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गिले-शिकवे दूर कर एक बार फिर मजबूती के साथ आगे बढ़ने का संकल्प, बीजेपी-RSS ने बना लिया 2029 का भी प्लान

  • March 31, 2025

    नई दिल्ली । प्रधानमंत्री(Prime Minister) नरेंद्र मोदी( Narendra Modi) अपनी राजनीतिक सफलता(Political success) का श्रेय आरएसएस(RSS) को हमेशा ही देते रहे हैं। हालांकि 11 साल प्रधानमंत्री रहने के बाद वह रविवार को पहली बार आरएसएस के मुख्यालय पहुंचे। पीएम मोदी इससे पहले 2013 में लोकसभा चुनाव की बैठक को लेकर नागपुर आए थे। पीएम मोदी ने आरएसएस के संस्थापक डॉ. केबी हेडगेवार के स्मारक पर जाकर श्रद्धांजलि दी। उन्होंने आरएसएस की तारीफ खरते हुए कहा कि यह एक संगठन नहीं बल्कि राजनीति की आत्मा है। उन्होंने कहा कि संघ एक अमर संस्कृति के वट वृक्ष की तरह है जो कि आधुनिकता से भी ओतप्रोत है।

    आरएसएस कार्यकर्ता के तौर पर ही शुरू हुआ राजनीतिक सफर


    पीएम मोदी ने कहा कि राष्ट्रीय चेताना का जो बीज 100 साल पहले बोया गया था वह एक वट वृक्ष का रूप ले चुका है। उन्होंने कहा कि आरएसएस के कार्यकर्ता पूरे देश में तन-मन से लोगों की सेवा कर रहे हैं। बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सफर 1972 में आरएसएस प्रचारक के तौर पर ही शुरू हुआ था। उनकी सक्रियता के चलते ही उन्हें 2001 में गुजरात का मुख्यमंत्री बना दिया गया था।

    आरएसएस के एक सीनियर पदाधिकारी ने कहा, इसमें कोई संदेह नहीं है कि बीजेपी का वैचारिक मेंटॉर आरएसएस है। इसके बावजूद बीजेपी ने आरएसएस से दूरी ही दिखाने की कोशिश की। सरकार और संघ का काम पूरी तरह अलग होता है। कई नेता इस बात को स्वीकार करते हैं कि उनका भविष्य आरएसएस की वजह से ही तय हो पाया है। फिर भी मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि आरएसएस कभी सरकार के कामकाज में कोई दखल नहीं देता है और ना ही इसका कोई राजनीतिक अजेंडा है।

    आरएसएस से अनबन की भी थी चर्चा

    2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान यह भी चर्चा थी की आरएसएस और बीजेपी की बन नहीं रही है। बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने यहां तक कहा था कि बीजेपी अब आत्मनिर्भर है। वहीं जब बीजेपी को हिंदी बेल्ट में सीटों का नुकसान हुआ तो आरएसएस प्रमुख ने भी कई बार इशारों-इशारों में खुले मंच पर नसीहत दे डाली। हालांकि लोकसभा में झटके के बाद बीजेपी ने फिर आरएसएस को अहमियत देनी शुरू की और इसका प्रभाव हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में दिखाई दिया। हालांकि आरएसएस नेता एचवी शेषाद्री ने कहा कि यह कोई डिबेट ही नहीं थी। जो लोग बीजेपी और आरएसएस दोनों को नहीं जानते हैं वही अनबन की अफवाह उड़ा रहे थे।

    इसके अलावा दो अहम कार्यक्रम भी आने वाले दिनों में होने वाले हैं। एक है बेंगलुरु में होने वाली बीजेपी कार्यकारिणी की बैठक और दूसरी आरएसएस का शताब्दी वर्ष समारोह। ऐसे में दोनों ही संगठन अपने संबंधों को नई ऊंचाई देने में ललगे हैं। अगले महीने बेंगलुरु में होने वाली कार्यकारिणी की बैठक में बीजेपी नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का भी ऐलान कर सकती है। ऐसे में पीएम मोदी का आरएसएस मुख्यालय जाना अहम मानाजा रहा है।

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