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    लगातार 7 चुनाव हार हारने वाली सीटों के लिए भाजपा ने शुरू की तैयारी

  • June 26, 2023

    • कांग्रेस के पांच किलों पर अमित शाह तय करेंगे रणनीति

    भोपाल। ग्वालियर-चंबल अंचल में कांग्रेस के 5 ऐसे गढ़ हैं जिन्हें फतेह करना भाजपा के लिए सपना बना हुआ है। 1990 की राम लहर, 2003 की उमा लहर, 2008 की शिवराज लहर और 2013 की मोदी-शिवराज लहर में भी भाजपा को इन किलों पर मुंह की खानी पड़ी है। खुद शिवराज सिंह चौहान यहां हार का सामना कर चुके हैं। यही वजह है कि इन किलों पर चढ़ाई के लिए इस बार भाजपा के शाह खुद सियासी बिछात बिछाएंगे। इन गढ़ों पर जीत के सहारे ही भाजपा 2023 में कामयाबी का रास्ता बना पाएगी। शिवराज सिंह चौहान को एमपी भाजपा में वन मैन आर्मी माना जाता है। मामा के नाम से मशहूर शिवराज ने लोकसभा से लेकर विधानसभा तक जीत का जलवा कायम रखा है। लेकिन क्या आप जानते हैं शिवराज खुद विधानसभा चुनाव में शिकस्त झेल चुके हैं। 2003 की उमा लहर में शिवराज दिग्विजय सिंह का राघौगढ़ का किला भेदने मैदान में उतरे थे। लेकिन दिग्गी राजा के आगे शिवराज चुनाव हार गए थे। राघौगढ़ ही नहीं ग्वालियर-चंबल अंचल के 5 ऐसे किले हैं जिन्हें भेदना भाजपा के लिए कहीं मुश्किल तो कहीं नामुकिन बना हुआ है। आइए आपको बताते है कौन से गढ़ है जिन्हें जीतना भाजपा का सपना बना हुआ है।

    किला नंबर 1- राघौगढ़ ( जिला गुना )
    राघोगढ़ का किला जीतना आज भी भाजपा के लिए सपना बना हुआ है। राघोगढ़ से 1990 और 1993 में लक्ष्मण सिंह जीते। 1998 और 2003- दिग्विजय सिंह जीते। 2003 के चुनाव में दिग्विजय सिंह ने तत्कालीन भाजपा प्रदेश अध्यक्ष शिवराज सिंह चौहान को करारी शिकस्त दी थी। 2008 में कांग्रेस के मूल सिंह जीते। 2013 और 2018 में जयवर्धन सिंह जीते।

    किला नंबर 2- लहार (जिला भिंड)
    भिंड जिले की लहार विधानसभा सीट भी कांग्रेस का वो किला है, जिसे भाजपा बीते 33 साल से भेद नहीं पाई है। इस सीट पर कांग्रेस के कद्दावर नेता डॉ. गोविंद सिंह अंगद के पैर की तरह जमे हुए हैं। गोविंद सिंह ने लहार सीट पर 1990 की राम लहर, 2003 की उमा लहर, 2008 की शिवराज लहर और 2013 की शिवराज- मोदी लहर के बावजूद कामयाबी दिलाई है। डॉ गोविंद सिंह ने सन 1990 से 2018 तक के सभी 7 विधानसभा चुनाव लगातार जीते हैं।


    किला नंबर 3 पिछोर ( जिला शिवपुरी )
    कांग्रेस का गढ़ मानी जाती है। इस सीट पर कांग्रेस के केपी सिंह बीते 30 साल से जमे हुए हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले 6 चुनाव में केपी सिंह ने लगातार जीत दर्ज की हैं। भाजपा कड़ी मशक्कत के बाद भी इस सीट पर जीत का सपना संजोए हुए हैं। केपी सिंह ने इस सीट पर प्रदेश की मुख्यमंत्री रही उमा भारती के भाई स्वामी प्रसाद लौधी और समधी प्रीतम लोधी को भी हराया है। केपी सिंह ने पिछोर सीट पर 1993 से 2018 तक के लगातार छह विधानसभा चुनाव जीते हैं।

    किला नंबर 4 भितरवार ( जिला ग्वालियर)
    2008 में भीतरवार सीट के अस्तित्व में आने के बाद से भाजपा के लिए ये सीट सपना बनी हुई है। इस पर कांग्रेस के लाखन सिंह यादव जमे हुए हैं। बीते एक दशक में शिवराज लहर और शिवराज मोदी लहर के बावजूद भाजपा भितरवार में कांग्रेस के लाखन सिंह यादव को शिकस्त नहीं दे पाई है। 2013 और 18 में इस सीट पर कद्दावर नेता अनूप मिश्रा शिकस्त झेल चुके हैं। 2008 से लाखन सिंह यादव ने लगातार तीनों चुनाव जीते हैं।

    किला नंबर 5 डबरा ( जिला ग्वालियर )
    डबरा में पिछले डेढ़ दशक से कांग्रेस का कब्जा है। 2008 , 2013 और 2018 के तीन विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की इमरती देवी ने जीत दर्ज कर कब्जा जमाया। 2020 के उपचुनाव में जब इमरती देवी सिंधिया के साथ दलबदल कर भाजपा में गयीं। तब भी डबरा सीट कांग्रेस के खाते में गई। भाजपा में जाकर इमरती देवी के हाथ से ये सीट निकल गयी। कांग्रेस के सुरेश राजे ने भाजपा के टिकट पर उतरी इमरती देवी को हराया था। आंकड़ों पर गौर करें तो डबरा सीट पर 2008, 2013, 2018 में कांग्रेस की इमरती देवी जीतीं। 2020 उपचुनाव में कांग्रेस के सुरेश राजे जीते।

    भाजपा को उम्मीद- इस बार कांग्रेस के गढ़ ढहा देंगे
    इन सीटों पर इस बार भाजपा नेता अमित शाह की नजर है। भाजपा के आला नेताओं ने मंथन किया था उसमें ये निकलकर आया कि कांग्रेस के इन गढ़ पर भाजपा वॉक-ओवर देने के हिसाब से कमजोर उम्मीद्वार उतारती है। यही वजह है कि जब बात शाह तक पहुंची तो इस बार इन सीटों पर उम्मीद्वार उनकी मोहर लगने के बाद तय होंगे। मप्र के उद्यानिकी मंत्री भारत सिंह कुशवाहा का कहना है जिन सीटों पर हमें लगातर हार का सामना करना पड़ा उन सीटों पर हम मजबूत उम्मीदवार उतारेंगे।

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