्मीर का चुनाव साथ कराने और महाराष्ट्र-झारखंड का नहीं कराने को लेकर था। अखिलेश ने यह भी कहा कि भाजपा अपनी पार्टी का चुनाव तो पहले एक साथ करके दिखाए। अखिलेश ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर कहा कि लगे हाथ महाराष्ट्र, झारखंड व यूपी के उपचुनाव भी घोषित करवा देते। इसके साथ ही सात सवाल भी उठाए।
लगे हाथ महाराष्ट्र, झारखंड व यूपी के उपचुनाव भी घोषित करवा देते।
– अगर ‘वन नेशन, वन नेशन’ सिद्धांत के रूप में है तो कृपया स्पष्ट किया जाए कि प्रधान से लेकर प्रधानमंत्री तक के सभी ग्राम, टाउन, नगर निकायों के चुनाव भी साथ ही होंगे या फिर त्योहारों और मौसम के बहाने सरकार की… pic.twitter.com/AfIfhhlVWS
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) September 18, 2024
अखिलेश ने यह सवाल पूछे…
1-अगर ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ सिद्धांत के रूप में है तो कृपया स्पष्ट किया जाए कि प्रधान से लेकर प्रधानमंत्री तक के सभी ग्राम, टाउन, नगर निकायों के चुनाव भी साथ ही होंगे या फिर त्योहारों और मौसम के बहाने सरकार की हार-जीत की व्यवस्था बनाने के लिए अपनी सुविधानुसार?
2-भाजपा जब बीच में किसी राज्य की चयनित सरकार गिरवाएगी तो क्या पूरे देश के चुनाव फिर से होंगे?
3-किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने पर क्या जनता की चुनी सरकार को वापस आने के लिए अगले आम चुनावों तक का इंतज़ार करना पड़ेगा या फिर पूरे देश में फिर से चुनाव होगा?
4-इसको लागू करने के लिए जो सांविधानिक संशोधन करने होंगे उनकी कोई समय सीमा निर्धारित की गयी है या ये भी महिला आरक्षण की तरह भविष्य के ठंडे बस्ते में डालने के लिए उछाला गया एक जुमला भर है?
5-कहीं ये योजना चुनावों का निजीकरण करके परिणाम बदलने की तो नहीं है? ऐसी आशंका इसलिए जन्म ले रही है क्योंकि कल को सरकार ये कहेगी कि इतने बड़े स्तर पर चुनाव कराने के लिए उसके पास मानवीय व अन्य ज़रूरी संसाधन ही नहीं हैं, इसीलिए हम चुनाव कराने का काम भी (अपने लोगों को) ठेके पर दे रहे हैं।
6-जनता का सुझाव है कि भाजपा सबसे पहले अपनी पार्टी के अंदर ज़िले-नगर, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह के चुनावों को एक साथ करके दिखाए फिर पूरे देश की बात करे।
7-चलते-चलते जनता यह भी पूछ रही है कि आपके अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव अब तक क्यों नहीं हो पा रहा है, जबकि सुना तो ये है कि वहाँ तो ‘वन पर्सन, वन ओपिनियन’ ही चलती है। कहीं कमज़ोर हो चुकी भाजपा में अब ‘टू पर्सन्स, टू ओपिनियन्स’ का झगड़ा तो नहीं है।
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