नई दिल्ली । दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) के जज यशवंत वर्मा (Judge Yashwant Verma) के सरकारी आवास से बड़ी तादाद में नकदी (cash) मिलने के बाद सियासी हलचल तेज हो गई है। जहां भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने इस मामले पर टिप्पणी करने से परहेज किया है, वहीं कांग्रेस (Congress) ने इसे महज तबादले से दबाने की कोशिश बताया है। वहीं इलाहाबाद बार एसोशिएशन के वकीलों ने भी इस मामले को लेकर बवाल मचाया है।
इस मामले को लेकर भाजपा ने कहा कि सीजेआई पहले ही इस पर संज्ञान ले चुके हैं, इसलिए पार्टी अदालतों के मामलों पर टिप्पणी नहीं करेगी। भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने मीडिया रिपोर्टों का हवाला देते हुए कहा, “भारत के प्रधान न्यायाधीश ने इस मामले पर फैसला लिया है।” वहीं, भाजपा आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने इशारों-इशारों में जस्टिस वर्मा पर निशाना साधते हुए कहा कि उन्होंने झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के खिलाफ सीबीआई जांच रोक दी थी, जो विपक्षी इंडिया गठबंधन के अहम नेता हैं।
क्या बोली कांग्रेस
सूत्रों के मुताबिक, जस्टिस वर्मा के आवास में भीषण आग लगने के बाद जब राहत और बचाव कार्य हुआ तब वहां से भारी मात्रा में नकद बरामद किया गया। इस खुलासे के बाद सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद हाई कोर्ट स्थानांतरित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। हालांकि, कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने इसे नाकाफी बताते हुए सवाल उठाया कि इतनी बड़ी रकम कहां से आई और क्यों दी गई? उन्होंने कहा कि न्यायपालिका की निष्पक्षता बनाए रखने के लिए इसकी गहराई से जांच जरूरी है।
गौरतलब है कि जस्टिस वर्मा ने उन्नाव बलात्कार कांड जैसे कई अहम मामलों की सुनवाई की थी, इसलिए इस घटनाक्रम को लेकर अटकलें और भी तेज हो गई हैं। वहीं सूत्रों ने बताया कि सीजेई संजीव खन्ना ने इस संबंध में दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी के उपाध्याय से एक तथ्य-खोजी रिपोर्ट भी मांगी है। इससे पहले इस घटनाक्रम के बाद न्यायमूर्ति खन्ना की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम ने गुरुवार को सर्वसम्मति से न्यायमूर्ति वर्मा को इलाहाबाद उच्च न्यायालय स्थानांतरित की सिफारिश की थी।
हालांकि, न्यायमूर्ति वर्मा के तबादले के संबंध में कॉलेजियम का प्रस्ताव अभी तक (खबर लिखे जाने तक) सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया गया है। न्यायमूर्ति वर्मा ने नकदी की बरामदगी पर फिलहाल कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
वकीलों में भी आक्रोष
इस बीच, इलाहाबाद उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन ने कहा कि वह न्यायमूर्ति वर्मा को उनके मूल उच्च न्यायालय में वापस भेजने के कॉलेजियम के फैसले से स्तब्ध है। मूल रूप से उच्च न्यायालय इलाहाबाद से आने वाले न्यायमूर्ति वर्मा को अक्टूबर 2021 में दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था।
उनको 13 अक्टूबर 2014 को उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्होंने एक फरवरी 2014 को स्थायी न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। उन्हें 11 अक्टूबर 2021 को दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया। न्यायमूर्ति वर्मा के नई दिल्ली स्थित आधिकारिक आवास पर आग की यह घटना 14 मार्च को रात करीब 11.30 बजे हुई। उस समय वह घर पर नहीं थे। आग बुझाने के दौरान दमकल कर्मियों और पुलिस को एक कमरे में कथित तौर पर भारी संख्या में नकदी मिली।
कौन हैं जस्टिस वर्मा
दिल्ली उच्च न्यायालय की वेबसाइट पर उपलब्ध न्यायमूर्ति वर्मा के व्यक्तिगत विवरण के अनुसार, उका जन्म 6 जनवरी, 1969 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुआ था। उनके पिता इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से बी कॉम (ऑनर्स) की डिग्री हासिल की। मध्य प्रदेश के रीवा विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री हासिल की। उसके बाद उन्हें आठ अगस्त, 1992 को एक वकील के रूप में नाम दर्ज किया गया।
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