– सुरेश हिन्दुस्थानी
महाराष्ट्र में लंबे समय तक चली राजनीतिक लड़ाई के परिणामस्वरूप आखिरकार राज्य में भाजपा-शिवसेना की सरकार बन गई। शिवसेना किसकी है और भविष्य में किसकी होगी, इसकी प्रतीक्षा करनी होगी, लेकिन जहां तक मुख्यमंत्री बनाए गए एकनाथ शिंदे की बात है तो वह आज भी अपने आपको शिवसेना का विधायक ही मानते हैं। इसलिए इसे भाजपा और शिवसेना की सरकार कहा जाना कोई अतिरेक नहीं है। इस पक्ष पर लोकतांत्रिक दृष्टि से अध्ययन किया जाए तो यही कहा जा सकता है कि राज्य की जनता ने भाजपा और शिवसेना को सरकार बनाने का जनादेश दिया था। इसलिए महाराष्ट्र की नई सरकार को जनता की भावनाओं का सम्मान ही माना जा सकता है। लेकिन सवाल यह भी है कि अब उद्धव ठाकरे क्या आसानी से अपने अपमान को बर्दाश्त कर लेंगे। जिस प्रकार से संजय राउत और आदित्य ठाकरे ने धमकी वाले बयान दिए, उसकी परिणति क्या होगी, यह आने वाला समय ही बताएगा। मगर ऐसे बयानों ने ही बागियों के आक्रोश को और ज्यादा मुखरित करने का ही कार्य किया।
महाराष्ट्र में भाजपा ने जिस प्रकार से एकनाथ शिंदे के हाथ में सत्ता की बागडोर सौंपी है, उसके कई निहितार्थ हो सकते हैं। उसमें एक तो यही समझ में आ रहा है कि अगर भाजपा का मुख्यमंत्री बनता तो आगामी चुनाव में इसे कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी इसे अपने हिसाब से जनता के सामने प्रस्तुत करतीं और पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे इस मामले पर भाजपा को घेरकर सहानुभूति जुटाने की राजनीति करते, लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि महाराष्ट्र की प्रादेशिक राजनीति में भविष्य में होने वाले दुष्प्रचार को भाजपा ने रोक दिया है। राजनीतिक रूप से इसे विश्लेषित किया जाए तो दूसरी सबसे बड़ी बात यह भी सामने आ रही है कि मराठा राजनीति के क्षत्रप के रूप में स्थापित हो चुके शरद पवार के समक्ष एक और कद्दावर नेता को मराठा जमीन पर स्थापित किया जाए, ऐसे में एकनाथ शिंदे ही एक मात्र ऐसे नेता दिखाई दिए। इसीलिए इनको मुख्यमंत्री के रूप में स्थापित किया गया। इसमें एक और राजनीतिक पक्ष यह भी है कि शिवसेना पर जिस प्रकार से ठाकरे परिवार का एकाधिकार था, उसे कैसे समाप्त किया जाए। शिवसेना के ही कुछ नेता अपनी पार्टी के बारे में एक परिवार की पार्टी होने का जो भ्रम फैला रहे थे, उसे दूर करने के लिए ही यह सारा राजनीतिक खेल खेला गया ।
जहां तक भारतीय जनता पार्टी के नेता देवेन्द्र फडणवीस के उप मुख्यमंत्री बनने की बात है तो इसे भी राजनीतिक नजरिये से सही ही ठहराया जा रहा है, लेकिन यह भी सही है कि पांच वर्ष राज्य की सत्ता का सफल संचालन करने वाले देवेन्द्र फडणवीस पिछले दो महीने में अपने आपको कुशल रणनीतिकार स्थापित करने में सफल सिद्ध हुए हैं। हालांकि दिलचस्प बात यह है कि जब फडणवीस 2014 से 2019 तक मुख्यमंत्री थे, तो उन्होंने उप मुख्यमंत्री पद के निर्माण का विरोध करते हुए कहा था कि यह एक और शक्ति केंद्र बनाता है जो प्रशासन के लिए स्वस्थ नहीं है। लेकिन अब वे उप मुख्यमंत्री बनने के लिए तैयार हो गए, जो समझ से परे भी लग रहा है। सवाल यह है कि जो व्यक्ति स्वयं उप मुख्यमंत्री पद के समर्थन में नहीं था, वह अनायास ही इस पद को ग्रहण करने के लिए तैयार हो जाए, यह बात हजम नहीं हो रही है। समय की मांग के हिसाब से और राजनीतिक कद के हिसाब से भी मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस को ही बनना चाहिए था। परंतु ऐसा लगता है कि भाजपा में भी इस मामले में एक राय नहीं थी।
खैर…। अब हम अपने मूल विषय पर आते हैं। महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना के बागी विधायकों के गठबंधन से बनी नई सरकार से हिंदुत्व की ओर एक और कदम बढ़ गया है। यहां हिन्दुत्व का आशय मात्र एक समाज का नहीं है, बल्कि हिन्दुत्व का आशय भारतीयता से है। अब तक शिवसेना का रिमोट कंट्रोल मातोश्री से संचालित हुआ करता था जो उसके हाथ से बहुत दूर होता जा रहा है। बागी नेता एकनाथ शिंदे के मुख्यमंत्री बनने के साथ ही उद्धव ठाकरे के अरमान धरे के धरे रह गए। जिस तरह शिवसेना के बागी विधायकों की संख्या 40 के ऊपर पहुंची, तब ही यह स्पष्ट हो गया था कि उद्धव ठाकरे की मुख्यमंत्री के पद से विदाई तय है। यही कारण रहा कि उन्होंने न सिर्फ मुख्यमंत्री निवास छोड़ा बल्कि इस्तीफा भी दे दिया। यह किसी ने नहीं सोचा था कि एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालेंगे। भाजपा ने यह चौंकाने वाला निर्णय महाराष्ट्र के भविष्य को देखते हुए लिया, ताकि सभी को यह लगे कि असली हिंदुत्व वाली शिवसेना एकनाथ के साथ है। इससे महाराष्ट्र की जनता में यह संदेश गया कि शिवसेना के भीतरी विद्रोह में उसकी सीधी भूमिका नहीं थी। महा विकास अघाड़ी सरकार का पतन उसकी गलतियों से ही हुआ। शिवसेना का गठन जिन उद्देश्यों के लिए किया गया था, उससे वह भटक रही थी, खासकर हिंदुत्व वाली विचारधारा को काफी धक्का लग रहा था। क्योंकि पिछले दिनों जिस तरह से शिवसेना के मुखिया उद्धव ठाकरे द्वारा भाजपा पर हमले किए गए और विशेषकर सांसद को हनुमान चालीसा पढ़ने पर जेल के भीतर भेजा गया, उससे हिंदुओं में काफी उबाल था। महाराष्ट्र में मजाक में कहा यह भी जा रहा है कि उद्धव ठाकरे को हनुमान ने ही सत्ता से बेदखल किया है अब घर में बैठकर वे हनुमान चालीसा का पाठ करें।
महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार बनने से उद्धव ठाकरे की मुश्किलें और बढ़नी तय हैं। अब उनके लिए महाराष्ट्र की जनता को यह संदेश देना और कठिन होगा कि असली शिवसेना की कमान उनके पास है और वही बाल ठाकरे की विरासत के एक मात्र उत्तराधिकारी हैं। यह इसलिए भी नहीं कह सकते, क्योंकि बाला साहेब ठाकरे जिन सिद्धांतों पर अपनी राजनीति करते थे, उन सिद्धांतों को उनके पुत्र उद्धव ठाकरे ने एक तरफ रख दिया और उन लोगों से हाथ मिला लिया, जो तुष्टिकरण की राजनीति को ही अपना मुख्य आधार मानते थे। विचार करने वाली बात है कि अगर इस समय बाल ठाकरे जीवित होते तो क्या पालघर में संतों की हत्या के बाद शिवसेना नीत सरकार का यही रुख होता। क्या हनुमान चालीसा पढ़ने से रोका जाता? लेकिन उद्धव ठाकरे ने अपनी कुर्सी के पाए संभालने वाले कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेताओं को खुश करने के लिए हनुमान चालीसा पढ़ने से रोका ही नहीं, बल्कि उन्हें जेल भी भिजवाया। यही बात हिन्दुत्व समर्थक शिवसैनिकों को कचोट रही थी। एक प्रकार से उद्धव ठाकरे ने हिन्दुत्व को ही झटका दिया था। जो शिवसेना के लिए असहनीय था।
आज देश में चारों ओर से हिन्दुत्व पर प्रहार किया जा रहा है। जिस तरह से देश में इन दिनों सांप्रदायिक शक्तियां अपने पैर पसार रही हैं, उससे हिंदुत्व को झटके लग रहे थे, लेकिन महाराष्ट्र में नई सरकार के गठन से अब हिंदुत्व को बल मिलेगा। नई सरकार को अब सभी ओर से बधाइयां मिल रही हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले देवेंद्र फडणवीस को बधाई दी है। वहीं केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि देवेंद्र फडणवीस ने बड़ा दिल दिखाया है, यह निर्णय महाराष्ट्र के हित में है। मुख्यमंत्री की शपथ लेने के बाद एकनाथ शिंदे ने कहा कि वर्ष 2019 में भाजपा और शिवसेना का असली गठबंधन था, लेकिन कुछ विषम परिस्थितियों के कारण महा विकास अघाड़ी की सरकार बन गई जो हमारे लिए दुर्भाग्यपूर्ण रही। शिंदे ने कहा कि भाजपा ने उन पर जो भरोसा किया है उस पर वह खरोंच भी नहीं आने देंगे। वहीं देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि यह विचारों की लड़ाई थी, अब शिंदे सरकार न सिर्फ राज्य के विकास को आगे बढ़ाएगी, बल्कि हिंदुत्व के विचारों को भी आगे ले जाएगी। इसलिए यह कहा जा सकता है कि महाराष्ट्र में ऐसी सरकार की आवश्यकता थी, जो पारदर्शिता के साथ सरकार का संचालन कर सके। जनादेश भी इसी के लिए मिला था। इसलिए यह जनादेश का ही सम्मान है।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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